योग संजीवनी विद्या | Sanjeevani Vidhya PDF In Hindi

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संजीवनी विद्या – Sanjeevani Vidya Pdf Free Download

योग संजीवनी विद्या

वीर्य एक बहुत छोटासा शब्द है: पर उसमें बहुत बड़ा जादू भरा हुआ है । यह वीर्य श्रेषःसाधनाका गुरुमन्त्र है । यह त्रिभुवनपर विजय प्राप्त करनेवाली दैवी शक्ति है ।

यह पुरुषत्वका रहस्य है। वैदिक कालके पुण्यवान् ऋषि प्रार्थना किया करते थे कि-हे इन्द्र!

तू हमें वीर्यवान् पुत्र दे” देववान् बिटिश राष्ट्रकी यह भावना है कि केवल वीर्यवान् पुरुष ही तरुणीका पाणिग्रहण को और धैर्यवान् जर्मनोका यह मत है कि वीर्यहीन पुरुष इस संसारमें बीवित रहनेके योग्य नहीं है।

चाहे जगद्गुरु शंकराचार्यको देखिए चाहे जगद्विजयी नेपोलियनको देखिए योगशाखके प्रचारक पतंजलिसे लेकर कर्मयोगप्रचारक तिलक तक और शस्धारी राभचन्द्रसे लेकर सत्याग्रही गोधी तक देरिग्ण जितेन्द्रियं बुद्धि मतां वरिष्ट’ बलभीम या हनुमानसे लेकर रामदास

तक और रामदाससे लेकर विवेकानन्द तकके सभी वास्तविक समर्थ कार्यकर्ताओंकी परम्परापर ध्यान दीजिए, भारतीय भीष्मका अनन्य सामान्य चरित्र पढ़िए अथवा डार्विन और न्यूटनकी असाधारण आविष्करण-शक्तिपर ध्यान दीजिए, ये सभी लोग वीर्यवान् और पवित्रवीर्य थे और वीर्यवान् तथा पवित्रवीरयं ही हैं ।

मुगल और मराठे, ग्रीक और रोमन, स्पेनिश और डच लोग भी किसी समय वीर्यवान् और पवित्रवीर्थ थे ।

उस समय उन लोगोने सार्वभौमत्व सम्पादित किया था और उसकी रक्षा की थी। परन्तु जब बहुत अधिक उसति और वैभव के समय हीनवीर्य विलासिता बढ़ी, तब मुगलोके शासनका अन्त हो गया,

मराठोंका राज्य धूल में मिल गया; एथेन्स स्मृति-मात्र रह गया: रोम केवल इतिहासवेत्ताओं के लिए ही बच गया; स्पेनका होना और न होना बराबर हो गया; और डच राष्ट्र आमके पेड़पर रहनेवाले बोदेके समान दूसरोंके भरोसे रहकर अपना समय व्यतीत करने लगा।

सौभाग्यवश हमारी आर्य संस्कृतिमें वीर्यकी रक्षा और पवित्रतापर बहुत कुछ जोर दिया गया है।

व्यवहार रूपमें चाहे जो कुछ रहा हो, परन्तु स्वयं हमें वीर्यकी रक्षा तथा पवित्रताका महत्व कभी अमान्य नहीं था। माल विक्षास है

सभी प्राचीन समाजोंके लोगोंको यह बात भली भांति विदित हो चुकी थी कि वीर्य-संरक्षणका परिणाम आत्म-संजीवन होता है।

जिन छोगोंकी वृत्ति अध्यास्म-प्रबल होती थी और जो छोग शरीर-बरू और बुद्धि-बछूको विशेष महत्त्व देते थे, वे सब लोग यह बात बहुत अच्छी तरह जानते थे ।

बाइबलमे काम-वासनाकी उपमा साँपसे दी गई है और ईंसाके आरम्भिक चरित्रमँ तथा इंसाईं धमंकी बिलकुक आरम्मिक अवस्थामें ऐसा जान पडता है कि स्त्रियोंका अस्तित्व एक दमसे भुला ही दिया गया था।

रोसन और ग्रीक आदि प्राचीन पाइचात्य जातियोंमे वीयेकी रक्षाको बहुत अधिक महत्व दिया जाता था ।

हिन्दू धर्मम तो ब्ह्मचर्यका महत्व सबसे अधिक बतलाया गया है।

हमारे यहों बरह्मचर्यके नियम भी बहुत कठोर थेः: । केवल इतना ही नहीं, हमारे यहों तो यहाँ तक व्यवस्था की गईं थी कि जब तक विद्यार्थीका विद्याध्ययन समाप्त न हो जाय, तब तक वीय॑ंके प्रजोत्पादक और बाह्य व्ययकी कल्पना तकका उसके मनके साथ स्पशे न होने पाचे; और आगे चलकर विवाहित जीवन-फ्रममें भी अनेक नियमोंके द्वारा यह व्यय रोकने या टालनेका प्रयत्न किया जाता था।

वीयके नाशका मनुष्यको इतना उभ्र स्वरूप दिखलाया जाता था कि सन्तान-प्राप्तिकी आवश्यकता न होनेकी दशा व्यथे वीये नष्ट करना मानों बाल-हत्या करना था।

इसके उपरान्त आयुष्यके संन्यास और वानप्रस्थ नामक जो दो आश्रम होते थे, उनमें भी वीये नष्ट करनेका विचार तक करना अनिश्कारक कहा जाता था।

धार्मिक स्वरूपवाले अति प्राचीन और प्राचीन-प्राय सभी अन्थोंम जहाँ जहों अवसर आया है, वहाँ वहों बराबर कामनिषेधके रूपमे ब्रह्मचयेका बहुत आधिक महत्त्व बतलाया गया है ।

यहों तक कि यह कहनेमे भी कोई हानि नहीं है कि उसमें एकांगी और कठोरतापूणे स्वरूप आ गया है।

छूट गया जब कि वीयकी रक्षा और पवित्रताकों सबसे अधिक महत्त्व दिया जाता था, ओर अब आचरणमें तो प्रायः पूर्ण रूपसे और तात्विक विचारों तकसें बहुत बड़े अंशम वह सहत्व आयः नष्ट सा हो गया है।

ब्रह्मचर्यआश्रम अथवा विद्यार्थी-जीतवनमे ही अब युवकोंका मन विषय-वासनाके जालमें फैंस जाता हैं।

शहरोंकी भीड़-भाड़मे रहने, उपन्यास, नाटक आदि पढ़ने, सिनेमा आदिके दृश्य देखने तथा इसी प्रकारके दूसरे दृश्य और श्राव्य उत्कट शुंगारके कारण नवयुवक विद्यार्थियोंका मन पवित्र और स्थिर रहना प्रायः असम्भव हो गया है।

गृहस्थाश्रममे विवाहितोंमे तो इसका अतिरक सभी जगह देखा जाता है, साथ ही अविवाहितोंम मी विचारोंकी पवित्रता कम होती जाती है और नीति-विरुद्ध आचरण बढ़ता जाता है । संन्यास आश्रम तो अब प्रायः रह ही नहीं गया है।

अनेक प्रकारके वैषयिक विचारोंपे लोगोंका मन कलुपित होने लगा है ओर स्वप्नदोप, हस्तक्रिया+ अति ख्री-सम्भोग और व्यभिचार तथा वेइया-गमन आदि मार्गोसे समाजकी भीषण वीय-हानि होने रूग गई है।

इस बातकी कछ्पना कदाचित्‌ बहुत ही थोड़े लोगोंको होगी कि यह हानि कितनी व्यापक है और इससे कितनी बड़ी क्षति हो रही है ।

लेखक बाबू रामचंद्र वर्मा-Babu Ramchandra Varma
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 132
Pdf साइज़3.9 MB
Categoryआयुर्वेद(Ayurveda)

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संजीवनी विद्या – Sanjeevani Vidya Pdf Free Download

1 thought on “योग संजीवनी विद्या | Sanjeevani Vidhya PDF In Hindi”

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