योग विज्ञान – Yoga Vigyan Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
नाड़ियों की शुद्धि व स्वास्थ्य की रक्षा हठ योग का अव्यवहित उद्देश्य है। धेरंड संहिता का मत है कि हठ शास्त्रोक्त देश रादि धौति, बस्ति, नेति, त्राटक, नौलि ओ कपालभाति द्वारा होती है।
हठयोगी शारीरिक क्रियाओं की ओर विशेष दृष्टि रखकर देह को बलिष्ठ, दुद और स्थिर, आसन और मुद्रा के अभ्यास से करता है।
प्रत्याहार, प्राणायाम, धारणा ध्यान और समाधि के द्वारा क्रमशः देहि चीरता. लघुता, आत्मप्रत्यक्ष तथा निर्लेपता सम्पन्न होती है।
आसन के विधिवत् अभ्यास से देह की स्थिरता, निरोगता तथा लघुता सम्पत्र होती है व दीर्घकाल तक के अभ्यास से रजोगुण जनिव देड की चंचलता और मन की अस्थिरता दूर होती है व रोगों की निवृत्ति भी होती है।
शरीर का भारीपन, तमोगुण दूर होकर दिल हार की होली है।
सात्विक तेज़ की वृद्धि होती है, परन्तु नाड़ी चक्र नाना प्रकार से आच्छन्न होते रहने के कारण वायु सुपर्ना मार्ग में प्रवेश नहीं कर पाती इसलिये प्राणायाम आरम्भ के पहले नाड़ी शोधन करना अत्यन्त आवश्क है।
नाही शुद्ध हुए बिना उन्मती भाषा व मनोविकृति की कोई आशा नहीं रहती।
इसीलिए साहित्य उपनिषद के मतानुसार नाड़ों शोधन प्राणायाम का अभ्यास कई महीने तक दिन में प्रातः स्कूल दो बार करना चाहिए देह की कृशता, का उजला अनुसार वायु धारण करने का सामर्थ्य,
अस्ति वृद्धि की अभिव्यक्ति र आरोग्यता यह सब लक्षण मश आविर्भात हो जाये कच समता चाहिए कि सब नाड़ियाँ शुद्ध हो गई है। से ब य सुषुम्ना मुख से निहित कुल कुंडलिनी जागृत होकर है।
कुंडलिनी के जलने पर परियों आज का भेदन होत परन्तु नाड़ी चक्र नाना प्रकार से आच्छन्न होते रहने के कारण वायु सुपर्ना मार्ग में प्रवेश नहीं कर पाती इसलिये प्राणायाम आरम्भ के पहले नाड़ी शोधन करना अत्यन्त आवश्क है।
लेखक | अज्ञात-Unknown |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 393 |
Pdf साइज़ | 137 MB |
Category | स्वास्थ्य(Health) |
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