ययाति हिंदी में – Yayati by Vishnu Khandekar Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
नवीन क्योंकि शर्मिष्ठा एक राज क्या है य परीक्षक उसकी दविता थैष्ठ बतावा जयाब बर ये है ‘ बार परीनका न हार और उस पुरलारको हम दानो म समान रप म बाद दिया
तय जागर वह बह चात हुई उस गमय पु्े प्रथम पुरस्कार मिला केवल चित्रकला प्रतियोगिता में और बह भी इस लिए वि देवयानी वो चित्र बनाना जाता ही नही ।
उसके पिता माननी लिए तपस्या करने बठे थ मजीवनी को यहायता से दानव देवताओं पर विजय पान जा रहे थे।
इसलिए मरे पिताजी शी मीति हमेशा यही रहती थी कि जा भी हा दबयानी नाराज न दिया जाए मुबे भी जाकी प्रेम मोति पर ही चलना पट्टा।
दो नार गही उमरी अनारी मनोयति की अनখ पटनाए मेरे मन पर गहरी अक्ति थी-भीतर ही घुसा रही थी।
सुबह मरा पहना हुआ वस्त्र यह उतारन लगी तब द सारी स्मृतिया बिस्कोट वे माय पट पड़ी ‘ लकिन यह राब मैं निगे गुनाक’ विस ओर बसे समझाऊं |
मरे मुह मे चार अपस अवश्य निवज गए बिन्दु थे आाज मेरे समूचे जीवन राध्वस करने जा रहे हो । इस एक गलती ने लिए राजकया वो दाती बनने की सजा दी जा रही है मैं राशी चन आऊ ?
अरमिचर र्मी यन जाए नि रात अपनी ही पूजा मं ी रहने वाली दस सुन्दर पाषाण मूर्ति की में गर्मी यन जाऊ ?
सभ्य नही । मही मरे मह से रावल अपसारी नही निकले । म नह रही थी, यह देवयानी बा हो है। न उपहार म रूप दिया था । मुमें उसे पहतनা नही चाहिए था।
अब भी मैं उस ही पहन हुए ह । लेनित जिस कच न अपनी जान ज्योतिष में डलर देव नवा का युद्ध ब कराया मेरे द्वारा दिल गए |
उपहार बालकर इतना भयगर गदा की हो कया नहा मान रात को ही मुझे अपन परत टीर तर क रर रस में बस ता हो कि यह यब मरा नहीं है?
घुत मे राज ये बनी यही गई है इसी राग्नि सब वाता को दासिया पर हो और दयनीय मात मुझे प’ गई।
लेखक | विष्णु सखाराम पाण्डेयकर – Vishnu Sakharam Pandeykar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 357 |
PDF साइज़ | 6.86 MB |
Category | उपन्यास(Novel) |
ययाति – Yayati by Vishnu Khandekar Book/Pustak Pdf Free Download