बालक वीरता पर कहानी | Story On Child Bravery PDF In Hindi

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वीरता की कहानीयां – Story On Kid Bravery Hindi PDF Free Download

बालक वीरता पर कहानी PDF

वीर बालक लव-कुश

मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामने मर्यादाकी रक्षाके लिये पतिव्रता शिरोमणि श्रीजानकीजीका त्याग कर दिया। श्रीराम और जानकी परस्पर अभिन्न हैं। वे दोनों सदा एक हैं ।

उनका यह अलग होना और मिलना तो एक लीलामात्र हैं । भगवान श्रीरामने अपने यशकी रक्षाके लोभसे, अपयशके भयसे या किसी कठोरतावश श्रीजानकीजीका त्याग नहीं किया था ।

वे जानते थे कि श्रीसीता सम्पूर्णरूप से निर्दोष हैं। श्रीसीताजीके वियोगमें उन्हें कम दुःख नहीं होता था । यदि सीता-त्यागमें कोई कठोरता है तो वह जितनी सीताजीके प्रति है, उतनी ही या उससे भी अधिक श्रीरामकी अपने प्रति भी है; लेकिन भगवानका अवतार संसारमें मर्यादाकी स्थापनाके लिये हुआ था ।

यदि आदर्श पुरुष अपने आचरण में साधारण ढील भी. रहने दें तो दूसरे लोग उनका उदाहरण लेकर बड़े-बड़े दोप करने लगते हैं। विवश होकर पवित्रतासे श्रीसीताजीको लंकाम रावण के यहाँ बन्दिनी बनकर अशोकवाटिकामें रहना पड़ा था।

अब कुछ लोग इसी चातको लेकर अनेक प्रकारकी बातें कहने लगे थे। ‘कहीं इसी वातको लेकर स्त्रियाँ अपने अनाचारका समर्थन न करने लगें और पुरुष भी आचरण बिगाड़ न ले ।’ यह सोचकर मर्यादापुरुषोत्तमको अपने ही प्रति यह भीपण कठोरता करनी पड़ी ।

उन्हें शासकोंके सामने भी यह आदर्श रखना था कि प्रजाके आदर्शकी रक्षाके लिये शासकको कहाँ तक व्यक्तिगत त्याग करने को तैयार रहना चाहिये ।

भगवान् श्रीरामकी आज्ञासे विवश होकर लक्ष्मणजी श्रीजानकीको वनमें महर्षि वाल्मीकिके आश्रमके समीप उस समय छोड़ आये, जब श्रीसीताजी गर्भवती थीं । वाल्मीकिजी वहाँसे श्रीजानकीजीको अपने आश्रममें ले गये और वहीं एक साथ यमजरूपमें लव-कुशका जन्म हुआ ।

आश्रममें महर्षिने ही दोनों बालकोंके सब संस्कार कराये और महर्षिने ही उनको समस्त शास्त्रों तथा अस्त्र-शस्त्रकी भी शिक्षा दी। इसके अतिरिक्त महर्षिने ‘अपने वाल्मीकीय रामायण’ का गान भी उनको सिखाया ।

सात काण्ड और पाँच सौ सर्गवाले इस नौवीरा हजार श्लोकोंमें बने हुए श्रीरामचरितको जब दोनों कुमार अपने कोमल, सुमधुर स्वरमें संगीत-शास के अनुसार गान करने लगते थे, तब श्रोता मुग्ध हो जाते थे ।

उधर अयोध्या में भगवान् श्रीरामने अश्वमेघ यज्ञकी दीक्षा ली विधिपूर्वक पूजा करके श्यामकर्ण अश्व छोड़ा गया बड़ी मारी सेनाके साथ राजकुमार पुष्कल तथा सेनापति कालनित्के साथ शत्रुमजी उस अश्वकी रक्षामें चले श्रीहनुमानजी तथा वानरराज सुग्रीव भी वानर एवं रीछोंकी सेना लेकर शत्रुभजीके साथ चल रहे थे । वह अश्व अपने मनसे जहाँ चाहता था, वहाँ जाता था ।

सेना उससे कुछ पीछे रहकर चलती थी, जिसमें घोड़ेको कोई असुविधा न हो। अनेक नरेशोंने स्वयं शत्रुनजीको ‘कर’ दिया, कुछने समझाने-बुझानेपर कर देना स्वीकार कर लिया कहीं-कहीं संग्राम भी करना पड़ा।

