संपूर्ण ऋग्वेद दयानंद सरस्वती | Rigved PDF In Hindi

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संपूर्ण ऋग्वेद दयानंद सरस्वती | Rigved In Hindi PDF

दयानंद सरस्वती के वेद की विशिष्ठता

कोई कुछ भी कहे, अभी माने वा न माने परन्तु अन्त मे मानना ही पड़ेगा कि महर्षि दयानन्द ने अपने वेदभाष्य से विश्व के विद्वानों की आंखें खोल दी हैं।

उनकी शैली और उनके सिद्धान्त को आगे चलकर सभी विद्यापु गर्व स्वीकार करेंगे। उनवा वेदभाष्य निम्न दृष्टियाँ वेद, वेदार्थ और उसको शैली के विषय मे प्रस्तुत करता है:

  1. वेद ईश्वरीय ज्ञान, ईश्वरप्रदत्त और नित्य है ।
  2. इसमे सभी सत्य विद्याओं का बीज विद्यमान है।
  3. वेद में किसी व्यक्ति विशेष का इतिहास या किसी प्रकार को कपोल कल्पित गायायें नहीं है।
  4. वेद ईश्वरीय ज्ञान होने से तर्क आदि से रहित नहीं, बल्कि तर्कसंगत और स्वयंसिद्ध सत्य का आकर है।
  5. वेद स्वत प्रमाण है, इसके प्रमाण के लिए प्रमाणान्तर की आवश्यकता नहीं।
  6. वेद के सभी शब्द यौगिक हैं ।
  7. सभी वेदमंत्रों का अर्थ आधियाज्ञिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक प्रक्रियाओं में हो सकता है ।
  8. वेदमंत्रों के अर्थ करते समय व्यत्यय मानना आवश्यक है क्योंकि वेद से व्याकरण का प्रादुर्भाव हुधा न व्याकरण से वेद का ।
  9. ऋषि मंत्रों के कर्ता नहीं, अपितु द्रष्टा हैं ।
  10. वेदमंत्रों का प्रतिपाद्य विषय हो देवता है, वह नियत नहीं, अपितु परिवर्तित भी हो सकता है।
  11. मंत्र और धन्द: समानार्थक हैं। धन्दः का प्रयोग गायत्री आदि छंद के लिए है। द्वन्द नाम इनका इसलिए है कि इन्हीं से विश्व की समस्त वस्तुएँ और
  12. स्वर हस्थ, दीर्घ, प्लुत और उदात्त, अनुदास, स्वरित आदि हैं जिनसे उच्चारण पर बल पड़ता है और अर्थ में भी उपयोग है।
  13. वेद नाम से चारों वेदों की चार संहितायें हो व्यवहृत होती हैं। शेष शाखायें और ब्राह्मणग्रन्थ आदि वेदों के व्यास्थान हैं।

वेदज्ञान ईश्वरीय प्रेरणा का फल है

वेद परम कारुणिक, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान् भगवान् की याणी है। यह ज्ञान और भाषा से संयुक्त है। प्रत्येक कल्प के प्रारम्भ मे परमेश्वर ऋषियों के हृदय में इसका प्रकाश करता है।

यह अनन्त और नित्य है तथा परमेश्वर की प्रेरणा का फल है। जैसा भगवान् स्वयं व्यापक और आकाश वृहद् विस्तार वाला है उसी प्रकार यह वेद वाणी भी विस्तृत है।

अथवा यो कहना चाहिए कि वेद का ज्ञान अनन्त है क्योंकि वह भगवान् का ज्ञान है। कुछ लोग ज्ञान और भाषा के विषय मे विकासवादी प्रक्रिया को अपनाते है जो सर्वथा ही अनुपयुक्त ओर अप्रामाणिक है।

ज्ञान प्राप्त ही प्रथमावस्था में भगवान् से होता है। गायत्री मंत्र मे “धियो यो नः प्रचोदयात् ” इसी बात का संकेत कर रहा है।

वेदों के नाम और विषय

चारों वेदों को वाणियां चार वेदों के नाम को धारण करती हुई भी मंत्र की रचना को दृष्टि से ऋक्, यजुः भोर सामरूप हैं। मंत्रो को यह तीन ही संज्ञायें हैं।

चौथा जो अथर्व वेद है उसके भी मत्र इन्ही सज्ञाओं वाले हैं जबकि वेद की दृष्टि से विचार करने पर वह चौथा वेद है । वेद मे ज्ञान और भाषा दोनों गये हैं।

ये पृथक् नहीं हो सकते हैं । भगवान् ने जहाँ ज्ञान दिया वहां भाषा भी दी । अतः वेद ज्ञान भी है और भाषा भी । परन्तु वेद की भाषा कभी भी संसार मे न बोलचाल की भाषा रही, न है, और न होगी ।

यदि वह किसी समय बोलचाल की भाषा बनाई जावे तो वन नहीं सकेगी । बोलचाल की भाषा मे रूढि शब्दों के विना कार्य नहीं चल सकता । परन्तु वेद मे रूढि शब्द है ही नहीं। सभी शब्द यौगिक हैं |

ऋग्वेद विज्ञान काण्ड है।

विज्ञान में गुण और गुणी वर्णन एवं विश्लेषण होता है । अतः इसका नाम ऋग्वेद है । अतः ऋग्वेद वह ज्ञान है जिसमें पदार्थों के गुणों का और धर्मों का वर्णन है।

‘ऋच् स्तुती धातु’ से ऋक् पद बना है। अर्थात् जो गुण ओर गुणी के ज्ञान का वर्णन करता है यह ऋक् है । महर्षि दयानन्द ने यजुर्वेद के भाष्य का प्रारम्भ करते हुए स्वनिर्मित आद्यश्लोक मे इसी भाव का वर्णन किया है ।

वे कहते हैं: — “ऋग्वेदस्य विधाय व गुणगुणिज्ञानप्रदातुवरं, भाग्यं काम्यमयो क्रिया -मययजुर्वेदस्य भाव्यं मया ।” अर्थात् ऋग्वेद जो गुण और गुणी के ज्ञान को देने वाला है उसके श्रेष्ठ भाष्य का प्रारम्भ करने के अनन्तर मेरे द्वारा कियामय यजुर्वेद के “भाष्य की इच्छा की जाती है ।

तैत्तिरीय आरण्यक कहता है कि “ऋग्भ्यो जात -सर्वशो मूर्तिमाहः सर्वाः मतो: याजुषी चैव सिद्धा” अर्थात् समस्त मूर्तपदार्थ ऋग् से प्रसिद्ध होते है और सारी गतियाँ यजुः से सम्बन्ध रखती है । अतः विज्ञानकाण्डात्मक ऋग्वेद का नाम सार्थक है ।

वेदार्थ के उपयोगी ग्रन्थ

चारों वेदों की मूल चार संहितायें परम प्रमाण है । संहिता नाम इनका इस लिए है कि ये पदों की प्रकृति हैं । संहिता के रूप में पद विभाग आदि नही हुआ रहता है।

संहिता नित्य होती है परन्तु पद छन्दः आदि विभक्त वाक्य नित्य नहीं होते । संहिताओं के पद पाठ बहुत उपयोगी हैं। पदपाठ का निर्धारण भी एक विद्या है। उदाहरण के लिए ‘मेहना’ पद को लिया जा सकता है ।

लेखक दयानंद सरस्वती – Dayanand Saraswati
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 985
Pdf साइज़20.15 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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हरिशरण सिद्धान्तालंकार रचित ऋग्वेद भाष्यम

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