मध्यकालीन भारत का इतिहास सतीश चन्द्र | Madhyakalin Bharat Hindi PDF

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मध्यकालीन भारत का इतिहास – Medieval Indian History In Hindi NCERT PDF Free Download

पुस्तक का की विषय सूची

उत्तर भारत में साम्राज्य के लिए संघर्ष

मुग़ल और अफ़ग़ान; पानीपत की लड़ाई (1526); खानवा की लड़ाई; हुमायूँ की गुजरात विजय; शेरशाह और सूर साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य का स्थिरीकरण

अकबर का युग; साम्राज्य का प्रारम्भिक दौर और विस्तार; प्रशासन; राजपूतों के साथ संबंध; विद्रोह तथा मुग़ल साम्राज्य का विस्तार; एकता की ओर

दक्कन और दक्षिण भारत (1656 तक)

दक्कन में मुग़लों का बढ़ाव; बरार, अहमदनगर और खानदेश विजय; मलिक अम्बर का उदय; अहमदनगर का विनाश तथा बीजापुर और गोलकुंडा द्वारा मुग़ल प्रभुत्व का स्वीकार; दवकनी रियासतों का सांस्कृतिक योगदान

सत्रहवीं शताब्दी के पूर्वाद्धं का भारत

राजनीतिक तथा प्रशासनिक विकास, नूरजहाँ; शाहजहाँ का विद्रोह; महाबतखा; मुग़लों की विदेश नीति; अकबर तथा उज़बेक; कंधार का मामला तथा ईरान के साथ संबंध; शाहजहाँ का बल्ख अभियान; प्रशासन व्यवस्था का विकास

मुग़ल काल में आर्थिक और सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति; शासक वर्ग; वाणिज्य और व्यापार की व्यवस्था; सांस्कृतिक विकास; भाषा, साहित्य और संगति; धार्मिक विचार

मुग़ल साम्राज्य का चर्मोत्कर्ष और विघटन-I

उत्तराधिकार की समस्या; औरंगजेब का शासन – उसकी धार्मिक नीति; राजनीतिक स्थिति उत्तर भारत उत्तरी पूर्वी तथा पूर्वी भारत; क्षेत्रीय स्वतंत्रता के लिए सावं जनिक विद्रोह राजपूतों के साथ संबंध

मुग़ल साम्राज्य का चर्मोत्कर्ष तथा उसका विघटन-II

मराठों का उदय; शिवाजी का प्रारंभिक जीवन; पुरन्दर की संधि और शिवाजी का आगरा आगमन; शिवाजी के साथ संबंध विच्छेद; औरंगजेब तथा दक्कन के राज्य (1658-87); औरंगजेब, मराठे तथा दक्कन; मुग़ल साम्राज्य का पतन

बहादुर शाह जो हुमायूँ की ही मा एक भाग्य और महत्व का या या । वह 1526 में बड़ी पर बैठा था और उसने मालवा पर करम करके उसे जीत लिया था।

उसके बाद वह राजस्थान की ओर चूमा और चित्तौड़ पर घेरा आल बिया। हस्बी ही उसने राजपूत सैनिकों की मिट्टी पता कर दी।

बाद की किवदंतियों के अनुसार सांगा की विधवा रानी कर्णावती मे हुमायूँ के पास राखी भेजी और उसकी मदद मांगी और हुमायूं में वीरता से उसका जवाब दिया।

मुग़ल और अफ़ग़ान (1525-1556)

पन्द्रहवीं शताब्दी में मध्य और पश्चिम एशिया में महत्व- पूर्ण परिवर्तन हुए। चौदहवीं शताब्दी में मंगोल- साम्राज्य के विघटन के पश्चात् तैमूर ने ईरान और तूरान को फिर से एक शासन के अन्तर्गत संगठित किया।

तैमूर का साम्राज्य बोलगा नदी के निचले हिस्से से सिन्धु नदी तक फैला हुआ था और उसमें एशिया माइनर (आधुनिक तुर्की), ईरान, ट्रांस-ऑक्सियाना, अफ़ग़ानिस्तान और पंजाब का एक भाग था।

1404 में तैमूर की मृत्यु हो गई लेकिन उसके पोते शाहरुख मिर्ज़ा ने साम्राज्य का अधि- कांश भाग संगठित रखा। उसने कलाओं और विद्वानों को संरक्षण दिया। उसके समय में समरक़न्द और हिरात पश्चिम एशिया के सांस्कृतिक केन्द्र बन गए ।

प्रत्येक समर- कन्द के शासक का इस्लामी दुनियां में काफ़ी सम्मान था । पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में देशों का सम्मान तेज़ी से कम हुआ। इसका कारण तैमूर के साम्राज्य को विभाजित करने की परम्परा थी।

अनेक तैमूर रियासतें, जो इस प्रक्रिया में बनीं, आपस में लड़ती-झगड़ती रहती थीं। नये तत्वों को आगे बढ़ने का मौक़ा मिला।

उत्तर से एक मंगोल जाति उज्वेक ने ट्रांस-ऑक्सियाना में अपने कदम बढ़ाये | उज़बेकों ने इस्लाम अपना लिया था, लेकिन तैमूरी उन्हें असंस्कृत बर्बर ही समझते थे ।

लेखक सतीश चंद्र – Satish Chandra
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 215
Pdf साइज़10.1 MB
Categoryइतिहास(History)

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