स्वास्थ्य रक्षा – Health Security PDF Free Download
गंगाजल की परीक्षा
“चरक” में लिखा है:– “जिस जलमें भिगोये हुए चाँवल जैसेके तैसे रह जायँ, वही सम्पूर्ण दोषनाशक गङ्गाजल जानना चाहिये । जिसमें ये गुण न हों वह समुद्र-जल समझना चाहिये।” “सुश्रु त”
में लिखा है: – “शाली चाँवलोंको ऐसा पकावे कि, वह जल भी न जायँ और उनमें कनी भी न रहे। पीछे पके हुए चाँवलोंकी साफ़ विएडीसी बनाकर, चाँदीके बर्तन में रखकर, वरसते मेहमें बाहर रख दे।
अगर एक मुहूर्त्त* भर वैसी-की-वैसी पिएडी बनी रहे; यानी न तो पिण्डी बिखरे, न घुलकर जल गदला हो, तो जाने कि गङ्गाजल बरसता है।” जहाँतक बन पड़े, गङ्गाजल इकट्ठा कर रक्खे ।
यदि गंगाजल किसी कारणवश न रख सके, तो भौमजल (पृथ्वीका पानी ) को काममें लावे । जो जल पृथ्वीसे लिया जाता है, उसे “भौमजल” कहते हैं। यह तीन प्रकारका होता है:- (१) जांगल जल, (२) अनूप जल, (3) साधारसा जन्म |
जो जल पृथ्वीसे लिया जाता है, उसे “भौमजल” कहते हैं। यह तीन प्रकारका होता है: – (१) जांगल जल, (२) अनूप जल, (३) साधारण जल ।
जिस देशमें थोड़ा पानी और कम दरख़्त हों तथा जहाँ पित्त और वात-सम्बन्धी रोग होते हों – उस देशको “जांगल देश” कहते हैं। जैसे राजपूतानेमें मारवाड़ | जांगल देशके जलको “जांगल-जल” कहते हैं।
यह जल-रुखा, खारी, हलका, पित्तनाशक, अनिकारक, कफनाशक, पथ्य और अनेक विकारोंको नाश करता है। अनूप जल ।
जिस देशमें पानीकी इफ़रात हो, वृक्षोंकी बहुतायत हो और जहाँ वात-कफके रोग होते हों उस देशको “अनूपदेश” कहते हैं। जैसे बंगाल | इस देशके जलको अनूप जल कहते हैं। यह जल -अभिष्यन्दि, मह दिन-तीसवें भागको कहते हैं।
सूरजकी गर्मी से समुद्रकाजल भाफकी सूरत में ऊपर उठकर बादल बन जाता है और वही जल ओला, ओस और मेहकी सूरत में जमीन पर गिरता है। समुद्रका पानी भारी होता है,
इसलिये बहुत ऊँचा नहीं जाता और प्रायः आपाढ़, सावन और भादों में बरसता है किन्तु गंगाजल हलका होता है। इस जलसे बनी भाफ़ बहुत ऊँची जाती है और मेहके रूप में, आश्विनमें, पृथ्वीपर गिरती है ।
लेखक | बाबू हरिदास वैध – Babu Haridas Vaidhya |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 496 |
Pdf साइज़ | 3895.1 MB |
Category | आयुर्वेद (Ayurved) |
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