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वैदिक हवन यज्ञ विधि व जन्म दिवस के मंत्र -Vedic Havan Yagya Vidhi Book PDF Free Download
वैदिक हवन यज्ञ विधि व जन्म दिवस के मंत्र
ओं प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परिता बभूव ।
यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम् ।।६ ।।
हे [प्रजापते] सब प्रजा के स्वामी परमात्मा ! [त्वत्] आपसे [अन्यः] भिन्न दूसरा कोई [ता] उन [एतानि] इन [विश्वा] सब [जातानि] उत्पन्न हुए चेतनादिकों को [न] नहीं [परिबभूव] तिरस्कार करता है अर्थात् आप सर्वोपरि है।
[यत्कामा:] जिस पदार्थ की कामना वाले होकर हमलोग [ते] आपका [जुहुमः] आश्रय लेवें और वांछा करें, [तत्] वह कामना [नः] हमारी सिद्ध होवे, जिससे [वयम्] हम लोग [रयीणाम्] घन-ऐश्वयों के [पतयः] स्वामी [स्याम] होवें ॥६॥
ओं स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा ।
यत्र देवा अमृतमान शानास्तृतीये धामन्नध्यैरयन्त ।।७।।
हे मनुष्यो ! [सः] वह परमात्मा [नः] अपने लोगों को [बन्धुः] भ्राता के मान सुखदायक, [जनिता] जगत् का उत्पादक. [सः] वह [विधाता] सब कामों का पूर्ण करने हारा [विश्वा] संपूर्ण [भुवनानि] लोकमात्र और [घामानि] नाम, स्थान और जन्मों को [वेद] जानता है।
और [यत्र] जिस [तृतीये] सांसारिक सुख-दुःख से रहित नित्यानन्द युक्त [धामन्] मोक्ष स्वरूप धारण करने हारे परमात्मा में [अमृतम्] मोक्ष को [आनशानाः] प्राप्त होके [देवाः ] विद्वान लोग [अध्यैरन्त] स्वेच्छापूर्वक विचरते हैं, वही परमात्मा अपना गुरु, आचार्य, राजा और न्यायाधीश है। अपने लोग मिलकर सदा उसकी भक्ति करें ॥ ७॥
अथ स्वस्ति-वाचनम्
ओं अग्निमीडे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् होतारं रत्नधातमम् ॥
भावार्थ – जो ज्ञानस्वरूप, सर्वत्र व्यापक, सब प्रकार के यज्ञादि श्रेष्ठ कर्मों का प्रकाशक, सब ऋतुओं में पूजनीय, सब सुखों का दाता और जो धन एवं ऐश्वर्य का भंडार है, हम सब को ऐसे प्रभु की उपासना, प्रार्थना व स्तुति करनी चाहिए।
ओं स नः पितेव सूनवेने सूपायनो भव । सचस्वा नः स्वस्तये ।।
हे प्रभो ! हम आपके इतने समीप हों जैसे एक पुत्र अपने पिता के समीप होता है। हम आपसे ऐश्वर्य एवं सुख याचना करते हैं। हमें कल्याणों से सम्पन्न कीजिए।
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी, संस्कृत |
कुल पृष्ठ | 56 |
PDF साइज़ | 20.3 MB |
Category | Religious |
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