बृहन्नी घंटु रत्नाकर | Ghantu Ratnakar All Four Parts PDF In Hindi

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बृहन्नी घंटु रत्नाकर भाग 1,2,3,4 – Brihni Ghantu Ratnakar All Four Parts Pdf Free Download

बृहन्नी घंटु रत्नाकर

अर्थ-माळी, चमार, नाई, धोबी और वृद्ध रैडा के, वे पांच वैध देखो ऐसे वैद्योंके होमसे कैसा बनर्थ हुआ है कि इनके बागे अब पदे लिये व की पूछ कम होगा और इसी कारण हिन्दुस्थान में मायुर्वेद शास्त्रका पठन पाठन दिन प्रति दिन अस्तपायसा होगया।

दूसरे ऐसेही वैद्यों से अब वैद्योंकी औषधका विश्वास जाता रहा । और पूर्व म नुष्प कहते हैं कि आज कल हकीमोंकी और डाक्टरोंकी औषध तत्काल फल दापक है और जो शारीरक अर्थात् देहके अवयकोंका स्थान तथा पीरना] काडना,

तथा यंत्र और शन इत्यादि इनके दो, हमारे बैय शास्त्रमें तो देखनेकोमी नहीं ह ऐसे ऐसे अनेक कारणोंको सोचा तो यही निश्चय हुमा ।कि यह केवल अपने बडेमयोंक पठन पाठन उठ जानेका कारण यदि अपने परन्योंको देखें तो

कदापि डॉक्टर और इकीमोंकी विद्यामें खालखा न होने। दूसरे इस उष्ण प्रधान देशमें यूरोप आादि शरीवंदेशोकी अतिठीव्ण औीषषोंड़ी अपेकषा इमारी भारतीय सुदुवीर्थ्य नौपधि सर्वदा कल्याण कर्ता है इससे हमको चाहिये कि अपने

प्राचीन ग्रन्थोंको अवश्य देखें, परन्तु प्रेम उम प्रन्योंका मिलना काठन, यदि मिलेभी और शुदाद मिले तो फिर क्या कामके अभीर] शुदगरन्धमी] मिडे. तो उनके पढानेवाले तया पढनेवाले न मिलेंगे, इन सब कारणोंको विचार यह निश्चय हुआ कि ।

कोई ऐसा प्रन्य रचाया कि जिसके देखनेसे दी स्प विषय सुगम रीतिले मालूम होजावे और जो जो विषय जिस २ पन्यके उत्तम हो वो इसमें पयाक्रमपूर्वक लिसे औवे, तथा उचित २ स्थानोंमें फारसी ईमेजीका भी मत म

. काशित कराजाचे यद पिचार इमने बुहत्रिपंटुरसनাकर परन्थ रचनेका आरंभ करा ।इस अन्थमें आयुर्वेदोत्पत्तिनामाध्याय, शिष्योषनयनीयाध्याप, अध्यपनर्ंबरदा- नीयाध्याप, प्रभागीयाध्याय, इऔषधोंके तोल हिन्दी, अंग्रेजी, फारसी; स्वरस मैया दिम फांट कथा तेक।

चुुत आदि की विधि, पावनका शोधन मारण सविस्तर वर्णन होगा वमन विरेचन, अनुवासन, स्वेदन, और मेहनविधि, धूम्रपान, गंडूषविधि, जोक दागना, फस्तखोडना, नेत्रमखादन कर्म, नाड़ीपरीक्षा, सूत्रपरक्षा, नेत्र परीक्षा , जिहापरीक्षा रुपर्थ स्वर

अर्थ- पढानेवाला आचार्य प्रथम शिष्यकी इस प्रकार परीक्षा करे ब्रह्मण, क्षत्री और वैश्य, इनमें से किसी जातका दो उत्तम कुछ ( इस जगे कुलशब्दसे आयुर्वे दाध्ययनकर्ता कुलसे प्रयोजन है)

नई अवस्था अथवा तरुण अवस्था शील स्व- भाव, शूरवीर, बाहर भीतरसे शुद्ध परंपरागत कुछ देश और लौकिक आचारवाला, नीवाडा, उत्साहवाला, बली, बुद्धिवान्, पृति (जिहा और लिंग इन्द्रियका जीतने वाला) पढीहुई अथवा देखी वस्तुको स्मरण रखनेवाला, अप्राप्त वस्तुको ज्ञान- बानू, बड़े भारी कामको करनेवाला, सर्व अंग और सर्व इन्द्री जिसके होवे, वशी- मूत, किसी कार्य में बंधा न हो, जुआ, चोरी, वेश्यागमन, आदि व्यसनवाला न होवे |

पटने की और ज्ञान कर्मके जानने की इच्छावाला, पडने के सिवाय जिसको दूसरा कार्य न हो, लोभी न हो, आउसी न होय, और जीम, होठ, दांत ए पतले होवे मुख, नेत्र, नाक, ए जिसके सुडोल और देखने योग्य हो, जिस्की प्रसन्न चित्त, वाणी, और पेष्टा, होये ।

दुःखको सहनेवाला, ऐसे शिष्यको वैद्य उपनयन करे । और जो गुण कहे इनसे विपरीत गुणवाले शिष्यको उपनयन (दीक्षा) न देवें ।

उपनीयस्तु त्राह्मणः उदगयनेशुकपक्षेप्रशस्तेऽहनि पुष्यहस्त श्रवणाऽश्वयुजामन्यतमेन नक्षेत्रेणयोगमुपगते भगवतिशशिनि कल्याणेतिथिकरण सुमुहूर्तेनातः कृतोपवासोमुण्डः कषायव स्त्रसंवीतः समिधोऽग्निमाज्यमुपलेपनमुदककुम्भश्च सगन्धह स्तमाल्यदामहिरण्यान्हेमरजतमणिमुक्ताविद्रुमक्षौमपरिधि कुशलाजसर्षपाऽक्षतांश्चशुक्काश्चसुमनसोग्रथिताग्रथिता मेध्या न्भक्ष्यान्गन्धांश्चपिष्टापिष्टानादायोपतिष्ठस्वेति ॥

अर्थ- उपनीय ( दीक्षाके योग्य ) तो ब्राह्मण है।

उत्तरायण, शुक्रपक्ष उत्तम- दिवस, पुष्प, हस्त, श्रवण और अश्विनी, इनमें से कोई नक्षत्रपर चन्द्र होवे कल्याण कर्ता तिथि, करण, और मुहूर्त्त होवे, तब गुरु शिष्य से कहे कि अमुक समय पर स्नान कर उपवास करना क्षौर कराकर मुंडित हो गेरुले रंग के वस्त्र पनि कर समिधा, अमि, घृत, उपलेपन ( छीपना ) जल भरे कलश, सुगंधितवस्तु माला, डोरी, सोना, चांदी, मणि, भीती मूंगा, रेशमीवख यज्ञके वृक्ष, कुशा, खील, सरसो, अक्षत, सफेद चावल, सुंदर फूल और फूलोंकी माला, पवित्र और भोजनके पदार्थ, चंदन इनमें पिसे हुए तथा विना पिसे (चून, धान, आदि) सर्व सामिग्री लेकर तैयार रहना इस प्रकार सुन शिष्य उसी प्रकार करे ।

लेखक दत्तराम श्रीकृष्ण माथुर-Dattaram Shri Krishna Mathur
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 442
Pdf साइज़39 MB
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