ज्ञान योग – Jnana Yoga Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
अतएव, गत्यक मे सत्य छिपा है यह कह कर और आजकल के ‘राम श्याम की समझ में नही माता यह का कर सभी प्राचीन बातो को ताक पर रख देना चाहिये, इसका भी कोई अर्थ नहीं है।
‘अमुक महापु्ूर ने प्रेसा कहा है, अतएव इस पर विश्वास करो इस प्रकार बोटने के कारण ही यदि सभी धर्म उपहासास्पद हो जाते है तब आजकल के छोग और मी उपहासास्पद हैं।
आजकल यदि कोई मूसा, बुद्ध अथवा ईसा की मुक्ति को उद्घृत करता है तो उसकी हँसी उद जाती है; कित्तु हस्सच, टिण्डल अथवा रबिन का नाम देते ही बात एकदम अफाटब और प्रामाणिक बन जाती है।
वृक्सले ने यह कहा’ हुतो के लिये तो इतना ही कहना पर्याप्त है ! मन्चमुच ही हम कुप्तरकारे या अन्य- विश्वासो से मुक्त हो गये हैं 1 पहले था
धर्म का कुसस्कार, अब है विज्ञान का कुसंस्कार किन्तु पहले बुसस्कार के भील एक जीवन- दीपक आध्यात्मिक भाव रहता था पर आधुनिक कुसंस्कार द्वारा तो बेबी याम और लोग ही उत्पन्न होता है ।
वह अविश्वास था ईश्वर की उपासना को ठेकर और आजकल का अन्धविश्वास है महाणित धन, यश और शक्ति की उपासना को लेकर ।
यही मेह है। अत्रे हम ऊपर कही हुई पौराणिक कथा के सम्बन्ध में विवेचना कहेंगे। इन सुव कथाको के भीतर यही एक प्रधान भाव देखने में आता है कि मनुष्य जिस अवस्था में पहले था अब उससे गिरी हुई दवा में है ।
आजकाल के तत्वान्वेपी लोग इस बात को एकदम अस्वी- यार करते हैं । क्रमविकासवादी विद्वानों ने तो मानो इस सत्य का सम्पूर्ण रूप से ही खण्डन कर दिया है। उनके मत मे मनुष्य एक विशेष प्रकार मांरल जन्तु Molhiass) का कमचिकास मात्र है,
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लेखक | स्वामी विवेकानंद-Swami Vivekananda |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 332 |
Pdf साइज़ | 10.4 MB |
Category | प्रेरक(Inspirational) |
ज्ञान योग – Gyan Yoga Book/Pustak Pdf Free Download
बहुत प्रशंसनीय कार्य. शत शत प्रणाम.
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nice post
pdf not in readable format https://jivanisangrah.com/