मत्स्य पुराण – Matsya Puran PDF Free Download

विषयवस्तु
- मंगलाचरण
- सूत का उत्तर
- मत्स्य की आज्ञा से मनु का नाव पर बैठना
- ब्रह्मा से वेदादी की उत्तप्ति
- ब्रम्हा पुत्री गमन से दोषी क्यो नही हुये
- पृथ्वी का नाम पड़ने का कारण
- पिटरो का वंश वर्णन
- चंद्रमा का तारा पर प्रासक्त होना
- तारा का स्पस्थिकरण
- शुक्र का शाप
- राजा कृतवीर्य की तपस्या
- युधिस्थिर और पिपलाद का संवाद
- भीम द्वारा द्वादशी व्रत का पालन
- त्रिपुर की छत
- शिव का त्रिपुर प्रवेश और सूरो की प्रशंसा
- एरावत का पलायन
- पार्वती के दुर्भाग्य पर हिमवान और मेना की चिंता
- नारद का आश्वासन और प्रस्थान
- कालनेमी की मृत्यु
- नर्मदा महात्म्य प्रसंग मे बर्न श्रोर से नारद का संवाद
- विविध प्रकार के अपराध और दंड
- राजपुत्रो को शिक्षा केसे दी जानी चाहिए
- वन का प्रकृतिक द्रश्य
- राजा केसे बनाया गया
- विश्वचक्र दान की विधि और माहात्म्य
पवमान का पुत्र जो अग्नि हुआ, उसे हव्यवाह’ कहते हैं । पावक अग्नि का पुत्र सहरक्ष नाम से विख्यात हुआ, शुचि अग्नि का पुत्र हव्यवाह हुआ । देवताओं के हव्यवाह नामक अग्नि ब्रह्मा के प्रथम पुत्र हैं सहरक्ष असुरों का अग्नि है ।
इस प्रकार ये तीन अग्नि तीनों के हैं । इनके पुत्र पौत्रों की संख्या चालीस है । उनको विभागपूर्वक नाम सहित आप लोगों को बतला रहा हूँ, सुनिये । सर्वप्रथम पावन नामक लौकिक अग्नि हुए, जो ब्रह्मा के पुत्र हैं ।
उनके पुत्र ब्रह्मौदनाम्नि थे, जो भरत के नाम से बिख्यात हैं । वैश्वानर हव्यवाह हवि को वहन करते समय मर गये । प्राचीन काल में अथर्वा के पुत्र के मर जाने पर मंथन करने से पुष्करोदधि अग्नि उत्पन्न हुआ । जो अथर्वा लौकिक अग्नि माना गया है, वही दक्षिणाग्नि भी कहा जाता है।
महर्षि भृगु से अथर्वा उत्पन्न हुए थे और अथर्वा से अंगिरा उत्पन्न हुए-ऐसा सुना जाता है । उनके पुत्र अलौकिक अग्नि को दक्षिणाग्नि भी कहते हैं ।
ऊपर कह चुके हैं कि जो पवमान नामक अग्नि हैं बही निर्मथ्य नाम से भी विख्यात हैं, और वही ब्रह्मा के प्रथम पुत्र गाहपत्य नामक अग्नि कहे जाते हैं।
वास्तव में कौन पुराण प्रथम बना, कौन बाद में बना—इसका कोई प्रमाग उन लोगों के पास भी नहीं था । जो जिसको जिस क्रम से स्मरणपथ में मिला उसको उसने उसी क्रम से रख दिया ।
मत्स्य महापुराण में विभिन्न पुराणों का जो क्रम दिया गया है, उसके साथ अनेक पुराणों की एकवाक्यता नहीं होती । इस दृष्टि से विष्णु पुराण की सूची कुछ प्रामाणिक लगती है, क्योंकि उसका क्रम श्रनेक पुराणों के क्रमों से कुछ मिलता-जुलता है।
उसमें अठारह पुराणों के जो नाम आये हैं, उन्हें यथाक्रम दे रहा हूँ ।
प्रथम ब्राह्म, द्वितीय पाद्म, तृतीय वैष्णव (विष्णुपुराण, चतुर्थ शैव, पञ्चम भागवत, पष्ठ नारदीय, सप्तम् मार्कण्डेय, श्रष्टम् श्राग्नेय, नवम् भविष्य, दशम् ब्रह्मवैवर्त, एकादश लैङ्ग, द्वादश चाराह, त्रयोदश स्कान्द, चतुर्दश वामन, पञ्चदश कौर्म, षोडश मात्स्य, सप्तदश गारुड और अष्टादश ब्रह्माण्ड ।
इस क्रम से श्रापातत: यह भासित होता है कि सभी पुराण एक साथ नहीं बने थे; पर इस कथन से भी कई आपत्तियाँ उठेंगी ।
यदि सभी पुराण वास्तव में क्रमशः निर्मित हुए होते तो पूर्ववर्ती पुराणों में परवर्ती पुराणों का नामोल्लेख कैसे सम्भव होता ?
