सिंदुर की होली – Sindur Ki Holi Natak Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
पट्टीदारी का झगड़ा है । उस दिन जो लड़का आप से मिलने आया था, जिसको उम्र सत्रह अठारह साल के करीब थी। उसके बाप को मरे अभी साल भर हो रहा है।
अब उसे कमजोर और गरीब समझ कर राय साहब उसका हक़ भी हड़प लेना चाहते हैं। बेचारा उस दिन रोने लगा था ।
एकही खानदान और एकहो खून…
मुरारीलाल अच्छा तो इसमें तुम क्या कर सकते हो ? में खूब जानता हूँ भगवन्त बड़ा जालिम है ।
लाखों रुपया रैयत को लूट कर जमा कर लिये है। अभी तक आनरेरी मजि स्ट्रेट था-इस साल राय साहय भी हो गया है। उधर का सारा इलाका उसके रोब में है।
जो चाहेगा कर लेगा तो फिर मैं क्यों न कुछ….. बस की ओऔर रवा अमता हैं । माहिरबली वाह से। राजी है देने को । दस हजार लेकर तो वह अभी आ रहा है लेकिन उस लड़के की जान मारो जायेगो।
एकाएक फुखों से कटकर माहिरकली का हाथ पकते हुमे] तुम पर सुबहा करूँगा ? तबियत बेचैन हो जाती है तो भी कभी ऐसी बातें निकल जातो हैं।
तुमका और मनोज कर को प्रसन्न रखने में अगर मेरा सब कुछ बिगड़ जाय च भी मुझे चिन्ता नहीं। हाँ, जरा भीतर जाकर चन्द्रकला पूछे तो सवेरे की ढाक में कोई जरूरी पत्र तो नहीं है ?
माहिरमकी का प्रस्थान । मुरश्रोखाव कमरे में बेचेन होकर धर उधर रहलने लगते हैं। मुरारीलाल की अवस्था इस समय यः चालीस वर्ष को है।
गोरा और स्वस्थ शरीर, आंखें छोटी किन चमकता हुई और बने काले बाल जो पीछे की सर पूम बड़े हैं। दाड़ी मूछ पनी दुई । कर्मीज चौड़ो मुहरी का पाजामा और पंजाबीजूता पहने हैं। इस वेष में मुसारीजाब पूरा युवा मालूम हो रहे हैं।
लेखक | लक्ष्मीनारायण मिश्रा-Laxminarayan Misra |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 185 |
Pdf साइज़ | 11.5 MB |
Category | नाटक(Drama) |
सिंदुर की होली – Sindur Ki Holi Book/Pustak Pdf Free Download