मानव जीवन का लक्ष्य – Manav Jivan Ka Lakshay PDF Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
गोपाझनाओंने बंशीध्वनि सुनी और उनकी विचित्र स्थिति हो गयी। उस समयकी उनकी स्थिति के चित्रको देखें। कानोंमें बंशीकी प्वनि सुनायी पड़ी ।
वस, उनके पथ, संकोच, धैर्य, मर्यादा आदि सबको छीन लिया उसने उसी क्षण बे उन्मत्त हो गयी बह एक ऐसी चीज थी, जिसने स्व चीजोको भुला दिया यह एक अन्तर्नाद था।
उनको यह भी याद नहीं रहा कि जीवनमें क्या करना है।
उस समय उनके द्वारा जो व्यावहारिक कार्य हो रहे थे, सारे-के-सारे कार्य क्यो-के-स्यो स्थगित हो गये उसका वर्णन करते हुए भागवतकार कहते हैं
कि हाथका प्रास हायमें ही रह गया; एक ऑख जाने के बाद दूसरी ऑख ऑजनेसे रहे गयी, शरीरमें अङ्गराग चन्दन लगा रही थी, वह अधूरा ही रह गया, वस्त्र पहनना आरम्भ किया,
पर जितना जैसे पहना गया, उतना वैसे ही पहना गया; छोटे-छोटे बच्चोंको स्तन पिलाना आचेमें ही छूट गया और पतियोकी सेवा-शुश्रूषा कर रही थी, पह वैसे ही रह गयी ।
एक-दूसरीसे कुछ कहते भी नहीं बना । सब चल पड़ी बड़े भाग से ।
यह पुकार, अइ ष्यवनि कुछ ऐसी शराक्र्षक थी, कुछ ऐसी अनन्यता लानेवाली थी कि उसने सर्वेस्फा सहज त्याग करवा दिया।
इस स्थितिमें यह बात नही रह जाती कि किसी चीजको विवेकपूर्वक त्याग करना है या वैराग्यसे त्याग करना है अथवा विवेकपूर्वक किसी चीजको प्राप्त करनेके लिये सोच-समझकर विवेकपूर्ण होती है ।
विवेकपूर्ण साधनामें संसारके भोगोंको दुःखदायी, बन्धनकारक और अज्ञानकी कन्तु मानकर छोड़ा जाता है।
भगवत्प्रासिका महत्त्र, उसका गौरव, उसके लाभ, परमानन्दकी प्राप्ति, बन्धनोका कट जाना; मोक्षकी उपलब्धि, जन्म-मरणके चक्करसे छुटकारा आदि बातों से आकृष्ट, आश्वस्त और आस्थावान् होकर साधक साधना रूढ़ होता है।
यह साधना भी बहुत ऊँची चीज है,सश्विवेक है, वैराग्यपूर्ण है।
लेखक | हनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 531 |
Pdf साइज़ | 17 MB |
Category | प्रेरक(Inspirational) |
मानव जीवन का लक्ष्य – Manav Jivan Ka Lakshay Book/Pustak Pdf Free Download