श्री गुरु गीता | Guru Gita PDF With Meaning In Hindi

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गुरु गीता हिंदी अर्थ सहित – Guru Geeta Pdf Free Download

श्री गुरुपादुकापञ्चकम्

नमो गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यो नमः परेभ्यः परपादुकाभ्यः ।

आचार्यसिद्धेश्वरपादुकाभ्यो नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्यः ।।१।।

श्री गुरुगीता के प्रारंभ में स्थित “श्री गुरुपादुकापंचकम्” का यह पहला श्लोक है। “सरपेन्ट पावर” नामक ग्रन्थ के अन्त में षट्चक्रनिरूपण के साथ शिवोक्त “पादुकापंचकम्” भी मिलता है। यह उससे भिन्न है।

उसका विवरण अभी हाल में चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान, वाराणसी से प्रकाशित षट्चक्रनिरूपण के श्री भारतभूषण कृत हिन्दी अनुवाद में विस्तार से दे दिया गया है।

इन दोनों की प्रतिपाद्य विषयवस्तु भिन्न है। हम यहाँ प्रस्तुत पादुकापंचक का विवरण देने जा रहे हैं।

यहाँ विशेष ध्यान देने की बात यह है कि गुरुपादुका पद का प्रथम श्लोक में बहुवचन में तथा अन्य चार श्लोकों में द्विवचन में प्रयोग है।

उक्त पादुकापंचक में भी समाहार में द्वन्द्व करके एकवचन और द्विवचन में यह पद प्रयुक्त है। ऐसा क्यों है ? इसे पहले हमें समझ लेना होगा।

महार्थमंजरीकार’ महेश्वरानन्द ने अपनी स्वोपज्ञ व्याख्या परिमल (पृ. ४-५ ) में पादुका पद की व्याख्या चरण पद से की है। शिवसूत्र (२.६) में गुरु को उपाय बताया गया है।

उस गुरु के दो चरण हैं ज्ञानलक्षण और क्रियालक्षण स्वातन्त्र्य, अर्थात् शिष्य की ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति को उचित समय पर जगाने की सामर्थ्य व्याकरण के नियम के अनुसार गत्यर्थक जितने भी धातु हैं, उनका ज्ञान, गमन और प्रापण यह त्रिविध अर्थ होता है।

यहाँ चरण पद गत्यर्थक चर धातु से बना है, अतः इसका अर्थ होगा, जिन गुरुचरणों की सहायता से शिष्य सब जगह पहुँच सकता है, सब प्राप्त कर सकता है और सब जान सकता है।

स्वप्रकाशशिवमूर्तिरेकिका तद्विमर्शतनुरेकिका तयोः ।

सामरस्यवपुरिष्यते परा पादुका परशिवात्मनो गुरोः ।।

अर्थात् एक पादुका स्वयं प्रकाशस्वरूप शिवमय है, दूसरी पादुका उनका विमर्शशक्तिमय शरीर है।

इन दोनों के सामरस्यमय शरीर से तीसरी परा पादुका बनती है, जो परम शिवमय गुरु का स्वरूप है।

इसका अभिप्राय यह है कि गुरु की इन त्रिविध पादुकाओं का सेवन करने वाला अपने गुरु के प्रसाद से, प्रथमतः शिव और शक्ति के प्रसाद से समस्त लौकिक व्यवहार को और उससे बाहर निकलने पर इनके सामरस्यमय परम तत्त्व को भलीभाँति समझ सकता है, क्योंकि गुरु की पादुका में यह स्वरूप स्वाभाविक रूप से छिपा हुआ है।

इस तरह से यहाँ प्रकाश, विमर्श और इनकी समष्टिरूपिणी तीन पादुकाओं की भावना विहित है। स्पष्ट है कि परमार्थतः गुरु की तीन पादुकाएँ हैं, अतः प्रथम श्लोक में बहुवचन का प्रयोग कर चतुर्विध चरणों का अथवा त्रिविध पादुकाओं का नमन किया गया है।

सामान्य शिष्य प्रारंभ में इस पारमार्थिक स्वरूप को जान नहीं सकता, अतः एक बार इस ओर इंगित कर देने के बाद अगले श्लोकों में लोकव्यवहार में समझ सकने लायक दो ही पादुकाओं को नमन किया गया है।

इतना तो स्पष्ट ही है कि महार्थमंजरी की परिमल व्याख्या में उद्धृत कुब्जिकामत में प्रयुक्त चरण शब्द पादुका का ही वाचक है।

लेखक व्रज वल्लभ द्विवेदी-Vraj Vallabh Dwivedi
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 123
Pdf साइज़49.6 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

श्री गुरु गीता – Shri Guru Geeta Book Pdf Free Download

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