पतंजलि योग सूत्र ओशो – Patanjali Yoga Sutra Osho Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
अगर वह सपने देख रहा है तो उसकी ओखें लगातार गतिमान हो रही होंगी-मानी वह बेद आंखों से कुछ देख रहा है जब वह स्वप्ररहित गहरी नंद में है तो उसकी आंखें गतिमान नहीं होंगी; ठहरी हुई होगी।
जब आंखें गतिमान हों और तुम्हें बाधा पहुंचाई जाये, तो सुबह तुम थके-मंदि अनुभव करोगे। और यदि आंखें थिर हों और नींद तोड़ो जाये तो सुबह उठने पर कोई थकावट महसूस नहीं होती, कुछ खोता नहीं।
अनेकों शोधकर्ताओं ने प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य का मन सपनों पर ही पलता है। यदयपि सपना पूर्णतः एक स्वचालित वंचना है। फिर यह सपनों की बात केवल रात के विषय में ही सच नहीं है; जब तुम जागे हुए होते हो तब भी मन में कुछ ऐसी ही प्रक्रिया चलती रहती है।
दिन में भी तुम अनुभव कर सकते हो कि किसी समय मन में स्वप्र तैर रहे होते हैं और किसी समय स्वप्न नहीं होते हैं। दिन में जब सपने चल रहे हैं और अगर तुम कुछ कर रहे हो तो तुम अनुपस्थित से होओगे क्योंकि कहीं भीतर तुम व्यस्त हो।
उदाहरण के लिए, तुम यहां हो, यदि तुम्हारा मन स्वप्रिल दशा में से गुजर रहा है, तो तुम मुझे सुनोगे बिना कुछ सुने क्योंकि मन भीतर व्यस्त है। और अगर तुम ऐसी स्वप्रिल दशा में नहीं हो, तो ही केवल तुम मुझे
सुन सकते हो। मन दिन-रात इन्हीं अवस्थाओं के बीच डोलता रहता है-गैर-स्वप्न से स्वप्न में, फिर स्वप्न से गैर-स्वपन में । यह एक आंतरिक लय है। इसलिए ऐसा नहीं है कि हम सिर्फ रात्रि में ही निरंतर सपने देखते हैं, जीवन में भी हम अपनी आशाओं को भविष्य की ओर प्रक्षेपित करते रहते हैं।
लेखक | ओशो-Osho |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 450 |
Pdf साइज़ | 139.3 MB |
Category | स्वास्थ्य(Health) |
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