गुलज़ार (गीताकार) शायरी | Gulzar Shayri Book PDF

गुलजार शायरी बुक – Gulzar Shayri PDF Free Download

कुछ शायरी

जैसे मंदिर से जरस की चले नमनाक सदा और झुकती हैं तो बस जैसे अज़ान खत्म हुई हो

मैं अपने होठों से चुन रहा हूँ तुम्हारी साँसों की आयतों को कि जिस्म के इस हसीन काबे पे रूह सजदे बिछा रही है

तुम्हारे हाथों को चूमकर छूके अपनी आँखों से आज मैंने जो आयतें पढ़ नहीं सका, उनके लम्स महसूस कर लिए हैं

मैंने रखी हुई है आँखों पर तेरी गमगीन-सी उदास आखें जैसे गिरजे में रक्खी खामोशी जैसे रहलोंपे रक्खी अन्जीले

एक आंसू गिरा दो आँखों से कोई आयत मिले नमाज़ी को कोई हर्फ-ए-कलाम-ए-पाक मिले

मैं उड़ते हुए पंछियों को डराता हुआ कुचलता हुआ घास की कलगियाँ गिराता हुआ गर्दने इन दरख्तों की,छुपता हुआ जिनके पीछे से निकला चला जा रहा था वह सूरज तआकुब में था उसके मैं गिरफ्तार करने गया था उसे जो ले के मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था

सारी वादी उदास बैठी है मौसमे गुल ने खुदकशी कर ली किसने बरुद बोया बागो में

आओ हम सब पहन ले आइने सारे देखेंगे अपना ही चेहरा सारे हसीन लगेंगे यहाँ

है नही जो दिखाई देता है आइने पर छपा हुआ चेहरा तर्जुमा आइने का ठीक नही

हम को गलिब ने येह दुआ दी थी

सारी वादी उदास बैठी है मौसमे गुल ने खुदकशी कर ली किसने बरुद बोया बागो में

आओ हम सब पहन ले आइने सारे देखेंगे अपना ही चेहरा सारे हसीन लगेंगे यहाँ

है नही जो दिखाई देता है आइने पर छपा हुआ चेहरा तर्जुमा आइने का ठीक नही

हम को गलिब ने येह दुआ दी थी

लेखक Gulzar
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 168
Pdf साइज़3.6 MB
CategoryLiterature

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