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कालाष्टमी व्रत कथा – Kalashtami Vrat Katha PDF Free Download
कालाष्टमी व्रत कथा
कालाष्टमी को काला अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है यह त्यौहार हिन्दू पंचांग के हर माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. कालभैरव के भक्त पूरे साल की सभी कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं। पूजा की जाती है जिन्हें शिवजी का एक अवतार माना जाता है।
मार्गशीर्ष माह की कालाष्टमी को सबसे प्रमुख कालाष्टमी माना जाता है। इसी अष्टमी को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। यह मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव भैरव के रूप में प्रकट हुए थे। कालभैरव जयन्ती को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
कालाष्टमी व्रत कथा
एक समय की बात है जब श्रीहरि विष्णु और ब्रह्मा के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। यह विवाद इस हद तक बढ़ गया कि समाधान के लिए भगवान शिव एक सभा का आयोजन करते हैं।
इसमें ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि उपस्थित थे। सभा में लिए गए एक निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, किंतु ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं होते।
वे महादेव का अपमान करने लगते हैं। शांतचित शिव यह अपमान सहन न कर सके और ब्रह्मा द्वारा अपमानित किए जाने पर उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया। भगवान शंकर प्रलय के रूप में नजर आने लगे और उनका रौद्र रूप देखकर तीनों लोक भयभीत हो गए।
भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। वह श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था। हाथ में दंड होने के कारण वे ‘दंडाधिपति’ कहे गए।
भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं।
इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए।
जिसके पश्चात ब्रह्म देव और विष्णु देव के बीच विवाद समाप्त हो गया और उन्होंने ज्ञान को अर्जित किया जिससे उनका अभिमान और अहंकार नष्ट हो गया। उस दिन को रूद्रावतार भैरव के जन्म दिन के रूप में मनाया जाने लगा। इसे कालाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है। इसका एक नाम ‘दंडपाणी’ पड़ा था।
कालाष्टमी का महत्व
कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है। कालाष्टमी को भगवान शिव के रूद्र रूप काल भैरव की पूरे विधि-विधान से पूजा करने एवं व्रत रखने से हमें स्वयं भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। विशेष रूप से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा और बीमारियां दूर होती हैं तथा प्रत्येक कार्य में सफलता की प्राप्ति होती है।
कालाष्टमी पूजा विधि
भगवान शिव के भैरव रूप की उपासना करने वाले शिव भक्तों को भैरवनाथ की षोड्षोपचार सहित पूजा करनी चाहिए और उन्हें अर्ध्य देना देकर रात्रि के समय जागरण कर शिव एवं पार्वती की कथा एवं भजन कीर्तन करना चाहिए।
भैरव कथा को सुनना और उस पर विचार करना चाहिए। मध्य रात्रि होने पर शंख, नगाड़ा, घंटा आदि बजाकर भैरव जी की आरती करनी चाहिए। भगवान भैरवनाथ का वाहन ‘श्वान’ (कुत्ता) है। अत: इस दिन प्रभु की प्रसन्नता के लिए कुत्ते को भोजन कराना चाहिए।
हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन प्रात:काल पवित्र नदी या सरोवर में स्नान कर पितरों का श्राद्ध व तर्पण कर भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं।
भैरव जी की पूजा व भक्ति से भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहते हैं। शुद्ध मन एवं आचरण से जो भी कार्य करते हैं, उनमें इन्हें सफलता मिलती है।
कालाष्टमी का व्रत धार्मिक ग्रन्थ के अनुसार जिस दिन अष्टमी तिथि रात्रि के दौरान बलवान होती है उस दिन कालाष्टमी का व्रत करना चाहिए। इसलिए यह व्रत कभी कभी सप्तमी तिथि में भी आ जाता है।
इस मंत्र का करें जाप
शिव पुराण में कहा है कि भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं इसलिए आज के दिन इस मंत्र का जाप करना फलदायी होता है.
“ह्रीं वटुकाय आपदुद्धारणाय कुरुकुरु बटुकाय ह्रीं”
“”ॐ ह्रीं वाम वटुकाय आपदुद्धारणाय वटुकाय ह्रीं””
“ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं हरिमे ह्रौं क्षम्य क्षेत्रपालाय काला भैरवाय नमः”
लेखक | – |
Language | English |
No. of Pages | 3 |
PDF Size | 0.1 MB |
Category | Vrat Katha |
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