अहोई माता अष्टमी व्रत कथा – Ahoi Ashtami Vrat Katha PDF Free Download

अहोई आठे अष्टमी व्रत के पूजन की विधि
यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। जिस दिन (वार) की दीपावली होती है, उससे ठीक एक सप्ताह पूर्व उसी दिन (वार) को अहोई अष्टमी पड़ती है।
व्रत करने वाली स्त्री को इस दिन उपवास रखना चाहिए। सायंकाल दीवार पर अष्ट कोष्ठक की अहोई की पुतली रंग भरकर बनाएं। पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाएं, चाहें तो वना-वनाया चार्ट रुचिका पब्लिकेशन्स का वाजार से खरीद सकती हैं।
सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर अहोई माता की पूजा प्रारम्भ करने से पूर्व जमीन को साफ करें। फिर चौक पूरकर, एक लोटे में जल भरकर एक पटरे पर कलश की तरह रखकर पूजा करें। पूजा के लिए माताएं पहले से चांदी का एक अहोई या स्याऊ और चांदी के दो मोती बनवाकर डोरी में डलवा लें।
फिर रोली, चावल व दूध भात से अहोई का पूजन करें। जल से भरे लोटे पर स्वास्तिक बना लें। एक कटोरी में हलवा तथा सामर्थ्यानुसार रुपये का वायना निकालकर रख लें और हाथ में सात दाने गेहूँ लेकर कथा सुनें।
कथा सुनने के बाद अहोई स्याऊ की माला गले में पहल लें और जो बायना निकाला था, उसे सासूजी का चरण स्पर्श कर उन्हें दे दें।
इसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करें। दीपावली के पश्चात् किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतारकर उसका गुड़ से भोग लगाएं और जल के छोटे देकर आदर सहित स्वच्छ स्थान पर रख दें।
जितने बेटे अविवाहित हो उतनी बार एक-एक तथा जितने बेटों का विवाह हो गया हो, उतनी बार दो-दो चांदी के दाने अहोई में डालती जाए। ऐसा करने से अहाई देवी प्रसन्न होकर बेटों की दीर्घायु करके घर में मंगल करती हैं। इस दिन ब्राह्मणों को पेठा दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
अहोई व्रत का उजमन
जिस स्त्री के बेटा अथवा बेटे का विवाह हुआ हो, उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए। एक थाल में चार-चार पूड़ियाँ सात जगह रखें। फिर उन पर थोड़ा-थोड़ा हलवा रख दें। थाल में एक तीयल (साड़ी, ब्लाउज) और सामर्थ्यानुसार रुपये रखकर, थाल के चारों ओर हाथ फेरकर सासूजी के चरण स्पर्श करें तथा उसे सादर उन्हें दे दें। सासूजी तीयल व रुपये स्वयं रख लें एवं हलवा-पूरी प्रसाद के रूप में वांट दें। हलवा-पूरी का वायना बहन-बेटी के यहाँ भी भेजना चाहिए।
अहोई अशोकाष्टमी का व्रत कथा
यह व्रत प्रायः कार्तिक बदी अष्टमी को उसी वार को किया जाता है। जिस वार की दीपावली होती है। इस दिन स्त्रियों की आरोग्यता और दीर्घायु प्राप्ति के लिए अहोई माता का चित्र दीवार पर मांडकर पूजन किया जाता है।
विधि- अहोई का व्रत दिन भर किया जाता है, जिस समय तारा मंडल आकाश में उदय हो जाए उस समय वहाँ पर एक जल का लोटा रखकर चाँदी की स्वाऊ और दो गुड़िया रखकर मौली नाल में पिरों लेवें। तत्पश्चात् गेली चावल से अहोई माता के सहित स्याऊ माता को अरचें और सीरा आदि का भोग लगाकर कहानी सुनें।
कथा- एक नगर में एक साहूकार रहा करता था, उसके सात लड़के थे। एक दिन उसकी स्त्री खदान में मिट्टी खोदने के लिए गई और ज्योंही उसने जाकर कुदाली मारी त्योही सेई के बच्चे कुदाल की चोट से सदा
के लिए सो गए। इसके बाद उसने कुदाल को स्याहू के खून से सना देखा तो उसे सेई के बच्चों के मर जाने का बड़ा दुःख हुआ परन्तु वह विवश थी और यह काम उससे अनजाने में हो गया था।
इसके बाद वह बिना मिट्टी लिए ही खेद करती हुई अपने घर आ गई और उधर जब सेही अपने घर में आयी तो अपने बच्चों को मरा देखकर नाना प्रकार से विलाप करने लगी और ईश्वर से प्रार्थना की कि जिसने मेरे बच्चों को मारा है, उसे भी इसी प्रकार का कष्ट होना चाहिए।
तत्पश्चात सेही के श्राप से सेठानी के सातों लड़के एक ही साल के अन्दर समाप्त हो गए अर्थात् मर गए। इस प्रकार अपने बच्चों को असमय काल के मुंह में समाये जाने पर सेठ-सेठानी इतने दुःखी हुए कि उन्होंने किसी तीर्थ पर जाकर अपने प्राणों को तज देना उचित समझा।
इसके बाद वे घर-बार छोड़कर पैदल ही किसी तीर्थ की ओर चल दिए और खाने की ओर कोई ध्यान न देकर जब तक उनमें कुछ भी शक्ति और साहस रहा तब तक वह चलते ही रहे और जब वे पूर्णतः अशक्त हो गए तो अन्त में मूर्छित होकर गिर पड़े।
उनकी ऐसी दशा देखकर भगवान करुणा सागर ने उनको मृत्यु से बचाने के लिए उनके पापों का अन्त किया और इस अवसर पर आकाशवाणी हुई- हे सेठ! तेरी सेठानी ने मिट्टी खोदते समय ध्यान न देकर सेह के बच्चों को मार दिया, इसके कारण तुम्हें अपने बच्चों का दुःख देखना पड़ा।
यदि अब पुनः घर जाकर तुम मन लगाकर गऊ माता की सेवा करागे और अहोई माता देवी का विधि-विधान से व्रत आरम्भ कर प्राणियों पर दया रखते हुए स्वप्न में भी किसी को कष्ट नहीं दोगे, तो तुम्हें भगवान की कृपा से पुन: संतान का सुख प्राप्त होगा।
