श्री रामकृष्ण वचनामृत भाग 3 | Shri Ramkrishna Vachanamrit Bhag 3 Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
पिता-मैं उससे यही कहता हूँ कि वह लिखना पढना भी करे, आपके यहाँ आने से मै मनाई तो नही करता । परन्तु लड़को के साथ हँसी-मजाक मे समय नष्ट न किया करे
श्रीरामकृष्ण- इसमे अवश्य ही संस्कार था । इसके दूसरे दो भाइयो मे वह बात न होकर इसी में यह क्यो पैदा हुई ? “जबरदस्ती क्या तुम मना कर सकोगे ? जिसमे जो कुछ है, वह होकर ही रहेगा ।”
पिता- हों, यह तो है । श्रीरामकृष्ण द्विज के पिता के पास चटाई पर आकर बैठे । बातचीत करते हुए एक बार उनकी देह पर हाथ लगा रहे हैं। सन्ध्या हो आयी ।
श्रीरामकृष्ण मास्टर आदि से कह रहे है, ‘इन्हे सब देवता दिखा ले आओ- अच्छा रहता तो में भी साय चलता ।’लडको को सन्देश देने के लिए कहा । द्विज के पिता से कह रहे है
‘ये कुछ जलपान करेंगे, कुछ जलपान करना चाहिए।’ द्विज के पिता देवालय देखकर बगीचे में जरा टहल रहे है । श्रीरामकृष्ण अपने कमरे के दक्षिण-पूर्ववाले बरामदे में भूपेन,
द्विज और मास्टर आदि के साथ आनन्द-पूर्वक वार्तालाप कर रहे है। कौतुक करते हुए भूपेन और मास्टर की पीठ में मीठी चपत भार रहे है। द्विज से हँसते हुए कह रहे है,
“फैसा कहा मंने तेरे बाप से “रान्ध्या के बाद द्विज के पिता श्रीरामकृष्ण के कमरे में फिर आये। कुछ देर मे विदा होनेवाले हैं । को गरमी लग रही है। श्रीरामकृष्ण अपने हाथों से पंखा जल रहे हैं।
“यहाँ आने पर तुम क्या हो, यह ये लोग समझ सकेंगे । पिता का स्यान किता ऊंचा है । माता-पिता को धोखा देकर जो धर्म करना चाहता है उसे क्या खाक हो सकता है ?
लेखक | सूर्यकांत त्रिपाठी-Suryakant Tripathi |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 729 |
Pdf साइज़ | 23.1 MB |
Category | प्रेरक(Inspirational) |
श्री रामकृष्ण वचनामृत भाग 3 | Shri Ramkrishna Vachanamrit Bhag 3 Book/Pustak Pdf Free Download