लघु पाराशरी – Laghu Parashari Astrology Book/Pustak Pdf Free Download
पुस्तक के बारेमें
महर्षि पाराशर प्रणीत होराशास्त्र की उपयोगिता के विषय में कुछ भी लिखना दिन में दीपक प्रज्वलित करना है; क्योंकि इस कलिकाल में प्राणियों के कल्याण का मार्ग बतलाने वाले भगवान् पराशर ही है। सब निबन्धकारों ने ‘कलौ पाराशरी स्मृतिः’ ।
कलियुग में पराशर मतानुसार ही चलने का आदेश दिया है तथा बड़े-बड़े दैवज्ञों ने भी अनुभव करके ‘नक्षत्रायुः कलो’ युगे’ (कलियुग में पराशर मुनि प्रर्दाशत नक्षत्रायुर्दाय के अनुसार ही प्राणियों के जीवन भर का शुभाशुभ फल स्पष्ट रूप से मिलने का प्रमाण) बताया है ।
मर्दोष पराशर प्रणीत होरा शास्त्र को अति विस्तृत समझ कर, ज्योतिषियों के उपकारार्थ उसमें से सारार्थ लेकर, उनके शिष्यों में से एक सुविज्ञ दैवज्ञ ने ४० श्लोक में ‘उड़दाय प्रदीप’ नामक ग्रन्थ लिखा। जिससे सर्व-साधारण जनों का असाधारण उपकार हुआ। आकाशस्य राशि और ग्रह के बिम्बों में स्वाभाविक शुभत्व और अशुभत्व है।
उनमें परस्पर साहचर्यादि तात्कालिक सम्बन्ध से विशिष्ट शुभाशुभत्व हो जाता है, जिसका प्रभाव पृथ्वीस्थित प्राणियों पर भी पूर्ण रूप से पड़ता है । अन्य जातक प्रन्यों में ग्रहराशियों के स्वाभाविक शुभाशुभत्व से ही शुभाशुभ फल का निर्णय किया गया है ।
भगवान् पराशर ने अपनी होरा में स्वाभाविक और तात्कालिक दोनों तरह के विवेक से स्पष्ट शुभाशुभत्व समझकर तदनुसार ही फल का आदेश किया है। ‘उडुदायप्रदीप’ को पढ़ कर जातक के शुभाशुभ फल समझने में लोग क्षम तो हुए अवश्य, किन्तु बास्तव में पराशर होरा का पठन-पाठन बन्द हो गया; फिर वह ग्रन्थ भी दुष्प्राप्य सा हो गया ।
लिकर प्रकाशित करवाया वि का प्रथम रण पयोधि होने के का और प्यार वारापारी ना क बेकार] विमी गगक ने मध्य पाराशर’ नाम से एक प्रन्यलिखा जिसमें न जाने सम्मादक या लेखक आदि के प्रभाव से बहुत जगह मुड़ आयुक्त एक पाठ ष्टिगोपर हुए।
जो प्रकाशित अन्य मूल या भाषा टीका सन में गिरते है उनमें भी मूल का संशोधन करना तो दूर रहा, मूलस्थित पुट शब्द का भी अमुद्ध बौर अजीत आर्य टीकाकरण ने लिया है
जो संतोष दिव्यांगों के ठिए ला के स्थान में हानिकारक हो सकता है।
जैसे-मृगाधिष का अर्थ मकर, गुरु नाव का अर्थ बृहस्पति; महानुभाव का अर्थ नवम भाव, वृष राशि में बैठकर सुखा के मांस में हो रत्यादि असुरन अध है (क्योंकि वृष राशि में तुला या बुद्धि का नया होता ही नहीं)।
ऐसा अनर्ष देखकर विद्यावियों से प्राथित होने पर मैंने प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकों के आधार मूल ग्रन्य की अधुद्धि यों का संशोधन करके यमामति सोदाहरण भाषा टीका लेकर काफी के सुप्रसिद्ध मास्टर खेलाडीलाल के पुत्र स्व अीयुत वाबू बगनाथ प्रसाद जी यादव को प्रकाशनार्थ समपर्ण कर दिया ।
उन्होंने अपने ग्रम्थ से विद्या परियों को उपचारार्थ यत्नपूर्वक लघुपाराशरी के इस संस्करण में उसके साथ हो इसे भी प्रकाशित, किया है ।
यदि इससे जनता का मुख भी लाभ हम तो हम अपने परिवम को स्कूल समझेंगे । सहदक सुवन यमाज से सद नंदन है कि इसमें मनुष्य दोषवश या पन्नादि द्वारा जो कुछ भावि वा बुद्धि रह गयी हो उसे सूचित करें तो हम अग्रिम संस्करण में संशोधन कर उनके विर कुज बमेंगे। इस्यलम्वेन विवेकित्र्गयु ।
भद-प्रतिवाद से सिद्ध है अग्त ( निश्चय ) जिसका ऐसे वेदान्त में प्रतिपादित बहु के अन्तः पुर में रहने वाले अखण वर्ण अघरवाले बोना को धारण किए हुए किसी राजविप की हम उपासना करते हैं (अर्थान् श्री सरस्वती जी के स्वरूप का ध्यान करते है॥१॥
लेखक | सीताराम झा-Sitaram Zha |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 58 |
Pdf साइज़ | 52.6 MB |
Category | ज्योतिष(Astrology) |
source | archive.org |
लघु पाराशरी – Laghu Parashari Astrology Book/Pustak Pdf Free Download