प्राचीन भारत की सभ्यता का इतिहास | History Of Civilization Of Ancient India PDF In Hindi

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प्राचीन भारत की सभ्यता का इतिहास – Prachin Bharat Ki Sabhyata Ka Itihas PDF Free Download

भारत की प्राचीन सभ्यताएं

सर, वीर और उद्योग कार्य लोगों की ही “पांच जातियों ने, जो कि उसकी सहायक नदियों के उपचार तरटी पर खेती और राई करके रहती थी, अपनी सभ्यता हिमालय से लेकर कुमारी अन्तरीय तक दिलाई हैं।

अब हम पंजाब की इन पाँच जातियों के सामाजिक और [परेलू पाार – कारों के तथा उनके घरेलू जीवन के मनोरंजन और राम निफ्य का बर्यन करेंगे।

पहली यक्ष को कि हम लोगों को विस्मित करती है, यह है कि उस समय में वे इुरे नियम और स्क्वायर, और एक मनुष्य और दूसरे मनुष्य में समा एक जाति और दूसरी जाति में स्प्ट में नहीं थे |

जो कि ग्राम कल के हिन्दू समाज के बने दुस कनक लक्षण। हम लोग देख चुके हैं कि वैदिक समय के बलिष्ठ हिन्दू लोग गो मांस को काम में लाने में कोई बचा नहीं समझते थे और ये लोग अपने व्यापारियों को समुद्र पाश का वर्ण अभिमान के साथ करते ।

हम लोग यह भी देख चुके हैं ऋषियों को कोई अलग जाति नहीं होती थी और न वे अपना जीवन देयत उपत्या श्रीर भ्यान में संसार से अलग ही रहकर बिताते थे।

इसके बिपरीत, सुपी लोग सार के व्यवहारी मनुष्य होते थे जो कि बहुत से पशुओं के स्थामी होते थे, खेती करते थे |

बुद्ध के समय में आदिवासी श्र ओं से लड़ते थे और देवताओं से घन के लिये, पशु के लिये, युद्ध में विजय पाने के लिये और पनीखी बर बाल-बच्चों को मेल कामना के लिये प्रार्थना करते थे।

या्तय में प्रतयेक कुद्म्म का मुखिया, एक प्रकार केपी ही होता था और देवताओं की पूजा अपने पर में अपनी ही नम लिने करता था।

कुटुम्ब की राजयोँ भी पूजा में सम्मिलित होकर कार्य के सम्पादन करने में सहायता देती थी। परन्तु समाज में कुट लोग खुक बनाने और बड़े बड़े होन करने में या प्रधान थे र राजा तथा नी लोग ऐसे लोगों को ब़-बहे रों दात |

म० १० सू० ८६ रि० १४ में ऐसी जगह का वर्णन है जहां गोमैघ किया जाता था और म० १० सू० ६१ रि० १४ में घोड़ों, वेलों और भेड़ों के बलिदान का वर्णन है ।

घोड़ों के वलिदान का उल्लेख बहुत कम आया है जिससे जान ड़्ता है कि . यद्रपि पुराने आर्य लोग यह चाल अपने पहले रहने की जगह से ञ्ार्यावर्त में ले आये थे पर घोड़ों के मांस खाने की यह चाल यहां पर बहुत जल्दी उठ गई |

यहां पर पीछे के समय में तो घोड़े का वलिदान अर्थात्‌ अश्वमेघ” विरलेही कभी होता था। अर्थात जब कोई बड़ा प्रतापी राजा अपने आस-पास के सब राजाओं को जीत कर सम्राट ह की पदवी लेता, उस समय वह बड़ी धूम धाम से अश्वमेष्र॒ करता था ।

इसमें काई संदेह नहीं है कि राजाओं की यह बड़ी प्रथा उसी पुराने समय को घोड़ों के मारने की सीधीसादी चाल से निकली है जब कि घोड़े का मांस खाया जाता था।

पीछे के समय में अश्वमेध जिस धूमधाम और कुछ जघन्य रीतियों फे साथ किया जाता था थे. सब बातें वैदिक काल में नहीं थीं | है

वैदिक काल में घोड़ों के मारने का पूरा हाल ऋग्वेद के पहले मंडल के १६२ वें सूक्त में पाया जाता है। घोड़े की देह पर बेंत से निशान किया जाता था और फिर: चह इसी निशान की हुई लकीर पर से काटा जाता था |

उसकी पसलियां और सब अंग अलग-अलग कर दिये जाते थे |

फिर उसका मांस सेंक कर उवाला जाता था और यह समझता जाता था कि घोड़ा देवताओं को पहुँच गया ।

यह कोन विश्वास कर सकता था कि ऋग्वेद का सीधा-सादा अश्ववष श्रर्थात्‌ पूजा ओर भोजन के लिये घोड़े की बोटी-बोटी काट कर और उसे सेंक कर उवालने की रीति आगे चल कर इतनी वढ़ जायगी और अन्त में राजाओं का अश्वमेध हो जायगी पर वेद की वहुत-सी सीधी-सादी और स्वाभाविक बातें पोछे के समय में इसी तरह से वढ़ कर विविध विघानों की वड़ी-बड़ी रीतें हो गई हैं।

वेद के बहुत से रूपकों ने जो कि सृष्टि से अदभुत दृश्यों के विषय में हैं, पुराणों में बड़ी लम्बी चौड़ी कथाओं का रूप धारण किया है।

वेद की सच्ची प्रतिष्ठा इसी में है कि उससे हम लोगों को हिन्दुओं की रीति व्यवहार की और साथ ही उनके घर्म की उत्पत्ति का पता लगता ह |

ऐसा जान पड़ता है कि वैदिक समय में नशे की पीने बाली चीज केवल एक मात्र सोम वृत्त का उबला हुआ रस ही था |

पुराने आये लोगों को इसका इतना व्वयेन था कि आर्यावर्त और ईरान में ( ईरान में ‘हओ्नोम” के नाम से ५ जल्दी ही इसकी पूजा देवता की तरह होने लगी और ऋग्वेद के एक घुरे मंडल में इक देवता

लेखक रमेश चन्द्र दत्त-Ramesh Chandra Datt
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 614
Pdf साइज़24.1 MB
Categoryइतिहास(History)

Telangana History PDF

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