वेदांत दर्शन (ब्रह्मसूत्र) | Vedant Darshan PDF

वेदांत दर्शन को ब्रह्मसूत्र के नाम से भी जाना जाता है

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वेदांत दर्शन गीता प्रेस

महर्षि वेदव्यासरचित ब्रह्मसूत्र बडा ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें थोड़े-से शब्दों में परब्रह्मके स्वरूपका साङ्गोपाङ्ग निरूपण किया गया है, इसीलिये इसकर नाम ‘ब्रह्मसूत्र’ है।

यह ग्रन्य वेदके चरम सिद्धान्तका निदर्शन कराता है, अतः इसे ‘वेदान्त-दर्शन’ भी कहते है । वेदके अन्त या शिरोभाग ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद्के सूक्ष्म तत्त्वका दिग्दर्शन करानेके कारण भी इसका उक्त नाम सार्थक है ।

वेदके पूर्वभागको श्रुतियोंमे कर्मकाण्डका विषय है, उसकी समीक्षा आचार्य जैमिनिने पूर्वमीमांसा-सूत्रोंमे की है ।

उत्तरभागकी श्रुतियोंमें उपासना एवं ज्ञानकाण्ड है; इन दोनोकी मीमांसा करनेवाले वेदान्त-दर्शन या ब्रह्मसूत्रको ‘उत्तर मीमांसा’ भी कहते हैं ।

दर्शनों में इमका स्थान सबसे ऊँचा है; क्योंकि इसमें जोबके परम प्राप्य एवं चरम पुरुषार्थका प्रतिपादन किया गया है ।

प्रायः सभी सम्प्रदायोंके प्रवान-प्रवान आचायने ब्रह्मसूत्रपर भाष्य लिखे हैं और सबने अपने-अपने सिद्धान्तको इस ग्रन्यका प्रतिपाद्य बतानेकी चेय की है।

इससे भी इस ग्रन्थकी महत्ता तथा विद्वानों में इसकी समादरणीयता सूचित होती है। प्रस्थानत्रयीमें ब्रह्मसूत्रका प्रधान स्यान है।

यहाँ प्रसङ्गऋश ब्रह्मसूत्र और उसके प्रतिपाद्य विषयके सम्बन्धमे मी कुछ | निवेदन करना आवश्यक प्रतीत होता है । ब्रह्मसूत्र अत्यन्त प्राचीन अन्य है।

कुछ आधुनिक विद्वान् इसमें सांख्य, वैशेषिक, बौद्ध, जैन, पाशुपत और पाञ्चरात्र आदि मतोंकी आलोचना देखकर इसे अर्वाचीन बतानेका साहस करते हैं और बादरायणको वेदव्याससे भिन्न मानते हैं; परंतु उनकी यह धारणा नितान्त भ्रमपूर्ण है ।

ब्रह्मसूत्रमें जिन मतोंकी आलोचना की गयी है, वे प्रवाहरूपसे अनादि हैं । वैदिककालते ही सद्वाद और अमद्वाद ( आस्तिक और नास्तिकमत ) का विवाद चला आ रहा है।

इन प्रत्राहरूपसे चले आये हुए विचारोंमेंसे किसी एकको अपनाकर भिन्न-भिन्न दर्शनोंका संकलन हुआ है । सूत्रकरने कहीं भी अपने सूत्रमें सांख्य, जैन, बौद्ध या वैशेषेक मतके आचार्योंका नामोल्लेख नहीं किया है ।

उन्होंने केवल प्रधानकारणवाद, अणुकारणवाद, विज्ञानवाद अ दि सिद्धान्तोंकी ही समीक्षा की है।

सूत्रोंमें वादरि औडुांमि, जैमिनि, आश्मरथ्य, काशकृत्स्न और आत्रेय आदिके नाम आये हैं, जो अत्यन्त प्राचीन हैं; इनमेंसे कितनोंके नाम मीमांसासूत्रोंमें भी उल्लिखित हैं ।

पहला अध्याय

अथातो ब्रह्मजिज्ञासा ॥ १ । १ । १ ॥

अथ-अब; अतः यहॉसे; ब्रह्म जिज्ञासा- ब्रह्मविषयक विचार (आरम्भ किया जाता है)।

व्याख्या- इस सूत्रमे ब्रह्मत्रिपयक विचार आरम्भ करनेकी बात कहकर यह सूचित किया गया है कि ब्रह्म कौन है? उसका खरूपू क्या है? वेदान्तमे उसका वर्णन किस प्रकार हुआ है?— इत्यादि सभी ब्रह्मविषयक वातोंका इस ग्रन्थ- मे विवेचन किया जाता है।

सम्बन्ध-पूर्व सूत्रमें जिस ब्रह्मके विषयमें विचार करनेकी प्रतिज्ञा की गयी है, उसका लक्षण बतलाते हैं-

जन्माद्यस्य यतः ॥ १ । १ । २ ॥

अस्य इस जगत्के; जन्मादि जन्म आदि (उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय); यतः-जिस्से (होते है, वह ब्रह्म है)।

व्याख्या-यह जो जड-चेतनात्मक जगत् सर्वसाधारणके देखने, सुनने और अनुभवमें आ रहा है, जिसकी अद्भुत रचनाके किसी एक अंशपर भी विचार करनेसे बड़े-बड़े वैज्ञानिकोको आचर्यचकित होना पड़ता है, इस विचित्र विश्वके जन्म आदि जिससे होते है अर्थात् जो सर्वशक्तिमान् परात्पर परमेश्वर अपनी अलौकिक शक्तिसे इस सम्पूर्ण जगत्की रचना करता है, इसका धारण, पोषण तथा नियमितरूपसे सञ्चालन करता है; फिर प्रलयकाल आनेपर जो इस समस्त विश्वको अपनेमें विलीन कर लेता है, वह परमात्मा ही ब्रह्म है।

लेखक वेदव्यास-Vedvyas
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 420
Pdf साइज़15.8 MB
Category Religious

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