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पद रत्नाकर एक अध्ययन | Pad Ratnakar Ek Adhyayan PDF Free Download

श्रीपोद्दारजीकी काव्य-रचनाके प्रेरकतत्त्व
हिन्दी काव्य जगत्में श्रीपोद्दारजीका उदय ऐसे समयमें हुआ जब भारतीय जनमानस शिक्षा एवं सभ्यताके प्रभावसे भारतीय संस्कृतिके प्रति उत्तरोत्तर उदासीन होता जा रहा था।
हमारे साहित्य एवं प्राचीन संस्कृतिके प्रति शिक्षित वर्गकी आस्था उठने लग गयी थी। खड़ी बोली जो जनसाधारणकी भाषाके रूपमें उभर रही थी उसमें काव्य रचना न्यून मात्रामें थी।
ऐसे समयमें श्रीपोद्दारजीका अवतरण हुआ तथा वे अपनी गद्य एवं पद्य रचनाके द्वारा जनताके बहुमुखी उत्थानके सतत संघर्षमें लग गये। श्रीपोद्दारजीकी मान्यता थी कि समाजको संस्कारित करनेमें,
पवित्र नैतिक जीवनको प्रोत्साहन एवं प्रेरणा देनेमें, जीवनको श्रेयके मार्गपर ले जानेमें, सात्त्विक प्रवृत्तिकी ओर निरन्तर आगे बढ़नेमें जो सहयोग दें, वही वास्तविक ‘साहित्य’ पद वाच्य है।
उसमें मनुष्यकी मानसिकता एवं विचारधाराको चाहे जिस ओर लगा देनेकी शक्ति होती है। साहित्यका ही प्रभाव था कि एक दिन भारतकी गति सर्वथा भगवभिमुखी थी।
आज यह साहित्यका ही प्रभाव है कि भारतीय मानव भगवद्विमुखी होकर भोगोंकी ओर दौड़ रहा है। परंतु इसमें साहित्यकी सार्थकता नहीं है। यह उसका दुरुपयोग है। जो साहित्य भगवत्प्रीत्यर्थ प्रस्तुत होता है,
जो मनुष्यकी अन्तरकी सुप्त पवित्र सात्विक वासनाओंको जगाकर उसे भगवद्भिमुखी बना देता है वही सत् साहित्य है और उसीसे मानव कल्याण होता है। उनको यह मान्यता ही उनके काव्यकी रचनाका मुख्य प्रेरक तत्व है।
इस प्रमुख प्रेरक तत्त्वके साथ ही जिस समय उनकी काव्य रचना प्रारम्भ हुई उसके प्रेरक तत्त्वकी अभिव्यक्ति उन्होंने संकेत रूपसे निम्न शब्दोंमें की “मंगलमय भगवान् अनन्त कृपासिन्धु हैं।
उन्होंने कृपा करके मंगलमय रोग भेजा। ……… सहज अकेले रहनेका सुअवसर मिला। चिकित्सा-औषध पथ्यादिके समयको छोड़कर शेष समय अकेला ही बन्द कमरेमें रहता।
इसी बीच मन्द-मन्द मुस्कराते हुए विश्व-जन-मन-मोहन अनन्त आनन्दाम्बुधि श्रीश्यामसुन्दर आते-हँसकर सिरपर वरद हस्त रखकर कहते-‘मूर्ख! क्यों रो रहा है? क्यों दीन हीन बनकर दुःखी हो रहा है? चल, मेरे साथ ब्रजमें;
लेखक | श्याम सुंदर दुजारी-Shyam Sundar Dujari |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 186 |
Pdf साइज़ | 635 KB |
Category | साहित्य(Literature) |
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