‘Kohbar Ki Shart Novel’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘कोहबर की शर्त’ using the download button.
कोहबर की शर्त उपन्यास – Kohbar Ki Shart Book PDF Free Download
उपन्यास खंड:१
कचहरी से काका को चार बजे फुरसत मिली। तीन बजे मुक़दमे की पेशी हुई, चार बजे तक बहस। बाहर निकलते ही वकील से विदा माँगी और गाड़ी पकड़ने स्टेशन की ओर लपके। स्टेशन पहुँचते-पहुँचते पसीने से नहा गए ।
पूरब वाली पाँच बज्जी प्लेटफॉर्म पर खड़ी थी। बैठने को जगह खोजने लगे रोज़ की तरह, साँझ को घर लौटनेवाले मुकदमेबाज़ और बिना टिकट चलनेवाले स्कूली लड़कों से, बलिया से पूरब जानेवाली यह गाड़ी खचाखच भर गई थी। सारी भीड़ पाँच स्टेशनों तक की थी।
पहले स्टेशन बाँसडीह पर ही भरभराकर भीड़ उतर जाती है, लेकिन काका को तीन स्टेशन रेवती तक जाना था। पूरी गाड़ी के दो चक्कर लगाने के बाद बड़ी कठिनाई से एक डिब्बे में खड़े होने को जगह मिली जगह तो मिली, लेकिन गरमी के मारे खड़ा रहना भी कठिन लगने लगा।
अँगोछे से हवा करते हुए चुपचाप बाहर देखते रहे। गाड़ी चली तब जान में जान आई। बाँसडीह के बाद सहतवार फिर रेवती आया। काका उतरे तो दिन डूबने में अभी डेढ़ घंटे की देर थी।
स्टेशन से बाहर निकलते ही, पूरब-दक्खिन के कोन पर, गढ़-सा बसा हुआ गाँव बलिहार दिखाई देने लगता है। धरती तो दो ही कोस की है, लेकिन चलाती बहुत है। स्टेशन से चौबेछपरा के बीच का चौड़ा सपाट ताल जल्दी कटता ही नहीं।
आजकल तो रामपुर के सामने भरी हुई नदी सोना पार करनी पड़ती है, अगर नाव न मिली तो देह के सारे कपडे सिर में लपेट तैरना पड़ता है। अँजोर रहते अगर पहुँच गए तब भी गनीमत रहती है. नहीं तो सँझलीके में इस उफनती हुई नदी को देखकर हिम्मत छूट जाती है।
भादों की साँझ का कौन ठिकाना! बादल उमड़े, तो पहले ही घटा घिर आई। फिर
काका को रात में रतौंधी होती थी। प्लेटफ़ॉर्म पर उतरकर, एड़ी के बल उचक-उचककर काका ने उतरे हुए लोगों को ध्यान से देखा। लेकिन जब गाँव का कोई न दिखा तो बाहर निकलने के लिए बाहर फुरती से फाटक की ओर बढ़े।
स्टेशन की सीमा के बाहर ढलान के नीचे, महाजन की दुकान के पास पहुँचे तो उसने टोका, इधर कहाँ, तिवारीजी?” काका चलते-चलते बोले, गाँव जा रहा हूँ महाजन, रुकना नहीं होगा। आज अकेले हैं इसी से तेज़ी है।”
राह तो बन्द हो गई है।”
“ऐं!” काका चलते-चलते रुक गए, “क्या कहा?”
“कितने दिनों पर बलिया से लौटे हैं?”
“तीन दिनों पर। गया था सुक को, पेशी हुई आज सोमवार को ।”
तभी तो मालूम नहीं है। पानी तो पोखरे तक चढ़ आया है देखते नहीं, सारे लोग पटरी के किनारे-किनारे, पुल की ओर छारा पकड़ने को बढ़ रहे हैं।
“छारा चलने लगा क्या?”
“खूब, चारों ओर जवार में पानी भर गया, अब भी छारा नहीं निकलेगा! तो स्टेशन आना जाना और भी आसान हो गया। पुल से चार पैसे सवारी, यहाँ बैठकर एकदम गाँव पर उतरना ।”
हमने भी कहा कि लोग पुल की ओर क्यों बढ़ रहे हैं। तीन दिन में सरेह डूब गई तो भगवान जाने आगे क्या हो कहकर काका स्टेशन की ओर वापस मुड़े, जहाँ से पटरी के किनारे-किनारे पूरब की ओर बढ़े। पुल पर पहुँचे तो
केवल दो छारा बची थीं, जिनमें दस-दस बारह बारह लोग बैठे थे तीन पहले से ही भरकर आगे बढ़ गई थीं।
चौबेपुर, पियरौंटा, रामपुर, अचलगढ़, छेड़ी और अपने गाँव बलिहार के चारों ओर जल ही जल दिखाई पड़ता था। दूर तक फैली हुई इस अपार जलराशि को काका देखते ही रह गए। परसों आए थे तो सरेह में भदई लहरा रही थी और आज उसका नाम निशान तक नहीं।
सात-सात फीट ऊँचे जोन्हरी जनेरा के पौधों की फुनगी तक नहीं दिखाई देती चारों ओर गंगा का मटमैला उबलता जल हिलोरें मार रहा था। “धन्य हो माता गंगा काका ने झुककर किनारे से अँजुरी भर जल ले माथे पर चढ़ाया और डंडे के सहारे एक छारा पर चढ़ गए।
छारा को पूरी सवारियाँ मिल गई तो एक मल्लाह अगली फेंग पर दूसरा पिछली फेंग पर बैठकर पतवार चलाने लगे। छप्प्-छप्प् करता हुआ छारा मटमैले जल पर बढ़ चला।
“बड़ी आस थी कि युग-युग का संकट अब दूर हुआ।” एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ाते हुए काका बोले।
कैसे तिवारीजी सामने बैठे पटवारी शिवबालकलाल ने पूछा। ने
“बाँध बँध जाने से आस थी कि इस साल पानी नहीं चढ़ेगा।”
“हाँ, सरकार ने लाखों रुपए खर्च करके यह बाँध बँधवाया, लेकिन पानी के वेग को भला ऐसा बाँध क्या रोकता। पानी ने धक्का मारा, तेलिया नाला के पास बाँध दरक गया और देखते-देखते सरेहों में लबालब पानी…
अपार जल पर पतवारों की छप्प्-छप्प के साथ पानी काटता हुआ छारा आगे बढ़ रहा था। जिधर देखो उधर ही जल रेवती से आगे गोलाई में घूमी हुई रेलवे लाइन के चारों ओर, जहाँ तक आँखें देख सकती थीं, जल-ही-जल दिखाई पड़ता था।
चौरासी की जनेरा-जोन्हरी की कचोह फसलें फुनगियों तक डूब गई थीं। बस, खेतों में जहाँ-तहाँ खड़े बबूल के पेड़ ही दिखाई पड़ते थे।
लेखक | Keshav Prasad |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 209 |
PDF साइज़ | 2.7 MB |
Category | Novel |
Source/Credits | archive.org |
कोहबर की शर्त – Kohbar Ki Shart Book PDF Free Download