रामकृष्ण परमहंस वचनामृत – Ramkrishna Vachanamrut Pdf Free Download
श्री रामकृष्ण वचनामृत
वहाँ जी भक्त आते हैं, उनके दो दर्जे हैं। जो एक वर्जे के हैं, वे कहते मैं, हे ईश्वर, हमारा उद्धार करो, दूसरे दर्जेबाले अन्तरंग हैं, यह बात नहीं कहते। दो बातें जानने से ही उनकी बन जाती है।
एक तो यह कि मैं (श्रीरामकृष्ण अपने को) कौन हूँ, दूसरी यह कि वे कौन हैं-मुझसे उनका क्या सम्बन्ध है।तुम इस श्रेणी के हो । नहीं तो और कोई क्या इतना कर सकता था?
‘भवनाच, बाबूराम का प्रकृति भाव है। हरीश स्त्रियों का कपड़ा पहनकर सोता है। बावराम ने भी कहा है, मुझे वहीं भाव अच्छा लगता है। बसु मिल गया। यही भाव भवनाथ का मी है।
नरेन्द्र, यस्वाल, निरंजन, इन लोगों का पुरुष-भाव हैं। ‘अच्छा, हाथ टुटने का क्या अर्थ है? पहले एकसार भावावस्था में दौत टूट गया था। अबकी बार भावावस्था में हाथ टूट गया।
माणि को चुपचाप बैठे देखकर श्रीरामकृष्ण आप ही आप कह रहे हैं-हाथ ट्टा सब अहंकार निर्मूल करने के लिए। अ३ भीतर में कहीं खोजने पर भी नहीं मिलता।
खोजने को जब जाता हूँ तो देखता हूँ वे हैं। पूर्ण रूप से अहंकार नष्ट हुए बिना उन्हें कोई पान ही सकता। “चातक को देखो, मिट्टी में रहता है, पर कितने ऊंचे पर चढ़ता है।
“कभी-कमी देह कॉपने लगती है कि कही विभूतियाँ न आ जायें! इस समय अगर विभूतियों का आना हुआ तो यहाँ अस्पताल शफाखाने मुल जायंगे। लोग आकर कहेंगे,
मेरी बीमारी अच्छी कर दो। क्या विभूतियाँ अची होती है?मास्टर –जी नहीं, आपने तो कहा है, आठ विभूतियों में से एक के भी रहने पर ईश्वर नहीं मिल सकते । “बात यह है कि देहरक्षा के लिए बड़ी आहुविधा हो रही है
लेखक | सूर्यकांत त्रिवेदी-Suryakant Trivedi |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 659 |
Pdf साइज़ | 17.4 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
श्री रामकृष्ण वचनामृत- Sayings of Sri Ramakrishna Pdf Free Download