गणेश (विनायक) चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat PDF In Hindi

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गणेश चतुर्थी व्रत कथा – Ganesh Chaturthi Vrat PDF Free Download

गणेश चतुर्थी कथाओं का क्रम

१. चैत्र कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (मकरध्वज नामक राजा की कथा)

२. बैशाख कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (धर्मकेतु नामक ब्राह्मण की कथा)

३. ज्येष्ठ कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (दयादेव नामक ब्राह्मण की कथा )

४. आषाढ़ कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (राजा महोजित की कथा)

५. श्रावण कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (उद्यापन विधि, संतानादि सर्वसिद्धिदायक कथा)

६. भाद्रपद कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (राजा नल की कथा)

७. भाद्रपद शुक्ला कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (स्यमन्तक मणि की कथा)

८. आश्विन कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (श्रीकृष्ण तथा वाणासुर को कथा)

९. कार्तिक कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (वृत्रासुर दैत्य की कथा)

१०. मार्गशीर्ष कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (राजा दशरथ की कथा )

११. पौष कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (राक्षसराज रावण की कथा)

१२. माघ कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (ऋषिशर्मा नामक ब्राह्मण की कथा )

१३. फाल्गुन कृष्ण गणेश (विनायक) चतुर्थी व्रत कथा (विष्णुशर्मा नामक ब्राह्मण की कथा )

१४. अधिकमास गणेश चतुर्थी व्रत कथा (चन्द्रसेन नामक राजा की कथा )

भाद्रपद कृष्ण गणेश चतुर्थी व्रत कथा (राजा नल की कथा)

पार्वती जी ने गणेश जी से पूछा कि हे पुत्र! भादों कृष्ण चतुर्थी को संकट नाशक चतुर्थी कहा गया है। अतः उस दिन का व्रत किस प्रकार किया जाता है। मुझसे समझाकर कहिए।

गणेश जी ने कहा-हे माता! भादों कृष्ण चतुर्थी सब संकटों की नाशक, विविध फलदायक एवं सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाली है। पूर्ववर्णित विधि से ही पूजा करनी चाहिए।

हे पार्वती ! इस व्रत में आहार सम्बन्धी कुछ विशेषताएँ हैं, उन्हें बतला रहा हूँ। श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि हे युधिष्ठिर! पुत्र की ऐसी बात सुनकर पार्वती जी ने उनसे पूछा कि आहार एवं पूजन में क्या विशेषता है, उसे कहिए।

गणेश जी ने कहा कि गुरु द्वारा वर्णित प्रणाली से इस दिन भक्तिभाव से पूजन करें। बारहों महीनों में अलग-अलग नामों से गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।

विनायक, एकदन्त, कृष्णपिंग, गजानन, लम्बोदर, भालचन्दर, हेरम्ब, विकट, वक्रतुण्ड, आखुरथ, विघ्नराज और गणाधिप इन बारहों नामों से व्रती को गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।

अलग-अलग महीने में क्रमशः एक-एक नामों से पूजा करें। चतुर्थी के दिन प्रातः नित्य कर्म से निवृत्त हो व्रत का संकल्प करें, तत्पश्चात रात्रि में पूजन और कथा श्रवण करें।

पूर्वकाल में नल नामक एक पुण्यात्मा और यशस्वी राजा हुए उनकी रूपशालिनी रानी दमयन्ती नाम से प्रसिद्ध थीं।

एक बार उन्हें शाप ग्रस्त होकर राज्यच्युत होना पड़ा और रानी के वियोग में कष्ट सहना पड़ा। तब उनकी रानी दमयन्ती ने इस सर्वोत्तम व्रत को किया ।

पार्वती जी ने पूछा कि हे पुत्र! दमयन्ती ने किस विधि से इस व्रत को किया और किस प्रकार व्रत के प्रभाव से तीन महीने के अन्दर ही उन्हें अपने पति से मिलने का संयोग प्राप्त हुआ? इन सब बातों को आप बतलाइए।

श्रीकृष्ण जी ने कहा कि हे युधिष्ठिर! पार्वती जी के ऐसा पूछने पर बुद्धि के भंडार गणेश जी ने जैसा उत्तर दिया, उसे मैं कह रहा हूँ, आप सुनिए।

श्री गणेश जी कहते हैं कि हे माता! राजा नल को बड़ी-बड़ी आपदाओं का सामना करना पड़ा। हाथी खाने से हाथी और घुड़साल से घोड़ों का अपहरण हो गया । डाकुओं ने राजकोष लूट लिया और अग्नि की ज्वालाओं में घिरकर उनका माल भस्मसात हो गया।

राज्य को नष्ट करने वाले मंत्री लोगों ने भी साथ छोड़ दिया। राजा जुए में सर्वस्व गंवा बैठे। उनकी राजधानी भी उनके हाथ से निकल गई।

सभी ओर से निराश और असहाय होकर राजा नल वन में चले गए। वन में रहते समय उन्हें दमयन्ती के साथ अनेक कष्ट झेलने पड़े। इतना होते हुए भी उनका रानी से वियोग हो गया।

तत्पश्चात राजा किसी नगर में सईस का काम करने लगे। रानी किसी दूसरे नगर में रहने लगी तथा राजकुमार भी अन्यत्र नौकरी करने लगा।

