धारणा और ध्यान – Dharna Aur Dhyan Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
जितना अधिक आप ईश्वर में मन को एकाग्र करेंगे। आपका मन उतनी ही शक्ति अर्जित करेगा। अधिक धारणा अर्थात् अधिक ऊर्जा धारणा प्रेम अथवा अनन्तता के साम्राज्य के आन्तरिक प्रकोडों को खोलती है। धारणा ज्ञान के कोष को खोलने की एकमात्र चाबी है।
भारणा करें। ध्यान करें। गहन चिन्तन-शक्ति का विकास करें। अनेक जटिल बिन्दुतबएकदम स्पष्ट हो जायेंगे।
आपको अपने भीतर से ही उत्तर एवं हल प्राप्त होंगे। अपने ज्ञान एवं साक्षात्कार की पुष्टि हेतु शुकदेव जी को राजा जनक के पास बाना पड़ा था।
राजा जनक ने अपने दरबार में उनकी परीक्षा ली थी। उन्होंने शुकदेव का ध्यान भटकाने के लिए अपने महल के चारों ओर नृत्य एवं संगीत की सभाएं आयोजित की और शुकदेव को हाथ में एक दूध से भरा हुआ प्याला ले कहल के तीन चक्कर लगाने के लिए कहा,
लेकिन प्याले से दूध की एक भी बूंद नहीं गिरनी चाहिए थी। सुकदेव जी तो अपनी आत्मा में पूर्ण स्थित थे, इसलिए वे परीक्षा में कोई भी उनके मन को विचलित नहीं कर सकता था। सफल रहे। से आप नरश्रेष्ठ धारणा का अभ्यास धीरे-धीरे स्थिरतापूर्वक करें।
इसके अभ्यास बन जायेंगे। आपको प्रारम्भ में मन को उसी तरह बहलाना होगा, जिस प्रकार बच्चे को महलाते हैं। मन भी एक अज्ञानी बच्चे की तरह है। मन से कहें “अरे मन, तुम मिष्या निरर्थक नाशवान् वस्तुओं के पीछे क्यों भागते हो?
तुम्हें इसमें अनेक कष्ट होंगे। भगवान् कृष्ण की ओर देखो, जो सर्वाधिक सौन्दर्यशाली हैं इससे तुम्हें नित्य आनन्द की प्राप्ति होगी। तुम संसार के प्रेम-गीतों को सुनने के लिए क्यों भागते हो? भगवान् के भवन सुनो। आत्मा को झंकृत करने वाले कीर्तनों को सुनो। तुम्हारा उत्थान होगा।”
लेखक | स्वामी शिवानंद सरस्वती-Swami Sivananda Saraswati |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 156 |
Pdf साइज़ | 69 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
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