एक पुराण किसी को प्रथम और दूसरा किसी अन्य को प्रथम कैसे मानता ? आादि । जो हो, पुराणों की उपर्युक्त नामावलि में गृहीत कई पुराणों के विषय में यह भी विवाद प्रचलित है कि वह महा पुराण हैं या नहीं ?
यह विषय स्वयं इतना महत्त्वपूर्ण और विस्तृत है कि इसके लिए कभी अलग से कुछ लिखा जायगा ।
आज प्रकृत स्थल में हम केवल इस दिशा की ओर संकेत मात्र कर देते हैं कि क्रम और नामावलि में पुराणों के निर्माण काल यादि का कोई सूक्ष्म ध्यान नहीं रखा गया है।
पहला अध्याय
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्, देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयमुदीरयेत् ।
प्रचण्ड ताण्डव नृत्य के वेग में (अपने असा भार से) दिमाजों को अपने-अपने स्थान से विचलित कर देने वाले भगवान् शंकर के चरणकमल संसार के विघ्नों का नाश करें ॥१॥
मत्स्यावतार के समय पाताल लोक से ऊपर उछलते हुए जिस विष्णु भगवान् की पूछ की चपेट से सारे समुद्र विक्षुब्ध होकर ऊपर की ओर उछल पड़े, और ब्रह्माण्ड के खण्डों के पारस्परिक संघर्ष से इधर उधर हो जाने के कारण समस्त पृथ्वीमण्डल पर था गये, उस (भगवान् मत्स्य) के मुख से निकली हुई वेदों की ध्वनि तुम लोगों के अमङ्गल को दूर करे ॥ २॥
नारायण, नरोत्तम नर और सरस्वती देवी को (प्रारम्भ में) नमस्कार करके तब जय (महाभारत एवं पुराणादि) का उच्चारण करना चाहिये | ॥३॥
अजन्मा (जन्म रहित) होकर भी जो अपने कार्य के लिए नारायण नाम से स्मरण किया जाता है। “उस त्रिगुणमय, (सत्त्व, रजस्, तमस् स्वरूप ) त्रिवेद स्वरूप, (ऋक् यजुः और सामवेद स्वरूप) एवं स्वयम्भू (स्वयम् उत्पन्न होनेवाले) भगवान् को हमारा नमस्कार है ||३||
एक बार एक बहुत बड़े यज्ञ की समाप्ति के बाद, नैमिषारण्य में रहनेवाले शौनक आदि ऋषियों ने एकाग्र चित्त होकर बैठे हुए सूत जी का बारम्बार अभिनन्दन करके, अनेक पुरानी पापों को दूर करने वाली ललित कथाओं के प्रसंग में (मत्स्य पुराण की) इस लम्बी कथा को पूछा । ॥४-५॥
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लेखक | रामप्रताप त्रिपाठी शास्त्री – Rampratap Tripati Shastri |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 748 |
Pdf साइज़ | 111.74 MB |
Category | Religious |
गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित मत्स्य पुराण की किताब
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