श्री स्कन्द महापुराण | Skand Purana PDF In Hindi

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स्कन्द पुराण – Skand Puran PDF Free Download

॥ माहेश्वर खंड ॥

१ – दक्ष वृतान्त वर्णन

ॐ नारायण नमस्कृत्य नरचैव नरोत्तमम् । देवी सरस्वतीचैव ततो जयमुदीरयेत् ।१।

यस्याज्ञयाजगत्स्रष्टाविरिञ्चिःपालकोहरिः सहत कालरुद्राख्योनमस्तस्मै पिनाकिने |२|

अर्थ: भगवान श्री नारायण की सेवा में नमस्कार समर्पित करके नरों मे उत्तम नर को प्रणाम करके तथा देवी सरस्वती की वन्दना करके इसके पश्चात् जय शब्द का उच्चारण करना चाहिए | १ |

जिसकी प्राज्ञा से विरश्चि इस जगत का सृजन करने वाला है – हरि (श्री विष्णु) इस जगत के पालक हैं और काल रुद्राख्य संहार किया करते हैं उन भगवान पिनाकी के लिए नमस्कार |२|

ये वारंवार परस्पतिजीसे पूछते थे-‘गुरुदेव। हमारी विणय कैसे होगी। तब बृहस्पति कहा-गवां विष्णुने जो बात बहुत पहले कर दी मी, यह भाग सत्प हुई।

यदि फलरूपमें परिणत हुए कर्मका नियामक कोई ईश्वर है तो यह भी कर्ताका ही आभप लेता है।

जो कर्ता नहीं है, उसपर यह अपना प्रभुत्व नहीं प्रकट भरता- उर्म करनेपालेको दी रंधर उसका फल देता है, न करनेपालेको नही ।

वह ईश्वर केयत अनन्य भक्तिसे जानने योग्य है परम धान्ति और सन्तोषसे ही भगवान् सदाशिषके स्वरूपको जाना जा सकता है।

उन्होंसे यह सम्पूर्ण मुख-दुःखात्मक जगत् जम और जीवन धारण करता है। (इस समय तुनारी विवरका कोई उपाय नहीं दिखायी देता ।) इन्द्र । तुम मूर्खता और लोपताके वश इन खोकपाके साथ यहां आ गये हो।

यताओ तो इस समय क्या करोगे १ वे परम शोभायमान गण भगवान् सिक्के निधर हैं।

में ही लके सहायक हैं वे महाभाधा कुपित होनेपर उप संबार आरम्भ करते हैं न किसीको शेष नहीं छोड़ते बदस्पतिजीका यह कपन मुनकर वे संपूर्ण देवता, लोकपाल सपा इन्द्र भी चिन्तामें जम गये ।

तदनन्तर शिवगमोसे घिरे हुए चीरभदनेकदा-तुम सब देवता मूर्खताके कार पों मेट लेनेके लिये आ गये दो। मेरे निकट तो आभो । मैं तमें मेट देता हैं। ससे इन्द्र ! मिषवर सूर्य । चन्द्रमा ! भनाभ्य कुवेर ! पाशभारी बकण ! मूल्यो !

यमुनाके मेवा यमराज मैं आपलोगीकी तृमिक लियेशीम दी मेंट मर्पित कगायो एकर मधमें भरे वीरभदने सब देचताभोपर बाचीकी शेतार भारम की।

इन भाचतसे पीड़ित होकर ये सब-के-सब दती दिशाओमे भाग गरे। दोकपातीर और देवताभोर पलायन कर जानेपर भगवान विष्णु भी पो गये।

फिर बीरभ अपने गणोदै साथ पस्याबामें भाये। उस समय देवता, ऋषि तथा अन्य जो पोपलीथीग मे |


घम वर्मा ने कहा- हे कृतिमानो में परम श्रेष्ठ ! आज मेरा जन्म सफल हो गया है और आज ही मेरा किया हुम्रा तप भी फल युक्त हो गया है। आज आपके द्वारा मैं पूर्ण तया कृत-कृत्य हो गया हूँ ।

समस्त पढकर एक ब्रह्मचारी के तुल्य जन्म वृथा ही है । अत्यधिक क्लेशो से भार्या को प्राप्त किया था सो वह भी अप्रिप बोलने वाली होने के कारण वृथा ही है। क्लेश पूर्वक कूप का निर्माण कराया सो खारा जल वाला होने के कारण वृथा ही हुआ।

बहुत से क्लेशो को भोग कर यह जन्म प्राप्त किया है सो वम के बिना यह भी वृथा ही है। इस तरह से मेरा यह सब वृथा ही नाम हुम्रा था वह मापने प्राज मुझे पूर्ण रूप से सफल बना दिया है।

इसलिये आपकी सेवा मे मेरा नमस्कार समर्पित है और सब द्विजो के लिए भी बारम्बार नमस्कार है।

बिष्णु के सद्य मे पहिले भगवान विष्णु ने कुमारो के प्रति बिल्कुल सत्य ही कहा – जो हवि वितान में बहते हुए घृत से लुफ्त है और दुत भुक् के मुख के द्वारा जिसको दग्ध कर दिया गया है उस यजमान के हवि को मैं उस प्रकार से नही खाता हूँ जो मुझमे अपहित कर्म वाको के द्वारा

लेखक महर्षि वेदव्यास-Maharshi Vedvyas
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 1108
Pdf साइज़64.6 MB
Category Religious

राम शर्मा आचार्य द्वारा भाषांतरित स्कन्द पुराण

देवर्षि श्री नारद जी ने कहा – इसके उपरान्त यह धन तब तक तुम्हारे पास ही रहे – यह उम धर्म वर्मा राजा से मैंने कह कर कि मैं जब मेरा कृत्य करने का समय ग्रावेगा तभी मैं इसे ग्रहण कर लूंगा। मैं फिर रैवत गिरि पर धागया था । १।

उस परम उत्तम पर्वत को देखते हुए मैं अत्यन्त अधिक प्रमुदित हो गया था जो साधु नरो को बुलाने वाला भूमि का ऊँचा उठा हुआ एक भुज की ही भाँति था ।

जिस पर्वत मे अनेक प्रकार के वृक्ष चारो ओर प्रकाश दे रहे थे जिस प्रकार से किमी परम साधु वृत्ति वाले ग्रह के स्वामी हो प्राप्त कर पुत्र एवं भार्ग्या आदि रहा करते हैं।

जहाँ पर कोकिल ग्रादि पक्षिगरण परम सतृप्त और प्रसन्न होते हुए निवास कर रहे थे जिम तरह से किसी सद्गुरु से ज्ञान से सुमम्पन्न शिष्यगण भूमण्डल में निवास किया करते हैं |२|३|४|

जहाँ पर मनुष्य तपश्रर्या करके अपने मन के प्रभीष्ठ मनोरथों की प्राप्ति किया करते है जैसे कोई भक्त साक्षात भगवान श्री

स्कंद पुराण क्या है?

स्कन्द पुराण 18 पुराणों में से एक महत्वपूर्ण पुराण है. पुराणों के क्रम में इसका तेरहवां स्थान है इसके पहजार श्लोक हैं। इस पुराण का नाम भगवान शंकर के बड़े पुत्र कार्तिकेय के नाम पर है। कार्तिकेय का ही नाम स्कन्द है। यह शैव संप्रदाय का पुराण है, जिसमें स्कन्द द्वारा तारकासुर के वध की कथा का वर्णन मिलेगा, स्कन्द पुराण में धर्म ज्ञान और नीतियों से सम्बंधित कई बातें बताई गयी है,

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