इस प्रकार सर्वत्र विजय करते हुए वह यज्ञका अश्व घूमता हुआ महर्षि वाल्मीकिके तपोवनके पास वनमें पहुँचा कुमार लब उस समय मुनिकुमारों के साथ वनमें खेल रहे थे । मणिजटित स्वर्णके आभूषणोंसे सजे उस परम सुन्दर घोड़ेको देखकर सब बालक उसके समीप आ गये।

बड़े स्पष्ट तथा सुन्दर अक्षरोंमें लिखा हुआ एक घोषणापत्र अश्वके मस्तक पर बँधा था उस घोषणापत्रमें बताया गया था कि ‘यह अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज श्रीरामके यज्ञका अश्व है और परम पराक्रमी शत्रुघ्नकुमार इसकी रक्षा कर रहे हैं।

जिस देश से अश्व निकल जायगा, वह देश जीता हुआ समझा जायगा जिस किसी क्षत्रियमें साहस हो और जो अयोध्या के महाराजको अपना सम्राट् न मानना चाहे, वह अबको पकड़े और युद्ध करे।’

इस घोषणापत्रको पढ़कर लवको क्रोध आ गया उन्होंने घोड़ेको पकड़कर एक वृक्षमें बाँध दिया और स्वयं धनुप चढ़ाकर युद्धके लिये खड़े हो गये। साथके मुनिचालकोंने पहले तो उन्हें रोकनेका प्रयत्न किया, किंतु जब वे न माने तव युद्ध देखने के लिये वे सब कुछ दूर खड़े हो गये ।

घोड़े के साथ चलनेवाले रक्षकोंने देखा कि एक बालकने अश्वको बाँध दिया है उनके पूछनेपर लवने कहा- ‘मैंने इस घोड़ेको बाँधा है जो इसे खोलनेका प्रयत्न करेगा उसपर मेरे भाई कुश अवश्य क्रोध करेंगे ।

रक्षकोंने समझा कि यह वालक तो यों ही वचपनकी बातें करता है । वे घोड़ेको खोलनेके लिये आगे बढ़े लवने देखा कि ये लोग मेरा कहना नहीं मानते तो वाण मारकर उन सबकी भुजाएँ उन्होंने काट दीं। वेचारे रक्षक वहाँसे भागे और उन्होंने शत्रुघ्नजीको अश्वके बाँधे जानेकी सूचना दी ।

अपने सैनिकोंकी कटी भुजाएँ देखकर और उनकी बातें सुनकर शत्रुघ्नजी समझ गये कि अश्वको बाँधनेवाला वालक कोई साधारण बालक नहीं है । सेनापतिको उन्होंने व्यूह निर्माणकी आज्ञा दी सम्पूर्ण सेना दुर्भेद्य व्यूहके रूपमें खड़ी की गयी और तब सेनाके साथ सब लोग, जहाँ अश्व बँधा था, वहाँ आये ।

एक छोटे-से सुकुमार बालकको धनुष चढ़ाये सम्मुख खड़े देखकर सेनापतिने समझानेका प्रयत्न किया । लवने कहा – ‘तुम युद्धसे डरते हो तो लौट जाओ ! मैं तुम्हें छोड़े देता हूँ । इस अश्व के खामी श्रीरामसे जाकर कहां कि लबने उनका घोड़ा बाँध लिया है ।’

अन्ततः वहाँ युद्ध प्रारम्भ हो गया । लवके वाणोंकी वर्षासे सेनामें भगदड़ पड़ गयी । हाथी, घोड़े और सैनिक कट-कटकर गिरने लगे । सेनापति कालजित्ने पूरे पराक्रमसे युद्ध किया, किंतु लवने उसके सब अस्त्र-शस्त्र • खेल-खेल में काट डाले और फिर उसकी दोनों भुजाएँ और मस्तक भी काट गिराया ।

पहले तो शत्रुघ्नजीको अपने सैनिकोंद्वारा मिले इस समाचारपर विश्वास ही नहीं होता था कि कोई यमराजके लिये भी दुर्धर्ष सेनापतिको मार सकता है अन्तमें पूरी बातें सुनकर और मन्त्रीसे सलाह लेकर वे स्वयं सम्पूर्ण सेनाके साथ युद्धक्षेत्रमें आ गये।

बड़ी भारी सेनाने लवको चारों ओरसे चेर लिया लबने जब देखा कि मैं शत्रुओंसे घिर गया हूँ, तत्र अपने वाणोंसे उन सैनिकोंको छिन्न-भिन्न करने लगे । सैनिकोंको भागते देख पुष्कल आगे बढ़े। थोड़ी ही देरके संग्राममें लवके बाणने पुष्कलको मूर्छित कर दिया । पुष्कलके मूर्छित होने पर क्रोध करके स्वयं हनुमानजी लवसे युद्ध करने आये ।

