उद्धव सन्देश – Shri Uddhav Sandesh Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
टीका-द्विधानां चेतः पूत्ति विधातु कतु मम सू्र्था श्रीविप्रदेय समाधान वहवो जनपदा: देशास्विष्टम्ति ॥८॥ अनु०–हे प्रियसखे ! तुम्हारे सदृश यन्धुओं का चित्त प्रसन्न करने
लिए मेरी मूर्तियों से सनाथ अर्थात् मेरे स्वरूपों से युक्त बहुत देश विद्यमान है, परन्त में निष्कपट भाव से बार २ तुम्हारी शपथ खा कर कह रहा हूँ कि ब्रज के अतिरिक्त हृदय सुखकारी भूमि कोई नहीं है I॥॥
मद्विश्लेप-ज्वलनपटली-ज्वालया जर्जराङ्गाः सर्वे तस्मित्निवनपदर्शी शासखिनोs्याश्रयिष्यन् । गोपीनेत्रावलिचिगलितै भू रिभिर्वाध्यवारा पूरै स्तेषां यदि निरवक्चिर्नामिपेकोऽभविष्यत् ॥६/॥
रीका-तस्मिन् गोकुले सवें शाखिनो वृक्षाः मद्विच्छेदेन निधनपदवी নাशावस्थां आाश्रयिष्यन् यदि गोपीनां नयन जलप्रवाहस्तेपा वृद्धाण्ण মभिपेको नाभविष्यन् ।॥।६॥
अनु०-दे सखे में अधिक क्या कह सकता हूँ । सुनो, मेरी वियोगाग्नि की उयालाओं से जर्जरांग होकर बहाँ के वृक्ष सय निधन पददी को प्राप्त हो जाते अर्थात् पूर्णतः सूख गए होते,
यदि गोपियों के नेत्रों से बिगलित प्रचुर अच जल की धारा निरन्तर उनको संसिक्त न रखती। भावार्थ-यदि गोपियों के नयनों की जल धारा उन वृक्षों को नहीं भीजाती तब वे सब अब तक सूख- मर जाते । ६।।
आत्मक्लेशैरपि नहि तथा मेरुनुर्येव्यथन्ते ब्रज गोपियाँ लेशमात्र मेरी व्यथा से जिस प्रकार व्यथित हृदय हो जाती हैं, सुमेरु के दरावर निज कलेशी से उस प्रकार व्यथित नहीं होता ।
अर्थात् गोपियाँ सुमेग के बरा- वर अपने दुःख को लेश. मात्र नहीं गिनती हैं, परन्तु मेरे क्षेश मात्र दुःख को देख कर अपने हृदय में सुमेरु के बराबर कलेश का अनुभव करती है।
अमएय मेरी इस विरह जन्य महान् को छिपाते हुए तुम आ्यन्त मोटी प्रेमग्र थि को उन्हें अय गत कराना, अर्थात् अति सावधानी से उन्हें खबर कोरोना।। १० ॥
रुग्रात्मक्लेशैः करणैस्तथा न यथा मद्न्यथालेशखेऽपि । तास्त् यक्तवीमां आ विन्तुवानः दूरीक क् त्वं तामु मम प्रमध्रन्यि विज्ञापवेयाः
लेखक | श्रीमद् गोस्वामी विरचित-Shrimad Goswami Virachit |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 25 |
Pdf साइज़ | 1 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
श्री उद्धव सन्देश – Uddhav Sandesh Book/Pustak Pdf Free Download