कर्मयोग: स्वामी विवेकानंद | Karmyog Swami Vivekanand PDF In Hindi

कर्मयोग स्वामी विवेकानंद – Karmyog Vivekanand Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक के बारे में

हम जो कुछ हैं ? उसके लिए हम उत्तरदायी हैं। हम जो कुछ भी होना चाहें, यह हो सकने की शक्ति. हममें है। यदि हमारा वर्तमान रूप हमारे पूर्व कार्यों का परिणाम है तो निश्चय ही अपने आज के कर्मों द्वारा हम अपना अभीप्सित भावी रूप भी बना सकते हैं, इसलिए हमें कर्म करना सीखना चाहिए ।

स्वामी विवेकानंद

प्रस्तुत पुस्तक स्वामी विवेकानंद के न्यूयार्क में दिये गये आठ व्याख्यानों का अनुवाद है।

यद्यपि कोई योग औरों से न्यून नहीं, उनका समुचित अभ्यास करने से समान फल मिलता है, तथापि कर्मयोग के भीतर जो एक साहसिफता, एक शूरता है, वह शायद औरों में नहीं।

अबाध गति से चलते संसार-चक्र मैं उसके कठोर धर्पण का भय न कर कूद पड़ना, उसके अति यंत्रों की पीड़ा सह अंत में उसे वश में कर लेना, जीवन की यह कविता इन व्याख्यानों में सबिशेप झलकती है।

गीता की वाणी का अनुकरण करते स्वामी विवेकानंद फिर एक बार सबको संसार का वीरता पूर्वक सामना करने के लिये आहूत करते हैं ।

यहाँ उन्होंने अंकपित स्वर से मनुष्य मात्र की महत्ता की घोषणा की है। क्षुद्र से क्षुद्र स्थिति का व्यक्ति भी कर्मयोगी हो महत्तम के सम्मान का अधिकारी हो सकता है।

अपने-अपने विकास का मार्ग सबके आगे खुला है। कर्मयोग की यही शिक्षा है कि मनुष्य उसपर चलकर अपनी पूर्णता का अनुभव कर सके ।

कर्म का चरित्र पर प्रभाव

कर्म शब्द संस्कृत की “फ=करना” घातु से बना है। जो कुछ भी किया जाता है, कर्म है। कर्मों का फल भी इसका प्रयुक्त अर्थ होता है।

दर्शन-शास्त्र में इसका अर्थ कमी-कमी उस परिणाम से होता है जिसके कि हमारे पूर्वकर्म कारण हैं। परंतु फर्म-योग में हमें उसी कर्म से बास्ता है जिसका अर्थ काम है।

सत्य का ज्ञान मनुष्य जाति का उचित ध्येय है, इसी आदर्श को प्राच्य दर्शन हमारे सामने रखते हैं। मनुष्य का ध्येय सुख नहीं, ज्ञान है।

सांसारिक सुख और आनन्द का अंत हो जाता है। मनुष्य की यह भूल है जो वह समझता है कि ध्येय सुख है ; संसार की सभी विपत्तियों की जड़ यह अंध-विश्वास है कि सुख |

और पढ़े:-

लेखक स्वामी विवेकानंद-Swami Vivekananda
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 151
Pdf साइज़4.4 MB
Categoryप्रेरक(Inspirational)

कर्मयोग तेरहवां संस्करण

कर्मयोग स्वामी विवेकानंद – Karmyog Swami Vivekanand Book/Pustak Pdf Free Download

1 thought on “कर्मयोग: स्वामी विवेकानंद | Karmyog Swami Vivekanand PDF In Hindi”

  1. भगवद् गीता अध्याय 5 श्लोक 6
    संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः। योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति।।5.6।।
    ।।5.6।। परन्तु हे महाबाहो कर्मयोग के बिना संन्यास सिद्ध होना कठिन है। मननशील कर्मयोगी शीघ्र ही ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *