पद्म पुराण संस्कृत हिंदी | Padma Purana Sanskrit PDF

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पद्म पुराण हिंदी में – Padma Purana Hindi Free Pdf Download

पद्मपुराणकी रचनाका आधार

पद्मपुराणकी रचनाका आधार विनू लोग ‘पउमचरित’ को मानते हैं, जो कि भ०महाबोर के निर्वाण के खाग भग ४५० वर्ष बाद रचा गया है, उसमें भी इसी प्रकार का उल्लेख है जिससे भी यही सिद्ध होता है कि उस समय बाश्मीकि रामायण जन-साधारणमें अत्यन्त प्रसिद्ध थी और उसमें चित्रण किया गया राम रावण का चरित्र ही लोग यथार्थ मानते थे ।

राम और रावयके चरित्र-विषयक भ्रान्तिके दूर करने के लिये ‘पउमचरित’ और प्रस्तुत पद्मचरितको रचना हुई है।

पद्मपुराण का रचना-काल

संस्कृत पश्चचरितकी रचना भ० महावीरके निर्वाणसे १२०३ वर्ष बाद हुई है० । यदि पोरनि० से ४७० वर्ष 1 बाद विक्रम संवत्का प्रारम्भ माना जाय, तो पद्मपुराणका रचनाकाल विक्रम सं० ८३४ में समझना चाहिए।

दिगम्बर सम्प्रदाय में उपलब्ध कथा-साहित्य में २-१ ग्रन्थोंको छोड़ कर यह ग्रन्थ सबसे प्राचीन है। यदि प्राकृत पदमचरिङ’ भी दिगम्बर ग्रन्थ सिद्ध हो जाता है (जिसका कि अभी अन्तरंग परीक्षण नहीं हुआ है ) तो कहना पड़ेगा कि दिगम्बर कथा-ग्रन्थोंमें यह सर्व प्रथम है ।

रामचरित्रका चित्रण

रामका चरित्र-चित्रण करने वाले ग्रन्थोंमें स्पष्टत: दो प्रकार पाये जाते हैं, एक पद्मपुराणका प्रकार और बूस उत्तरपुराणका प्रकार जहां तक पद्मपुराण की कथाका सम्बन्ध है, वह प्रायः रामायणका अनुसरण करती है।

पर उत्तरपुराण में रामका चरित्र एक नवीन ही ढंग से चित्रित किया गया है। दोनों में कौन कथानक सत्य है, या सत्यके अधिक समीप है, इस बात के निर्णय करनेकी न कोई सामग्री उपलब्ध है और न हमसे उसके निर्णय करने की शक्ति और योग्यता ही है ।

हम केवल धवलाकार वीरमेनाचार्य के शब्दोंमें इतना ही कह सकते हैं कि दोनों ही प्रामाणिक म.चार्य हुए है, और हमें दोनों ही प्रकारों का समह करना चाहिए, याचे स्वरूप तो केवलज्ञान-गम्य ही है ।

इन जीवनिने भल्या, इनका मैं मख्या नाना रूप ये योनिये विनविरष में बहुत हुख भोगे, अर बहुत बार रुइन किया । अर करके शब्द सुने ।

अर बडुत यार बीखाबांसुरी भादि यादिय्रोंके नाद मुने, गीतसुने,जुत्य देखे, देवलोकविौ मनोहर अप्सरानि के भोग भोगे, अनेक बार मेरा शरीर नरकविर्षे कुम्हानिकर काटा गया, भर अनेक बार मनुष्यगतिविष महा सुगन्ध महा वीर्य करवाहारा पट्रस संयुक्त अथ आहार किया ।

बर अनेक वार नरकवष गला सीसा अर तांवा नाडियोंने मार मार मुझे प्याया अर अनेक बार सुर नर गतिविर्ष मनके हरणहारे सुन्दर रूप देखे अर सुन्दर रूप धार ।

अर अनेक बार नरक विषय महा रूप घारे अर नाना प्रकारके त्रास देखें। कयक वार सजपद टेवपट विर्ष नाना प्रकारके सुगन्ध सू , तिनपर भ्रमर गुजार करें अर केयक वार नरककी महा दुर्गन्ध पी ।

अर अनेक बार मनुष्य तथा देवगतिविर्ष महालीलाकी धरणडारी बर्त्रामरण मंडित, मन की चोरनहारी जे नारी तिनसों आलिंगन किया ।बहुत बार नरकविर्ष कूटशान्मलि वृक्ष तिनके तीचण केटक अर प्रज्यलिती लोहकी पुतलीनिसे म्पर्श किया ?

या संसारविष कर्मनिके संयोगत में कहा कदा न देखा, कहा कहा न सपा, कहा कहा न मुना, कहा कदा न भखा भर पृथिवीकाप,जलकाय, अग्निकाय, वाधुकाय पनस्पतिकाप, श्रसकापविर्म प्रसा देह नाही जो मैं न धारा,

तीनलोकवि ऐसा जीव नाहीं जाय मेर अनेक नाते न भए, ये पुत्र मेरे कई बार पिता भए, माता भए, शत्रु भए, मित्र भए, ऐसा स्थानक नाही, जहां में न उपजा, न मुआ ।

ये देह भोगादिक अनित्य या जगतविष कोई शरण नाहीं, यह चतुर्गतिरूप संसार दुख्वका निवास है, में सद। अकेला ह ये १ट्टव्य परस्थर सबही भिन्न हैं, यह काय अशुचि में पवित्र, ये मिश्या- मैं स्वादि अग्रतादि कर्म आसयके कारण।

भावार्थ-सिद्ध कहिए मुक्ति अर्थात् सर्व बाधा रहित उपमा रहित अनुपम अविनाशी जो सुख ताकी प्राप्तिके कारण श्रीमहावीर स्वामी जो काम, क्रोध मान, मद, माया, मत्सर, लोभ, अहंकार पाखण्ड, दुर्जनता, वुधा, तृषा व्याधि, बेदना, जरा, भय, रोग, शोक, हर्ष,जन्म, मरणावि रहित हैं।

शिव कहिए अविनश्वर हैं द्रव्यार्थिकनयसे जिनकी आदि भी नाहीं और अन्त भी नाही, अछेद्य, अभेद्य, क्लेशरहित, शोकरहित, सर्वव्यापी, सर्वसम्पुख, सर्वविद्याके ईश्वर हैं ।

यह उपमा औरोंको नाहीं बने है । जो मीमांमक, सांख्य, नैयायिक, वैशेषिक, बौद्धा दिक मत हैं

तिनके कर्ता जैमिनि, कपिल, काणभिक्ष, अक्षपाद, कणाद युद्ध हैं वे मुक्तिके कारण नहीं ।

जटा मृगछाला वस्त्र अस्त्र, शस्त्र, स्त्री रुद्राद कपालमालाके धारक हैं और जीबोंके दहन घातन छेदनविर्षे प्रवृत्त हैं । विरुद्ध अर्थ कथन करनेवाले हैं।

मीमांसक तो धर्मका अहिंसा लक्षण बताय हिंसाविषे प्रवर्ते हैं और सांख्य जो हैं सो आत्माको अकर्ता और निगुण भोक्ता मान है और प्रकृति हीको कर्ता माने है ।

और नैयायिक वैशेषिक आत्माको ज्ञानरहित जढ़ माने हैं और जगतकर्ता ईश्वर माने है ।

लेखक पं. दौलतराम जी – Pt. Daulatram Ji
भाषा हिन्दी, संस्कृत
कुल पृष्ठ 710
Pdf की साइज़ 40.2 MB
CategoryReligious

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