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भारत की सांविधानिक विधि – Bharat Ki Samvidhanik Vidhi Book/Pustak Pdf Free Download
मूल अधिकारों और निदेशक तत्वों की परिधि निश्चित करने के लिए उद्देशिका का प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि अधिनियमित उपबंधों में समाजवाद, पथनिरपेक्षता और प्रजातंत्र के आदर्शों को स्थूल संप दिया गया है ।
समाजवाद और पथनिरपेक्ष शब्दों के रखने का प्रभाव – संविधान की उद्देशिका में समाजवाद और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्दों को अंतःस्थापित करने से संविधान में कल्पनातीत उतम्ने पैदा हो गई हैं ।
42वे संशोधन के प्रभेलाओं ने इन दो शब्दों से जो भी अर् प्रकट करने का आशय रस्ता हो
यह तो स्पष्ट ही है कि ये दोनों शब्द अस्पष्ट हैं । जनता सरकार ने इन शब्दो की विशाल परिधि को अनुच्छेद 366 में परिभाषाओं के माध्यम से सीमित करने का प्रयत्न किया था किंतु वह प्रयत्न असफल रहा ।
संविधान 45वे सश्शोधन विधेयक, 1978 के सुसंगत संटों को, जिनको पारित करके परिवर्तन किया जाना था,
राज्यसभा में कांग्रेस के संयुक्त विपक्ष ने अस्वीकार कर दिया । 1 मूल संविधान में कहीं भी यह नहीं कहा गया था कि इसमें जो प्रणाली, बनाई गई है वह ‘समाजवादी’ है ।
इसके विपरीत 1949 के संविधान में अनुच्छेद 19(1Xच) में व्यक्ति के संपत्ति के अधिकार और अनुच्छेद 312) के अधीन राज्य की प्रतिकर संदाय करने की बाध्यता का समाजवाद और राज्य के स्वामित्व से कोई मेज नहीं है इसी कारण पंडित नेहरू ने भी ‘समाजवाद’ शब्द से बचते हुए ‘समाजवादी प्रणाली का समाज अभिव्यक्ति का प्रयोग किया
जिसका यह अर्थ था कि प्रत्येक व्यक्ति की प्रगति के लिए समान अवसर होगा।’
संविधान के भाग 4 में राज्य को सम्बोधित कुछ निदेश ये जिनका झुकाव समाजवाद की ओर था । यद्यपि यहा भी अनुचोद 39क में यह विवक्षा है कि आर्थिक प्रणाली मूल रूप से व्यक्तिपरक होगी कितु राज
लेखक | दुर्गा दास बसु- Durga Das Basu |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 664 |
Pdf साइज़ | 59.5 MB |
Category | इतिहास(History) |
भारत की सांविधानिक विधि – Process of Indian Constitution Book Pdf Free Download