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मेघदूत श्लोक संस्कृत – Meghdoot Book PDF Free Download
कश्चित् कान्ताविरहगुरुणा स्वाधिकारात्प्रमत्तः शापेनास्तङ्गमितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तुः । यक्षश्चक्रे जनकतनयास्नानपुण्योदकेषु स्निग्धच्छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु ॥ १॥
तस्मिन्नद्रौ कतिचिदबलाविप्रयुक्तः स कामी नीत्वा मासान् कनकवलयभ्रंशरिक्तप्रकोष्ठः । आषाढस्य प्रशथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं (प्रशम) वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ॥ २॥
तस्य स्थित्वा कथमपि पुरः कौतुकाधानहेतोः अन्तर्वाष्पश्चिरमनुचरो राजराजस्य दध्यौ । मेघालोके भवति सुखिनोऽप्यन्यथावृत्ति चेतः कण्ठाश्लेषप्रणयिनि जने किं पुनदूरसंस्थे ॥ ३॥
प्रत्यासन्ने नभसि दयिताजीवितालम्बनार्थी जीमूतेन स्वकुशलमयीं हारयिष्यन् प्रवृत्तिम् । स प्रत्ययैः कुटजकुसुमैः कल्पितार्घाय तस्मै प्रीतः प्रीतिप्रमुखवचनं स्वागतं व्याजहार ॥ ४॥
धूमज्योतिः सलिलमरुतां संनिपातः क्व मेघः संदेशार्थाः क्व पटुकरणैः प्राणिभिः प्रापणीयाः । इत्यौत्सुक्यादपरिगणयन् गुह्यकस्तं ययाचे कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्चेतनाचेतनेषु ॥ ५॥
पूर्वमेघ और उत्तरमेघ
महाकवि कालिदास प्रणीत ‘मेघदूतम्’ संस्कृत साहित्य का एक प्रसिद्ध खण्डकाव्य है। यह खण्डकाव्य दो भागों में विभक्त है – पूर्वमेघ एवं उत्तरमेघ । इस खण्डकाव्य में महाकवि कालिदास ने मेघ को दूत बनाकर अलकापुरी भेजा है।
पूर्वमेघ में यक्ष मेघ को अलका जाने का मार्ग बताता है। वह मेघ को बताता है कि तुम्हें मार्ग में नर्मदा, निर्वन्ध्या, वेत्रवती आदि नदियाँ मिलेंगी जिनका जल तुम अवश्य ग्रहण करना। वह मेघ को यह भी बताता है कि मार्ग में तुम्हें विन्ध्य, आमकूट, नीचैः आदि पर्वत मिलेंगे जिन पर तुम अपना जल बरसाकर उनकी उष्णता को शान्त करना।
इस प्रकार इस इकाई में आप पूर्वमेघ के श्लोक सं. 1 से 29 तक का अध्ययन करेंगे।
तरह पूरित कर दिया है कि याचक-पृन्द के पास पास इस रस का पातापरण व्यामाविक आदी उपस्थित हो जाता है ।
सच तो यह है कि शृङ्गार और करुण रस के मुख्य करि कालिदास और भवभूति के मध्य में थीर-रस के मुख्य-कयि का स्थान शून्य मालूम हो रहा था
मो अय भास के नाटकों के प्रसिद्ध होने पर बिदित हुआ कि उस स्थान की पूर्ती तो भासने इनके पहिले हो कर रफ्ग्यो यो। ग्टक्षार रस के पर्णन में कालिदास पी सर्वोत्कृष्टता दिखाने के लिये उदाहरण रूप में मास के नाटकों के साथ
यदि उनके नाटकों की तुलना की जाय ता भास के वीर रस प्रधान नाटकों को छोडकर, शङ्गार- रस प्रधान नाटर स्वमयासयदृत्ता श्रर अविमारक के साथ हो की जा सकती है
इन देानो-स्भवासयदृच्ा भोर अवि- मारक का कालिदास के मालविकाग्निमित्र चिक्रमार्वशोय और शाकुन्तल इन शुहार रस के तीनां नाटकों में भाषा, विचार, प्रसङ्ग योर शज्दो की रचना में भी विशेषतया ऐक्य देया जाता है ।
स्थम थासयदत्ता केप्रथमा इ में योगन्धरायण पासवद् त्ता को लेकर तपोधन में आता है,
उस मसङ की शा्ुन्तन्द में सम्पूर्ण डायन मिलती है उसमें जैसा पाचन वर्णन है यसा ही शान्त, पवित्र थर मूग प्रादि विभ्यस्त और निशङ्क जोग वाला तपोवन शाकुन्तल में अद्वित है।
स्यम्थासवदत्ता में यागन्धरायण ने पद्मागती को वासव दत्ता दी है, मालविकाग्निमित्र में राणी धारिखी को मालविका दी गई है।
वासवदत्ता वीणा बजाना सीखती है, मालविका भी सहीत सौखती है यासयदत्ता को राजा चित्र में देखकर उस पर अनुरक होता है, मालविका का भी चित्र तथा नृत्य देणफर राजा का उसपर अनुरागोन्पन्न होने का उल्लेख है
इस प्रकार स्वम योसघदत्ता फे यहुत से प्रसङ्ग कुछ प्रकारान्तर से-और भी सुन्दर स्वरूप में फालिदास ने मालविकाग्निमित्र में मङ्कित किये हैं।
मानो वासवदत्ता के पस्तु फलेयर को परिवर्तन करके अधिक रस-प्रद रीति से कालिदास ने माताविफाग्निमित्र में संघटित किया हो, पेसा भास होता है।
लेखक | महाकवि कालिदास-Mahakavi Kalidas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 406 |
Pdf साइज़ | 5.1 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
हिंदू मेघदूत विमर्ष – Hindu Meghdut Vimarsh Book Pdf Free Download