जल चिकित्सा – Jal Chikitsa Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
ऐसे आदमियों की आँखों की ज्योति और शरीर का वर्चस्व मारा जाता है और त्वचा पीली पड़ जाती है. कुछ लोग, खास कर जाड़ों में, मुंह, गर्दन और हाथ की सफाई के लिए तो बड़ा ध्यान रखते हैं किन्तु त्वचा के दूसरे भाग गन्दे रखते हैं.
उनमें इतनी गन्दगी रहती है जितनी कि शायद खामों, मिलो और भड़ियों के सामने काम करने वाले मजदूरों के शरीर में भी न होती होगी. मजदूर बेचारे तो खाने के पहले दो लोटे पानी डाल कर अपने शरीर को कुछ साफ भी कर लेते हैं
किन्तु हमारे जलमीर बाबू सरवन पानी से इतने डरते हैं कि अपना शरीर साफ तक नहीं कर सकते. ऐसे लोग यह भी सोचते हैं कि वे कुछ कारखानों या कूड़ाघरों में तो काम करते ही नहीं जो उनकी त्वचा में मैल जमता हो फिर थे साफ करें तो क्यों ?
तो फिर क्या नित्य स्नान की प्रथा व्यर्थ का झंझट है! कदापि नहीं. शरीर की त्वचा याय: जैल से भर जाती है, उसमें भीतरी और बाहरी दोनों प्रकार के मैल जमा होते हैं. यदि वह बटुत की मुंदी रहती है
तब तो उसमें अस्वास्थ्यकर पदाधों का और भी अधिक संग्रह हो जाता है और उस दशा में कोई आश्चर्य नहीं कि मनुष्य का तेज, उत्साह और बल शिथिल पड़ जाय.इस विषय में कभी भूल न करना चाहिए. कपड़ों के आवरण से ढका हुआ त्वचा का भाग,
मुंह हाथ आदि ऐसे भागों से जो अधिकांश में खुले होते है, अधिक गंदा हो जाता है. खुले हुए भागों में हवा लगती रहती है उन्हें अपनी मीठी थपेड़ो से साफ कर देती हैं. किन्तु के हुए अथयवो पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता. इसलिए प्रत्येक समझदार
लेखक | शिवनारायण मिश्रा-Shivnarayan Misra |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 93 |
Pdf साइज़ | 6.7 MB |
Category | आयुर्वेद(Ayurveda) |
जल के प्रयाग और चिकित्सा | Jal Ke Prayog Aur Chikitsa Book/Pustak Pdf Free Download