आहार ही औषध है – Ahar Hi Aushadh Hai Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
संसार में ऐसी कोई भी चेक्न सत्ता नहीं है जो स्वयमेव स्वविनाशक (Self destructive) गुग रखती हो। जो शक्ति हमको सजती है वही हमको स्थिर भी रखती है- अच्छा भी करती है। इस शक्ति को केवल ईन्धन मिलते रहने की आव- श्यकता है।
से मिटिक धर्मप्रन्थों- बाइबल, कुरान आदि -की गाथ के अनुसार आदि मृष्टि से मनुष्य को म्बगे में अदन के उद्यान के केवल फल खाने का ही ईश्वरीय आदेश था और ज्यों हो उसने इस ईश्वरीय आज्ञा का उल्लंघन किया, यह स्वग से वहिष्कृत कर के मत्यलोग में पटक दिया गया।
इम ज्या से यही निष्कर्ष निकलता है कि अपने स्वाभाविक ( प्राकृतिक ) आहार फलों का परित्याग ही उसके मुखधाम (स्वर्ग) से पतन का कारण बना था। हमारे उदर (आमाशय) की रचना इस बात की पुष्टि केवल फल खान का ही ईश्वरीय आदेश था और ज्यों हो
उसने इस ईश्वरीय आज्ञा का उल्लंघन किया, यह स्वर्ग से वहिष्कृत कर के मर्त्यलोग में पटक दिया गया। इस गाथा से यही निष्कर्ष निकलता है कि अपने स्वाभाविक ( प्राकृतिक ) आहार फलों का परित्याग ही उसके सुम्बधाम ( स्वरग) से पतन का कारण बना था।
हमारे उदर ( आमाशय ) की रचना इस बात की पुष्टि करती है और जीवित और मृत जन्तुओं के आमाशयों के निरीक्षण से इसका प्रमाण मिला है कि मनुष्य निसर्गतः फलाहारी है । विज्ञान हमको यह बतलाता है कि यदि हम स्वस्थ रहना चाहते हैं
तो हमारा रक्त क्षारीय (Alkaline ) रहना चाहिए और ज्यों ही उस में अम्लता ( Acidity ) अ जाती है. हम रोगी हो जाते हैं। स्वाभाविक (प्राकृतिक ) रूप में फल और शाक हमारे रक्त को क्षारीय दशा में रखते हैं और कृत्रिम रीति से तैयार किये हुए अप्राकृतिक आहार. चाहे
लेखक | भवानी प्रसादजी-Bhavani PrasadJi |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 214 |
Pdf साइज़ | 10.5 MB |
Category | आयुर्वेद(Ayurveda) |
आहार ही औषध है | Ahar Hi Aushadh Hai Book/Pustak Pdf Free Download