अछूत कौन और कैसे – Untouchale Hindi Book/Pustak PDF Free Download
अहिन्दुओं में अछूतपन
अछूत कौन हैं और अछूतपन कैसे पैदा हुआ है ? यही वह मुख्य प्रश्न है जिसका उत्तर इन पृष्ठों में देने का प्रयत्न किया गया है ।
विषय की गहराई में उतरने से पहले कुछ आरम्भिक प्रश्नों का उत्तर देना आवश्यक है। पहला प्रश्न है कि क्या संसार में केवल हिन्दू ही हैं जो अछूतपन मानते हैं ? यदि अहिन्दुओं में भी अछूतपन है तो हिन्दुओं के अछूतपन और अहिन्दुओं के अछूतपन में क्या अन्तर है ? दुर्भाग्य से अभी तक किसी ने ऐसा तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया । इसीका परिणाम है कि यद्यपि अनेक लोग यह जानते हैं कि हिन्दुओं में अछूतपन है, किन्तु वे यह नहीं जानते कि इसका अनोखापन क्या है? इसके अनोखेपन और इसकी विशेषताओं को यथार्थ रूप से समझ लेने से ही अछूतों की यथार्थ स्थिति समझ में आ सकती है और उसी से अछूतपन की उत्सत्ति भी जानी जा सकती है।
यह अच्छा ही होगा कि पहले हम इस बात की जाँच करें कि आरम्भिक और प्राचीन समाज में स्थिति क्या थी ? क्या वे अछूतपन को स्वीकार करते थे ? सबसे पहले हमें यह बात स्पष्ट होनी चाहिये कि वे अछूतपन से क्या समझते थे ? इस बारे में सभी का एक ही मत होगा सभी इस बात को स्वीकार करेंगे कि अद्भुतपन का आधार गन्दगी, अपवित्रता तथा ‘छूत’ लग जाने की कल्पना और उससे मुक्त होने के तरीके तथा साघन हैं।
जब आरम्भिक समाज के सामाजिक जीवन की परीक्षा इस उड़ श्य से की जाती है कि हमें पता लगे कि वे लोग उपरोक्त अर्थ में अछूतपन से परिचित थे या नहीं,
शताब्दी में नागों को विशेष रूप से मध्य भारत में दूसरी बार फिर महत्व प्राप्त हुआ । ०० ई० मेल-स्थित भोजपुर के महाराज विवर देव ने एक नाग-वंश को हराया।
इसके कुछ समय बाद हमे बलके शिक्षा-खेलों में भी लोगों के दो उल्लेख मिलते हैं।
महामारी लिक ईश्वर घोष का रामगंज का लेखा लेकर के एक घोष नाग परिवार से हबें परिचित कराता है। इसे ग्यारहवी शताब्दी में माना गया है।
बारहवीं शताब्दी के इरिवर्म देव के मन्त्री भट्ट भवदेव की भुवनेश्वर प्रशस्ति में भी उसके द्वारा नागों के विनाश का उत्तक है। रामचरित्र ने भी रामपाल द्वारा भव भूषण-सन्तति के राज्य की विजय को देख लिया है।
लेकिन बह बह अस्पष्ट है कि वे नाग देवता चान्द्र अधिक सम्भावना रही है कि वे नाग ही थे, क्योंकि वे ही अधिक प्रसिद्ध थे। दसवीं से बारहवीं शताब्दी तक सेन्द्रक, सिन्हा छिन्दक
परिवार की भिन्न भिन्न शाखाओं शनैः शनैः मध्य भारत के, ( विशेष रूप से बस्तर में ) भिन्न-भिन्न भू-प्रदेशों में फैल गई । दसवीं शताज्दी के शिला खेलों में बेगूर के ग्रहों का भी बखान है।
थे पश्चिम क्ष के राजा हरियाणा की ओर से वीर महेन्द्र के विरुद्ध लड़े और युद्ध में वरा माप्त किया ।
बदि ‘नवमी साडू-चरित’ की साक्षी सही स्वीकृत की जाय तो सिन्धुराज परमार की रानी का पिता नाग-नरेश इसी समय के पस नर्मदा के तट पर रत्नवती में राज्य करता रहा होगा।
द्रिड कौन हैं ? क्या वे नागों से भिन्न हैं। क्या क्या ये एक ही नसल के लोगों के दो भिन्न नाम है ? प्रचलित मत है कि द्रविड़ और नागेश भिन्न नस्लें थी। यह मत लोगों यो कनोसा लगेगा किन्तु तो भी यही बात सही है |
लेखक | डॉ। भीमराव अम्बेडकर-DrBhimrao Ambedkar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 204 |
Pdf साइज़ | 143.2 MB |
Category | इतिहास(History) |
अचुत कोन या कैस – Achhut Kon Or Kaise Book/Pustak PDF Free Download