पतंजलि योग सूत्र योग दर्शन – Patanjali Yog Sutra Yog Darshan Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
व्याख्या-इस सूत्र में कहा गया है कि चित्त की वृत्तियों का सर्वथा रुक जाना ही ‘योग’ है। योग संकल्प की साधना है।
यह अपनी इन्द्रियों को वश में कर चेतन आत्मा से संयुक्त होने का विज्ञान है। यह हिन्दू मुस्लिम, जैन, ईसाई में घेद नहीं करता।
यह न शास्त्र है, न धर्म ग्रन्थ। यह एक अनुशासन है मनुष्य के शरीर, इन्द्रियाँ, मन आदि को पूर्ण अनुशासित करने वाला विज्ञान है चित्त वासनाओं का पुंज है।
अनेक जन्मों के कर्म- संस्कार इसमें विद्यमान हैं जिससे हमेशा इसमें वासना की तरंगें उठती रहती हैं चैतन्य आत्मा इससे परे है।
जब तक महासमुद्र में तरंगें उठती रहती हैं तब तक चन्द्रमा का विम्ब उसमें स्पष्ट दिखाई नहीं देता इसी प्रकार चित्त में बासना की तरंगों के निरन्तर उठते रहने से आत्म-ज्योति का बोध नहीं होता (योग नहीं होता)।
इसलिए पतंजलि कहते हैं कि चित्त की वृत्तियों का सर्वथा रुक जाना ही ‘योग’ है |
इसी से चैतन्य आत्मा का ज्ञान होगा तथा इसी ज्ञान से मोक्ष होगा ये चित्त की वृत्तियाँ बहिर्मुखी हैं जो सदा संसार की ओर ही भागती हैं इसलिए मन सदा चंचल बना रहता है।
इन पत्तियों की तरंगों को सर्वथा रोक देने से ही योग हो जाता है, अन्य कुछ करना नहीं पड़ता। बुद्धि और मन चित्त की ही अवस्थाएँ हैं।
इस चित्त-वृत्ति निरोध को ‘अमनी-अवस्था’ भी कहते हैं। कबीर ने इसे सुरति’ कहा है। इसके स्थिर होने पर साधक केवल साक्षी या दृष्टा मात्र रह जाता है, वासनाएँ सभी छूट जाती हैं।
यही आत्म-ज्ञान की स्थिति है पतंजलि ने बहुत ही संक्षेप में समस्त योग का सार एक ही सूत्र में रख दिया कि ‘चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। यही सारभूत सत्य है।
लेखक | महर्षि पतंजलि-Mahrshi Patanjali |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 250 |
Pdf साइज़ | 9.1 MB |
Category | स्वास्थ्य(Health) |
पतंजलि योग दर्शन गीताप्रेस
पंडित राजाराम रचित योग दर्शन हिंदी भाष्य
पतंजलि योग सूत्र योग दर्शन – Patanjali Yog Sutra Yog Darshan Book/Pustak Pdf Free Download
Online yoga quiz competition in 2021 help me
Superb effort to humanity मैं आपको हृदय से नमस्कार करता हूं