श्री षोडशी तंत्र शास्त्र | Shodashi Tantra Shastra PDF

षोडशी तंत्र शास्त्र – Shodashi Mantra Book Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

यह अग्नि सोमाहुति से शान्त बन रही है। प्रातःकाल का बालमूर्य इसी को साक्षात् प्रतिकृति है, अतः देवी के शरीर की बालार्क अथवा बाल-पूर्व जैसी आभा इसी अवस्था की प्रतीक है।सूर्य से उत्पन्न होने वाली प्रजा सौर-आकर्षण-सूत्र से बद्ध रहती है।

स्वयं पृथ्वी भी उससे बद्ध होने के कारण कभी क्रान्तिवृत्त को नहीं छोड़ती अस्तु उस सौर-शक्ति ने अपने आकर्षण रूपी पाश से सबको बांध रखा है ‘पाश’ इसी का प्रतीक है ।

देवो सबके ऊपर अपना अंकुश रखती हैं। उन्हों के भय से अग्नि तपतो है, उन्हों के भय से सूर्य तपता है तथा उन्हीं के भय से इन्द्र, वायू तथा यम अपने अपने कार्य में संलग्न बने रहते हैं ।

‘अकुश’ इसी का प्रतीक है | जो प्रधापराध से शक्ति के अटल नियमों का उल्लंषन करते हैं, उनका वह नाण कर डालतो है ।

पृथियो, अन्तरिक्ष और यो-इन तीनों लोकों में व्याप्त रुद्र के अन्न, वायु और वर्षा -ये तोन प्रकार के वाण हैं। वे वाण यथार्थ में इस शक्ति के हो हैं।

इन्हीं के द्वारा वह संहार करती है । अतः ‘शर’ (वाण) इसी के प्रतीक हैं । सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, पालक विष्णु, सहारक रुद्र तथा खण्ड प्रलय के अधिष्ठाता यम-ये चारों देवता इसो गक्ति के अधीन है वह चारों पर प्रतिष्ठित है, अतः चतुर्बाहा’ इसी का प्रतीक है।

विविधनाम ‘यो विद्या’ ही ललिता, राजराजेश्वरो, महा त्रिपुर बन्दरों, वाला पञ्च- दशी तथा षोडशी आदि नामों से प्रसिद्ध है। मूल-तत्व में ऐक्य होते हुए भा ये भिन्न-भिन्न नाम अवस्थाभेद के परिचायक हैं।

सामान्यतः लोक में श्री शब्द का अर्थ ‘लक्ष्मी’ प्रसिद्ध है । परन्तु हारिता- पनसंहिता, ब्रह्माण्डपुराणोत्तरखण्ड आदि में वर्णित कथाओं के अनुसार ‘श्री’ शब्द का मुख्यार्थ ‘महात्रिपुर सुन्दरो’ ही है ।

श्री महालक्ष्मी ने महात्रिपुर सुन्दरी की चिरकाल तक आराधना करके जो अनेक वरदान प्राप्त किए हैं |

लेखकराजेश दीक्षित-Rajesh Dixit
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ229
Pdf साइज़55.9 MB
Categoryज्योतिष(Astrology)

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