अभिज्ञान शकुन्तला नाटक | Shakuntala Natak PDF

शाकुंतल – Shakuntala Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

कर्ता की सृष्टि पैल्ही विधिहुत हवि जो लेइले बोहदोत्री | वे, दो कालंवतावें श्रुतिविपय गुणा जो टिकी व्याप्य विश्वा ||

जाबोलें सर्वबीज प्रकृतितु जिससे प्राणि ये प्राणवाले । तुमको वोईश आठ तनु में अवहि र जुविख्यात हैगा ॥ १

जो शरीर सृष्टिकर्ता ब्रह्माकी पहिली सृष्टि | जल अर्थात् ‘ पा नीही रच पहिले वो तिस में वीर्य रचाया । इस स्मरण से। जोये विधिविधान श्रुतिस्मृति से उक्त उससे हुत हवन किया हवनीय हवन करने योग्य जो द्रव्य वह ले |

अग्नि अर्थात् | वहति इस से आधार आधेय से लेना दिखता है। फलपर्यंत तक प्राप्त होना स्फुट होता है। बिना विधि हवन किया भस्म होता है । इसी से विधिहुत कहा ।

जो होत्री यजमानरूप हवन करे सो होत्री । इससे इन्द्रादिकों का भी तर्पण करना अतिशय प्राप्त होता है । इसीसे आत्मादिप्रयोग नहीं दिया । जो दो रात्रि दिवसका रूप करती है ।

जो श्रुति श्रवऐन्द्रिय उसका विषय गोचर गुण शब्दनाम जिसका जगत् को व्याप्तहोके स्थित। इसवास्ते आकाश। जि सको सर्व बीजों की प्रकृति कहते हैं। इससे पृथिवी जिससे प्राणी जीवधारी जीववाले हैं।

इस से वायुहुआ उन प्रत्यक्ष आठ शरीरों से अर्थात् मूर्तियों से प्रपन्न युक्त ईश (वः) तुमको (अवतु) रक्षाकरै ।। यह आशीर्वाद हुआ ॥ १ ॥

अब प्रभु दुष्यंत तुम्हारी रक्षाकरें। तिन देहियां से बहुवचन म हाभूत पंचरूप होने से यज्ञकरणसे होतृरूपसे लोकपालाश से विशिष्टतेज से चंद्र सूर्यरूप से आठतनु से प्रपन्न युक्त ।

भृगु ने कहा है। अग्नि वायु यम सूर्य इन्द्र बरुष चंद्र और कुबेर इनके अंश होने से देवताओं के तेजको प्राप्तहुआ इसीसे सब प्राणियों को स्वतेज से तिरस्कार करता है ।

यह राजा अब जो सृष्टिकर्ता की पहिली है इससे शकुंतला सूचित की क्योंकि इतने काल तक इस सृष्टिके न होने से पहिली कही । जो विधिसे भोग विलासादि से हुत निषिक्त की गई सींचीगई ।

लेखक कालिदास – Kalidas
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 18 MB
PDF साइज़ 262
Category नाटक(Drama)

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