इस प्रकार आकाशवाणी सुनकर सेठ- सेठानी कुछ आशावान हो गए और भगवती देवी का स्मरण करते हुए अपने घर को चले आये। इसके बाद श्रद्धा-भक्ति से न केवल अहोई माता का व्रत अपित गऊ माता की सेवा करना भी आरम्भ कर दिया तथा जीवों पर दया भाव रखते हुए क्रोध और द्वेष का सर्वथा परित्याग कर दिया।
ऐसा करने के पश्चात भगवान की कृपा से सेठ-सेठानी पुनः सात पुत्र वाले होकर अगणित पौत्रों सहित संसार में नाना प्रकार के सुखों को भोगने के पश्चात स्वर्ग को चले गए।
शिक्षा- बहुत सोच-विचार के बाद भली प्रकार निरीक्षण करने के पश्चात ही कार्य आरम्भ करो और अनजाने में भी किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो। गऊ माता की सेवा के साथ-साथ ही अहोई माता अजन्मा देवी भगवती की पूजा करो। ऐसा करने पर अवश्य संतान सुख के साथ-साथ सम्पत्ति सुख प्राप्त होगा।
अहोई माता की दूसरी कथा
एक साहूकार था जिसके सात बेटे थे, सात बहुएं तथा एक बेटी थी। दीवाली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातों बहुएं अपनी ननद के साथ जंगल में खदान में मिट्टी लेने गई। जहाँ से वे मिट्टी खोद रही थीं वहीं स्याहू (मेहे) की मांद थी।
मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ सेही का वच्चा मर गया। स्याहू माता बोली कि अब मैं तेरी कोख बाँधूंगी। तब ननद अपनी सातों भाभियों से बोली कि तुममे से मेरे बदले कोई अपनी कोख बंधा लो।
सात भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इंकार कर दिया परन्तु छोटी भाभी सोचने लगी कि यदि मैं कोख नहीं बंधवाऊंगी तो सामजी नाराज होंगी ऐसा विचार कर ननद के बदले में छोटी भाभी
ने अपनी कोख बंधवा ली। इसके पश्चात जब उसके जो लड़का होता तो सात दिन बाद मर जाता। एक दिन पंडित को बुलाकर पूछा कि क्या बात है मेरी संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है? तब पंडित ने कहा कि तुम सुरही गाय की पूजा करो सुरही गाय स्याऊ माता की भायली है, वह तेरी कोख छोड़े तब तेरा बच्चा जियेगा।
इसके बाद से वह बहू प्रातः काल उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती। गौ माता बोली कि आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है? सो आज देखूँगी। गौ माता खूव तड़के उठी, क्या देखती है कि एक साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे सफाई आदि कर रही है।
गौ माता उससे वोली क्या माँगती है? तव साहूकार की बहू वोली कि स्याऊ माता तुम्हारी भावली है और उसने मेरी कोख वाध रखी है सो मेरी कोख खुलवा दो। गौ माता ने कहा अच्छा, अब तो गौ माता समुद्र पार अपनी भावली के पास उसको लेकर चली।
रास्ते में कड़ी धूप थी सो वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर में एक साँप आया और उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी (पक्षी) का वच्चा था। सांप उसको इसने लगा तब साहूकार की वहू ने साँप मारकर ढाल के नीचे ढवा दिया और बच्चों को बचा लिया। थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई तो वहाँ खून पड़ा देखकर साहूकार की वहू के चोच मारने लगी।
तव साहूकारनी बोली कि मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा बल्कि साँप तेरे बच्चे को इसने को आया था, मैंने तो उससे तेरे बच्चे की रक्षा की है। यह सनकर गरुड पंखनी बोली कि माँग, तू क्या माँगती है?
वह बोली सात समुद्र पार स्थाऊ माता रहती है हमें तू उसके पास पहुँचा दे। तब गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याऊ माता के पास पहुँचा दिया।
स्वाऊ माता उन्हें देखकर बोली कि आ वहन बहुत दिनों में आई, फिर कहने लगी कि बहन मेरे सिरे में….
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 17 |
PDF साइज़ | 8.1 MB |
Category | Vrat Katha |
अहोई अष्टमी माता की आरती
जय अहोई माता, जय अहोई माता ।
तुमको निसदिन ध्यावतहर विष्णु विधाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमलातू ही है जगमाता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावतनारद ऋषि गाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
माता रूप निरंजनसुख-सम्पत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावतनित मंगल पाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव प्रकाशकजगनिधि से त्राता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
जिस घर थारो वासावाहि में गुण आता ।
कर न सके सोई कर लेमन नहीं धड़काता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
तुम बिन सुख न होवेन कोई पुत्र पाता ।
खान-पान का वैभवतुम बिन नहीं आता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
शुभ गुण सुंदर युक्ताक्षीर निधि जाता ।
रतन चतुर्दश तोकूकोई नहीं पाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
श्री अहोई माँ की आरतीजो कोई गाता ।
उर उमंग अति उपजेपाप उतर जाता ॥
जय अहोई माता, जय अहोई माता ।
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