कुमारसंभवम | The Kumarasambhava PDF In Hindi

कुमार सम्भवम – Kumara Sambhavam Book PDF Free Download

संस्कृत श्लोक हिंदी अनुवाद सहित

भारतवर्ष की उत्तर दिशा में देवता का निवास भूमि पूर्व समुद्र से पश्चिम समुद्र तक पृथिवी के मान दंड की नई हिमालय नाम से प्रसिद्ध पर्वतों का राजा (सब से बड़ा पर्वत) है

( राजा पृथु की आज्ञा मान कर गौ वनी हुई पृथ्वी से सारे पर्वतों ने जिस हिमाल यको बछड़ा बनाके दोहने में चतुश्वाल बने हुए सुमेरु पर्वत के द्वारा बड़ी बड़ी औषधि और बड़े बड़े आर्य रत्न देोहलि ये

और जिस हिमालय से इतने रत्न उपजते हैं कि गिने नहीं जाते इसी से दुख देने वाला हिम भी उस की शोभा ही बढ़ाता था क्योंकि बहुत से गुण यक दोष को छिपा लेते हैं जैसे पूर्णमासी के चंद्रमा की किरणों कलंक को छिपाती हैं।

मेचों के खंडों से चित्र वर्षा और राओं को अपने स्वामी के पास जाने योग्य शृंगार क राती हुई श्रकाल संध्या के समान गेरी आदि धात जिस के शिख रों में प्रतीत हो रहे है

जिस हिमालय में गति के समय गुफा के भी विना तेल के प्रकाश करती हुई डीम धियें अपनी अपनी त्रियों के साथ क्रीड़ा करते हुए भीलों के दीप बनते है १० निम हिमालय में जाना डर बच्चों के भार से पीड़ित किन्ररियं मार्ग के सचन हिम से पांडे के दे।

पासे सउने पर भी अपनी विला स की सहज गति नहीं होती हैं और जो हिमालय दिन में स् यसेडरेय की नाई गफाओं में निये अंधेरे की रक्षा करता है के कि प्रतिष्टित लोग शशा में श्रावण सजना गरड को एक से ही जान करता करते है १३ और चमरी गाय ।

सब ऋ्रनेक स्थाने। में एच्छ फेंकने से बडन शेभित चोरनी के समान गौर वर्णा पच्छ के केश से जिस हिमालय के गिरिराज शब्द के साथ कक रती हैं और जिप्स हिमालय में स्वभाव से गुफा के दा २ पर लमके डए मेघही वसें के उता रने से लज्नित कित्र

नियों की जवनिम(कनात) बन जाते हैं নजागी(नि मते दवए मेचों की ा में नीचे के शाबरों पाव से बड़ा न दिन है के सिद्ध जन हूप सेवने के लिये जिस हिमालय के पस्ेशिकफर चृष्क ज्ाते हैं ।

गैर निस हिमालय के सबस्वाने में पानी की अधिकता से हाथियों के मार कर गये इए सि- हों के पाडों का चिड़े लोहू के युत जाने से भूमि परन रेख के भी भी ल लेग सिहं के नजरों से गिरे झए मे तियें के देरखव कर सिंहों का मार्ग जानते हैं ।

शिंहर आदिधान वहने से हाथियों के मद करेगों की नाईक वर्ण काम के जगाती हुई श्रतरों की पके समान ू न पत्र जिस हिमालय में अमरा के काम में आते हैं। और जे हिमालय गुफा नामी अपने मुख से निकले ह.

