शंकराचार्य जीवन चरित्र – Shankaracharya Jeevan Charitra Book/Pustak PDF Free Download
शंकराचार्य जीवन चरित्र और उसकी सिद्धि
समाधान नहीं करता, मुस्थिर नहीं होता। श्रेत मनुष्य किये जैसे ही यह प्रश्न अनिवार्य है, वैसे ही उसके लिये इसका समाधान होना भी मावश्यक है ।
परन्तु इसके लिये विशेष चिन्ता या गामीर गदेषनाकी बल्लव नहीं होती है। क्योंकि मनुष्य मात्र ही इस गातफो मानता है
कि दुःख दूर करना और सुख-मोग करना जीवनका एकमात्र ध्येय है। तब प्रश्न उपस्थित होता है कि सब प्रकारके दुखोंको एक बार हो दूर करना और महासुख-जिसका नाम है-परमानन्द उस अनिर्वचनीय मुखको प्राप्त करनेका उपाय क्या है हिन्दु-धर्मे-शास्त्र- कारो और विदेशी
विद्वानों ने एक स्वरसे इसका उपाय क्या है-प- साधन और तत्त्वज्ञान की प्राप्ति । परन्तु प्रश्न होता है कि उस तत्त्वज्ञान और धर्मसाधनका स्वरूप क्या है ? पाठक जबफ इस प्रश्न का समा- यान न सम, तकतक शूर-स्वामीके मन्तष्यफ्ो नहीं समझ सकते ।
स्थूलको छोड़ कर सूक्ष्म प्रवेश करना, जड़को त्याग कर अध्या स्मका आश्रय लाम करना, धर्मका उद्देश्य है । जड़में, अह-देहमें, अड़ इन्द्रियोंमे आवद्ध होकर मनुष्यको जितने भी दुःख प्राप्त होते हैं, ऋनसे दूर होना, बाहा-बन्धन्नोका पग्त्याग करना,
उसकी सामध्य्यफी प्रापिकी जड़का त्याग और सूक्ष्मचा आश्रय लाभ है। इन वाहा -वन्यनोंको छिन्न करके जो मुक्ति लाभ होती है, उससे समस्त दुःख दूर हो जाते है और परमानन्दकी प्राप्ति होती है।आमतत्व सर्वपिष्ठा सृक्षम-ज्यापार ।
ध्यान, घारणाके मार्गको दी है। प्रहण फरके ही सम आारमतस्वमें प्रवेश किया जा सफता है। उसीसे पाह्य-बन्धनों से मुक्ति मिलती है। उसीसे विविध दुखोंका अवसान होता है। उसीसे महामुक्ति-जनित परमानन्दका उपभोग प्राप्त होता है। यही धर्मका सूक्ष्म तत्व है। यही ध
क्षुद्र सीमावद्ध आत्माको परमात्मामे परिणत करना-अर्थात् ‘मैं स्वयं ग्रह हूँ यह भाव लाम करना, (जिसको वैदिक भाषामे ‘सोह ) और ‘तत्त्वमसि आदि कहते हैं।) हिन्दू धर्म अथवा वेदान्व मतका प्रधान सिद्धान्त है। इसी सैद्धान्तिक सूत्रको लेकर आधुनिक
लेखक | उमदत्त शर्मा-Umadutt Sharma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 181 |
Pdf साइज़ | 5.8 MB |
Category | आत्मकथा(Biography) |
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