पतंजलि योग सूत्र ओशो | Patanjali Yoga Sutra Osho PDF In Hindi

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पतंजलि योग सूत्र ओशो – Patanjali Yoga Sutra Osho Pdf Free Download

पतंजलि योग सूत्र ओशो

अगर वह सपने देख रहा है तो उसकी ओखें लगातार गतिमान हो रही होंगी-मानी वह बेद आंखों से कुछ देख रहा है जब वह स्वप्ररहित गहरी नंद में है तो उसकी आंखें गतिमान नहीं होंगी; ठहरी हुई होगी।

जब आंखें गतिमान हों और तुम्हें बाधा पहुंचाई जाये, तो सुबह तुम थके-मंदि अनुभव करोगे। और यदि आंखें थिर हों और नींद तोड़ो जाये तो सुबह उठने पर कोई थकावट महसूस नहीं होती, कुछ खोता नहीं।

अनेकों शोधकर्ताओं ने प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य का मन सपनों पर ही पलता है। यदयपि सपना पूर्णतः एक स्वचालित वंचना है। फिर यह सपनों की बात केवल रात के विषय में ही सच नहीं है; जब तुम जागे हुए होते हो तब भी मन में कुछ ऐसी ही प्रक्रिया चलती रहती है।

दिन में भी तुम अनुभव कर सकते हो कि किसी समय मन में स्वप्र तैर रहे होते हैं और किसी समय स्वप्न नहीं होते हैं। दिन में जब सपने चल रहे हैं और अगर तुम कुछ कर रहे हो तो तुम अनुपस्थित से होओगे क्योंकि कहीं भीतर तुम व्यस्त हो।

उदाहरण के लिए, तुम यहां हो, यदि तुम्हारा मन स्वप्रिल दशा में से गुजर रहा है, तो तुम मुझे सुनोगे बिना कुछ सुने क्योंकि मन भीतर व्यस्त है। और अगर तुम ऐसी स्वप्रिल दशा में नहीं हो, तो ही केवल तुम मुझे

सुन सकते हो। मन दिन-रात इन्हीं अवस्थाओं के बीच डोलता रहता है-गैर-स्वप्न से स्वप्न में, फिर स्वप्न से गैर-स्वपन में ।

यह एक आंतरिक लय है। इसलिए ऐसा नहीं है कि हम सिर्फ रात्रि में ही निरंतर सपने देखते हैं, जीवन में भी हम अपनी आशाओं को भविष्य की ओर प्रक्षेपित करते रहते हैं।

आपनेकि रात कहा दक एक समग्र लनराशा लवफिता और आशारलहतता योग का प्रारंलभक आधार बनाती हैं। यह बात योग को लनराशावादी स्वप्न देती है। योग के पर् पर बढ़नेके लिए क्या सचमुच लनराशापूर्णअवस्र्ा की जरूरत होती है? क्या आशावादी व्यलि भी योग केपर् पर बढ़ना आरंभ कर सकता है?

योग इन दोनों मेंसेकु छ नहीं। यह न लनराशावादी हैऔर न ही आशावादी। क्योंदक लनराशावाद और आशावाद एक ही लसक्केकेदो पहिूहैं। लनराशावादी व्यलि वह हैजो पहिेअतीत मेंआशावादी र्ा। आशावादी का अर्णहैवह जो भलवष्य मेंलनराशावादी बनेगा। सारेआशावाद िेजातेहैंलनराशावाद तक क्योंदक हर आशा िेजाती हैलनराशा तक।

यदद तुम अब तक आशाएं दकयेचिेजा रहेहो, तब योग तुम्हारेलिए नहीं। इ्छाएं हैं, आशाएं हैं, वहां संसार अभी है।

तुम्हारी इ्छाएं ही संसार हैऔर तुम्हारी आशा बंधन है, क्योंदक आशा तुम्हेंवतणमान मेंहोनेन देगी। यह तुम्हेंजबरदस्ती भलवष्य की ओर िेजाती जायेगी, तुम्हेंकें द्रीभूत न होनेदेगी। यह खीचेगी और धके िेगी िेदकन यह तुम्हेंलवश्रामपूर्णक्षर् में, लस्र्रता की अवस्र्ा मेंरहनेन देगी। यह तुम्हेंऐसा न होनेदेगी।

इसलिए जब मैंकहता हंसमग्र लनराशा की बात, तो मेरा मतिब होता हैदक आशा लवफि हो गयी और लनराशा भी लनरर्णक बन गयी।

तब वह लनराशा समग्र है। एक संपूर्णलनराशा का अर्णहैदक कहीं कोई लनराशा भी नहीं है, क्योंदक जब तुम लनराशा अनुभव करतेहो तो एक सूक्ष्म आशा वहां होती है, वरना तुम लनराशा महसूस करो ही क्यों? आशा अभी बाकी है, तुम अब भी उससेलचपकेहुए हो; इसलिए लनराशा भी है।

संपूर्णलनराशा का मतिब हैदक अब कोई आशा न रही। और जब कोई भी आशा न रहेतो लनराशा भी बच नहीं सकती। तुमनेपूरी प्रदक्रया को ही लगरा ददया।

दोनों पहिूफें क ददयेगये, सारा लसक्का ही लगरा ददया गया। मन की इस अवस्र्ा मेंही तुम योग केमागणमेंप्रलवष्ट हो सकतेहो, इससेपहिेहरलगज नहीं। इससेपहिे तो कोई संभावना नहीं। आशा योग केलवपरीत है।

योग लनराशावादी नहीं है। तुम आशावादी या लनराशावादी हो सकतेहो, िेदकन योग इन दोनों मेंसे कु छ नहीं है।

अगर तुम लनराशावादी हो, तो तुम योग केमागणपर नहीं बढ़ सकतेक्योंदक एक लनराशावादी व्यलि अपनेदुखों सेही लचपका रहता है।

वह अपनेदुखों को लतरोलहत न होनेदेगा। एक आशावादी व्यलि लचपका रहता हैअपनी आशाओं सेऔर लनराशावादी लचपका रहता हैअपनेदुखों से, अपनी लनराशा से।

वह लनराशा ही संगी—सार्ी बन जाती है। योग उसकेलिए ही हैजो न तो आशावादी हैऔर न ही लनराशावादी।

यह उसकेलिए हैजो पूरी तरह यूंलनराश हो चुका हैदक लनराशा को महसूस करना तक व्यर्णहो गया है।

लेखक ओशो-Osho
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 450
Pdf साइज़139.3 MB
Categoryस्वास्थ्य(Health)

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