सुगम ज्योतिष प्रवेशिका – Sugam Jyotish Praveshika Book/Pustak PDF Free Download

पहला प्रकरण: आकाश परिचय
ज्योति या ‘ज्योतिस्’ का अर्थ है प्रकाश, तेवपुज्य गकीसी वस्तु या पदार्थ । आकाश अनेक तेज पुर्जों से प्रकाशमान है।
आकान का विस्तार कितना है इसका अभी तक कोई यता नहीं लगा पाया। ‘प्रकाण’ या रोशनी प्रदान करने वाले कितने सूर्य या तारायण पाकामा में हैं इसका जान अभी तक नहीं।
हाँ, यह अवश्य है कि हमारे सूर्य की अपेक्षा और भी अधिक प्रकार भान्, इससे भी बड़े तथा अधिक प्रभावशाली तेच धुञ्च (ताराम) आकाश में है
बे हमारी पृथ्वी से इतनी अधिक दूर है कि उस दूरी को हम ‘अरबो खरबों मीलो में भी व्यक्त नहीं कर सकते ।
‘प्रकाश’ या रोगनो की रफ्तार १ मिनिट मे १,८६,००० एक लाख छियासी हजार मील है।
अर्थात् यदि पृथ्वी से १,८६,००३ मील दूर कोई तेज रोशनी आविभूर्त हो, तो उस रोशनी की प्रकाश- किरणो को पृथ्वी तक पहुँचने में १ सेकिंड का समय लगेगा।
बहुत से तारागण पृथ्वी से इतनी दूर हैं कि उनके प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने मे सैकडो वर्ष लगते हैं । इसीसे उनकी दूरी का अनुमान लगाया जा सकता है ।
ब्रह्मपुराग, के अध्याय २४ मे याकाम के अपरिमित विस्तार का वर्णन दिया गया है और २१वे अध्याय में मगवान् नारायण का,
शिशुमारल्याकृति का जो आकाश में विराट रूप है उसका वर्णन करते हुए लिखते हैं श्रीमद्भागवत पचग स्कन्या के अध्याय २२-१५ में भी आकाचा का विस्तृत वर्णन किया गया है।
शिसुमार चक्र का वर्णन करते हुए कहते है कि ‘सप्तार्थियों (सात तारो का गण्ल) से तेरह लाख दोजन अपर प्रुवलोक है काল द्वारा जो प्रह লभादि क्योतिर्ग निरन्तर पुमाये जाते हैं उन सब आवार स्तम्भ रूप से ‘धूष’ है।
बहुत से शास्त्रों में इस पाकाशीय विस्तृत तारामण्डल का ‘शिशुमार इस नाम से वर्णन है, जिष्णुमार ‘बूस’ को कहते हैं।
लेखक | पंडित गोपेश कुमार ओझा-Pandit Gopesh Kumar Ojha |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 344 |
Pdf साइज़ | 8.8 MB |
Category | ज्योतिष(Astrology) |
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