ेवर। बाये । यहा नीगखेेनेति मानग् । । स चसौ शुण्ड स म िता। बायम्मपरिणेएकणइ रिवथ इझ्रयो ।

रखागराचगीितं सल हेमाकवणासयेय । र्क पुरणे – कासो दिमबाजैन दक्षिणे वरषर्ैटी । पूर्यपतिमारचेवायर्गयाल्लस ॥

य दिमाचकलोभवाण्यिष्महिसम्मानरणत्येनोबेक्षणदुखेदाहंकार: । ‘महतेप्रकृतगुणकियादिसंबन्बादप्रकृयत्वेन प्रकृठल संभावन बेक्षा’ इलाके कारसर्वखकारः । बदिन्सरगे येग कु्मुपतिः । कचिरिग्द्रगजोयेन्हले ।

सहकषणं कु-खादिन्ब्ञ वत्े तो बगी गः । ‘उपेन्छ्रवह्या यतजाखतो औ’ । ‘बमन्तरोदीरितमममाजौ पादौ बदीवानुपजात्यसा’ इति ॥

इतःपरं चोडशमिः कोकेहिंमां बर्णवति । तत्रमिर्वोद्धमाह- ये सर्वशैलाः परिकल्प्य वत्सं मेरौ स्विते दोग्धरि दोहदक्षे । माखन्ति रत्नानि महौषधीश्च पृथूपदिष्टां दुदुहुर्धरित्रीम् ॥ २ ॥

मनगाधिराजर्व यमिति ॥ सर्वे ॥ ते] शैल्णवाय सर्वशैकाः । ‘पूर्षकाटैकसर्वजरपुराणनवडे- बकाः समानाधिकरणेन’ इति समासः ।

हिमालयं बसं परिकल्प्य विचाय दोहे के दोहतसमये मेरा दोग्यरि स्थिते सति । ‘यस च भावेन नावलझणम्’ इति सप्तमी ।

पृथूपदि्टां पृथुना बैन्येनोपदिष्टामी प्रदर्शितां चरित्रीम् । गोरूपधरामिति होषः । ‘गौर्भूत्वा ु बसुंघरा’ इतेि विष्णुदुराजात् । ‘अकवितं च’ इति कर्मत्वम् ।

मास्वस्ति च भावत्या भास्वन्ति पुतिमन्ति । ओषधिवि शेषर्ण चैतत् । ‘नर्पुसकमनपुंसकेन-‘ इत्यादिना नपुंसकैकशेषः ।

रखाने मणी- जातिश्रेष्टवस्तूनि च । ‘रवं श्रेष्टे मणावपि’ इति विचः । ‘जातौ जातौ यदुकटं तखमिति कथ्यते इति यादवः । महौपमी संजीवनीम्रसृतीय झीरवेन परिणता इति शेषः ।

‘ताः बीरपरिणामिनीः’ इनि विष्णुपुराजाद् । दुडुहु: । ‘दुडियाधि-‘ इत्पातिना मगन्तेसि ॥

प्रभषस्वक्थादिति प्रमवः कारणय । जमन्वानामपरिमिवानाई रक्षानों ्रेहवस्तूनां प्रभवस यस्य हिमादेहिमम् । कर्ज। समगख माव: सैमा- स्यम्। ‘इजगलिन्व्यन्ते पूर्वपश्ख्य य’ इस्युमययददि त्पवतसौवा- श्यविछोषि सौग्दर्षविचातके नजारत नामूल ।

तयाहि पको दोषो गुणसंगी- पात इन्दोः किरणेष्वा इस निमजति । मन्तवव इयर्थः । नहि ्व्पो दोशेऽमिषगुणाभिभावक एवं किंतु कविविन्दुकरकड्डातिव्डुनेमिभूषते ।

अन्यथा सर्वरम्यचस्तुहानिप्रसङ्गादिति भावः । अत्रोपमादुप्राणिठोऽयोन्तरम्यासालंकारः । सहक्षणं तु-शेयः सोऽर्याम्तरम्यासो वस्तु प्रस्तुत्य किंचन तस्साचनसमर्यैख म्यासो योऽन्यस्य वस्तुनः ॥’ इति दन्दी।

लेखक कालिदास-Kalidas
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 339
Pdf साइज़12.4 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

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