अग्निहोत्र हवन विधि | Agnihotra Havan Vidhi Hindi PDF

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अग्निहोत्र हवन विधि – Agnihotra Havan Vidhi PDF Free Download

हमारी संस्कृति और पंच महायज्ञ

हमारी आर्य संस्कृति में पांच महायज्ञों ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, बलिवैश्व देव यज्ञ, पित यज्ञ और अतिथि यज्ञ को विशेष स्थान प्राप्त है। प्रत्येक यज्ञ का अपना-अपना वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण है।

अग्नि होत्र अर्थात् देवयज्ञ आर्यों की संस्कृति में अपना एक महत्त्व पूर्ण स्थान रखता है। सांसारिक प्राणियों के लिये यह नैतिक कर्म हैं। प्रत्येक मनुष्य को इन्हें यथा शक्ति अवश्य करना चाहिये ।

ईश्वर वाणी वेदों के आधार पर मनुष्य जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कारों का विशेष महत्व है। हमारी जीवन शैली में कोई भी संस्कार यज्ञ के बिना सम्पन्न नहीं होता।

जिस प्रकार आटे दाल आदि से भोजन बनाने के लिए जल का होना आवश्यक है उसी प्रकार जीवन के मुख्य संस्कारों जैसे गर्भाधान, नामकरण, मुण्डन, विवाह. जन्मदिन और वर्षगांठ आदि शुभ अवसरों पर हमारी सत्य सनातन वैदिक संस्कृति के अनुसार यज्ञ करना सर्वश्रेष्ठतमम् कर्म माना गया है।

प्रथम-ब्रह्म यज्ञ

ओम् । भूर भुवः स्वः । तत्-सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

कवितार्थ गायत्री मंत्र

तूने हमें उत्पन्न किया, पालन कर रहा है तू। तुझ से ही पाते प्राण हम, दुखियों के कष्ट हरता तू ।। तेरा महान तेज है, छाया हुआ सभी स्थान। सृष्टि की वस्तु वस्तु मे तू हो रहा है विद्यमान ।। तेरा ही धरते ध्यान हम, मांगते तेरी दया । ईश्वर हमारी बुद्धि को, श्रेष्ठ मार्ग पर चला।

शब्दार्थ गायत्री मंत्र

सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड के रचयिता प्राण स्वरूप, दुःख वनाशक सब सुखों को देनेहारे प्रभु । अपनी आत्मा को आपके तेज़ से प्रकाशित करने के लिये हम आपके तेजस्वी स्वरूप को धारण करते हैं जो हमारी बुद्धियों को सभी बुरे कर्मों से अलग करके सदा उत्तम कार्यों की ओर प्रेरित करे।

नमस्कार–मन्ताः

सन्ध्या के मन्त्रों का संक्षिप्त अर्थ | सम्पूर्णं जड ओर चेतन जगत की रचना करके प्रत्येक प्राणी मात्र का कल्याण करने वाले परम पिता परमेश्वर, आप हमें वह सभी सुख-साधन प्रदान करे कि हम शुद्ध खानपान का सेवन करके, प्राणायाम द्वारा अपने शरीर मन व इन्द्रियों के दोषों को दूर करकं यशस्वी ओर बलशाली बनें।

हे प्रमु हम अपने अंतःकरण में आपकी दिव्य शक्तियों की अनुभूति करते हुए सदा पवित्र कर्म करें ओर आपकी आज्ञाओं का पालन करने में तत्पर रहं । सूर्य. चन्द्र, पृथ्वी, समुद्र. वायु.

आकाश, जीव, वृक्ष रात-दिन, लोक लाकान्तरों आदि की रचना करके साक्षी भाव से सृष्टि की प्रत्येक गतिविधि पर हर पल नजर रखने वाले प्रहरी प्रभु | हमें एेसा आत्म ओर शारीरिक ` बल प्रदान करें कि हम हर पल आपकी अनुभूति करते हए कभी भी पाप कर्म न करे।

अनन्त ज्ञान के महा प्रणेता प्रभु | हमे भी वेदों में रचित ज्ञान ओर विज्ञान प्रदान करें कि हम चारों दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर. दक्षिण, पृथ्वी ओर आकाशं लोक में रहने वाले सभी विषधर प्राणियों सौसारिक दुष्टों तथा अविद्या रूपी अंधकार सरे अपनी ओर दूसरे प्राणियों की रक्षा कर सके ।

अज्ञानवश हमं किसी से या कोई हमारे साथ वैर-विरोध करता है तो हम न्याय के लिये आप की व्यवस्था पर छोडते हँ]

सब प्रकार को अविद्याओं ओर पाखण्ड से रहित प्रभु | राग-द्वेष-मोह आदि वासनाओं से हमारी रक्षा करकं हमे सौ वषं तक सुखपूर्वक जीने के सभी साघन प्रदान करें। हे दया के सागर हम बार बार आपको नमन करते हे कि आप पर हमारी पूर्ण श्रद्धा ओर विश्वास सदा बना रहे ।

जीवन कें सभी सुखो को भोगते हुए, कल्याण मागं के पथ पर चलकर हम जन्ममृत्यु के बन्धन से छूटकर मोक्ष के अधिकारी बनें |

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 40
PDF साइज़8 MB
CategoryReligious

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