जो किसी समय राजा, रानी, राजपुत्र कहे जाते थे, वे ही अब भिक्षा मांगने लगे। तरह-तरह के रोगों से पीड़ित होकर, एक दूसरे से विलग होकर कर्म फल को भोगते हुए दिन बिताने लगे ।

एक समय की बात है कि वन में भटकते हुए दमयन्ती ने महर्षि शरभंग के दर्शन किये। उसने उनके पैरों पर नतमस्तक हो हाथ जोड़कर कहा।

दमयन्ती ने पूछा कि हे ऋषिराज ! मेरा अपने पति से कब मिलन होगा? किस उपाय से मुझे हाथी-घोड़ों से युक्त घनी आबादी वाली नगरी मिलेगी? मेरा भाग्य कब लौटेगा? हे मुनिवर! आप निश्चित रूप से बतलाइए ।

श्री गणेश जी कहते हैं कि दमयन्ती का यह उत्तम प्रश्न सुनकर शरभंग मुनि ने कहा कि हे दमयन्ती ! मैं तुम्हारे कल्याण की बात बता रहा हूँ, सुनो।

इससे घोर संकट का नाश होता है, यह सब कामनाएँ पूर्ण करने वाला एवं शुभदायक है। भादों मास की कृष्ण चतुर्थी संकटनाशन कही गयी है। इस प्रकार नर-नारियों को एकदन्त गजानन की पूजा करनी चाहिए।

विधिपूर्वक व्रत एवं पूजन करने से ही, हे रानी! तुम्हारी सम्पूर्ण इच्छाएँ पूरी होंगी। सात महीने के अन्दर ही तुम्हारा पति से मिलन होगा। यह बात मैं निश्चय पूर्वक कहता हूँ।

गणेश जी कहते हैं कि शरभंग मुनि का ऐसा आदेश पाकर, दमयन्ती ने भादों की संकटनाशिनी चतुर्थी व्रत प्रारम्भ किया और तभी से बराबर प्रतिमास गणेश जी का पूजन करने लगी।

सात ही महीने में, हे राजन! इस उत्तम व्रत को करने से उसे पति, राज्य, पुत्र और पूर्व कालीन वैभव आदि की प्राप्ति हो गई।

श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि हे पृथा पुत्र युधिष्ठिर! इसी प्रकार इस व्रत को करने से आपको भी राज्य की प्राप्ति होगी और आपके सभी शत्रुओं का नाश होगा, यह निश्चय है।

हे राजन! इस प्रकार मैंने सभी व्रतों में उत्तम व्रत का वर्णन किया। यह सब कष्टों का नाश करता हुआ आपके भाग्य की वृद्धि करेगा।

लेखक लोकसंस्कृति
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 36
PDF साइज़5 MB
Categoryव्रत कथाएँ

गणेश (विनायक) चतुर्थी व्रत पूजा विधि

भद्रपद की गणेश चतुर्थी में सर्वप्रथम पचांग में मुहूर्त देख कर गणेश जी की स्थापना की जाती हैं, सबसे पहले एक ईशान कोण में स्वच्छ जगह पर रंगोली डाली जाती हैं, जिसे चौक पुरना कहते हैं ।

उसके उपर पाटा अथवा चौकी रख कर उस पर लाल अथवा पीला कपड़ा बिछाते हैं, उस कपड़े पर केले के पत्ते को रख कर उस पर मूर्ति की स्थापना की जाती हैं ।

कलश भी रखा जाता हैं एक लोटे पर नारियल को रख कर उस लौटे के मुख कर लाल धागा बांधा जाता हैं, यह कलश पुरे दस दिन तक ऐसे ही रखा जाता हैं, दसवे दिन इस पर रखे नारियल को फोड़ कर प्रशाद खाया जाता हैं।

सबसे पहले कलश की पूजा की जाती हैं जिसमे जल, कुमकुम, चावल चढ़ा कर पुष्प अर्पित किये जाते हैं ।

कलश के बाद गणेश देवता की पूजा की जाती हैं, उन्हें भी जल चढ़ाकर वस्त्र पहनाए जाते हैं फिर कुमकुम एवम चावल चढ़ाकर पुष्प समर्पित किये जाते हैं।

गणेश जी को मुख्य रूप से दूबा चढ़ायी जाती हैं, इसके बाद भोग लगाया जाता हैं, गणेश जी को मोदक प्रिय होते हैं।

फिर सभी परिवार जनो के साथ आरती की जाती हैं, इसके बाद प्रशाद वितरित किया जाता हैं।

गणेश चतुर्थी व्रत पूजा सामग्री

गणपति बप्‍पा की स्‍थापना से पहले पूजा की सारी सामग्री एकत्रित कर लें।

पूजा के लिए चौकी, लाल कपड़ा, गणेश प्रतिमा, जल कलश, पंचामृत, लाल कपड़ा, रोली, अक्षत, कलावा, जनेऊ, गंगाजल, इलाइची-लौंग, सुपारी, चांदी का वर्क, नारियल, सुपारी, पंचमेवा, घी-कपूर की व्‍यवस्‍था कर लें।

लेक‍िन ध्‍यान रखें क‍ि श्रीगेश को तुलसी दल व तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। इसके स्‍थान पर गणपत‍ि बप्‍पा को शुद्ध स्‍थान से चुनी हुई दूर्वा जि‍से कि अच्‍छे तरीके से धो ल‍िया हो, अर्पित करें।

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