उन्होंने लवपर पत्थरों तथा वृक्षोंकी वर्षा प्रारम्भ कर दी; किंतु लबने उन सबके टुकड़े उड़ा दिये । क्रोधमें भरकर हनुमानजीने लबको अपनी पूँछमें लपेट लिया । इस समय लबने अपनी माताका स्मरण करके उनकी पूँछपर एक घूँसा मारा। इस घूँसेकी चोटसे हनुमानजीको बहुत पीड़ा हुई। लबको

उन्होंने छोड़ दिया अब लवने उनको इतने बाण मारे कि वे भी मूर्छित हो गये । इसके पश्चात् शत्रुमजी युद्ध करने आये । घोर संग्रामके पश्चात् लवने वाण मारकर शत्रुनजीको भी मूर्छित कर दिया । शत्रुनको मूर्छित देखकर सुरथ आदि नरेश लवपर टूट पड़े । अकेले बालक लव बहुत बड़े-बड़े अनेकों महारथियोंसे संग्राम कर रहे थे।

शत्रुभजीकी भी सूर्छा कुछ देर में दूर हो गयी । अब इस बार शत्रुघ्नजीने भगवान् श्रीरामका दिया वह वाण धनुपपर चढ़ाया, जिससे उन्होंने लवणासुर को मारा था । उस तेजोमय चाणके छाती में लगनेसे लव मूर्छित होकर गिर पड़े । मूर्छित लवको रथपर रखकर शत्रुघ्नजी अयोध्या ले जानेका विचार करने लगे ।

कुछ मुनिकुमार दूर खड़े युद्ध देख रहे थे, उन्होंने दौड़कर महर्षि वाल्मीकिके आश्रम में श्रीजानकीजी को समाचार दिया ‘माँ ! तुम्हारे छोटे बेटेने किसी राजाके घोड़ेको बाँध दिया था । उस राजाके सैनिकोंने उससे युद्ध किया । अब लव मूर्छित हो गया है और वे लोग उसे पकड़कर ले जाना चाहते हैं।’ बालकों की बातें सुनकर माता जानकी दुखित हो गयीं ।

उनके नेत्रोंसे आँसू गिरने लगे। उसी समय वहाँ कुमार कुश आये । उन्होंने मातासे तथा मुनिकुमारोंसे पूछकर सब बातें जान लीं । अपने भाईको मूर्छित हुआ सुनकर वे क्रोधमें भर गये। माता के चरणों में प्रणाम करके उन्होंने आज्ञा ली और धनुष चढ़ाकर युद्धभूमि की ओर दौड़ पड़े ।

लब उस समय रथपर पड़े थे; किंतु उनकी मूर्छा दूर हो गयी थी। दरसे ही अपने भाई को आते उन्होंने देख लिया और वे कूदकर रथसे नीचे आ गये। अब कुशने पूर्व की ओरसे रणभूमिमें खड़े योद्धाओंको मारना प्रारम्भ किया और लगने पश्चिमसे । क्रोधमें भरे दोनों बालकोंकी मारसे वहाँ युद्धभूमि लाशोंसे पट गयी।

बड़े-बड़े योद्धा भागकर प्राण बचाने का प्रयत्न करने लगे। जो भी युद्ध करने आता, उसका शरीर कुछ क्षणों में वाणोंसे छलनी हो जाता था। हनुमान्जी और अंगदको बाण मार मारकर लब तथा कुश बार-बार आकाशमें फेंकने लगे।

जब वे दोनों आकाश से भूमिपर गिरने लगते, तब फिर बाण मारकर लव कुश इन्हें ऊपर उछाल देते । इस प्रकार गेंदकी भाँति उछलते उछलते इन्हें बड़ी पीड़ा हुई और जब कृपा करके दोनों कुमारोंने इनपर बाण चलाना बंद कर दिया, तब ये पृथ्वीपर गिरकर मूर्छित हो गये ।

कुशने शत्रुघ्नजी को भी मूर्छित कर दिया चाण मारकर | महावीर सुरथ कुशके वाणोंके आघात से भूमिपर पड़ गये और वानरराज सुग्रीवको कुशने वारुण पाश से बाँध लिया । इस प्रकार कुशने युद्धभूमिमें विजय प्राप्त की ।

लेखक Gita Press
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 89
PDF साइज़32.7 MB
CategoryStory
Source/Creditsarchive.org

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