सत्यार्थ प्रकाश | Satyarth Prakash PDF In Hindi

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सत्यार्थ प्रकाश – Satyarth Prakash Free PDF Download

सत्यार्थ प्रकाश

प्रशासिता जो सब को शिक्षा देनेहारा सूक्ष्म से सूक्ष्म स्वप्रकाशस्वरूप समाधिस्थ बुद्धि से जानने योग्य है उसको परमपुरुष जानना चाहिये ॥ ५ ॥

और स्वप्रकाश होने से “अग्नि” विज्ञानस्वरूप होने से “मनु” सब का पालन करने और परमेश्व््यवान् होने से “इन्द्र”|

सब का जीवनमून होने से “प्राण” और निरन्तर व्यापक होने से परमेश्वर का नाम “ब्रह्म” है ॥ ६ ॥ ( स अह्मा स विष्णु ) सय जगत के बनाने से ब्रह्मा” सर्वत्र व्यापक होने से “बिष्णु” दुष्टों को दण्ड |

देके रुलाने से ‘फुद्र” मगलमय और सय का कल्याणकर्ता होने से “शिव” “य: सर्वपश्नुते न भरति न विनश्यति तदक्षरम्” “य: स्वयं राजवे स स्वराट” योऽग्निरिव कालः कल थिता प्रलयकर्ता स कालाग्निरीश्वरः”

(अक्षर) जो सर्वत्र व्याप्त अविनाशी ( स्वराट् ) स्वयं प्रकाशस्वरूप और (फालारिन० ) प्रलय में सब का काल भौर काल का भी काल है इसलिये परमेश्वर का नाम काळान्नि है॥७॥

(इन्द्र मित्रं ) जो एक अद्वितीय सत्य नाम वस्तु है उसी के इन्द्रादि सब नाम है. “युपु शुद्धेषु पदार्थेषु भवो दिव्यः” शोभनानि पर्णानि पालनानि पूर्णानि कर्माणि वा यस्य म:” “यो गुर्वात्मा स गरुत्मान्” “यो मातरिश्वा पायुरिय पलवान|

स मातरिशा” (विन्य) जो प्रकृत्यादि दिव्य पदों में व्याप्त ( सुपर्ण ) जिसके सत्तम पालन और पूर्ण कर्म है (गरुत्मान् ) जिसका प्रात्मा अर्यात् स्वरूप महान् दै ( मातरिश्वा ) जो बायु के समान अनन्त बलवान है|

इसलिये परमात्मा के दिव्य,प्रलयकर्ता स कालाग्निरीश्वरः” (अक्षर) जो सर्वत्र व्याप्त अविनाशी ( स्वराट् ) स्वयं प्रकाशस्वरूप और (फालारिन० ) प्रलय में सब का काल भौर काल का भी काल है इसलिये परमेश्वर का नाम काळान्नि है॥७॥

(इन्द्र मित्रं ) जो एक अद्वितीय सत्य नाम वस्तु है उसी के इन्द्रादि सब नाम है. “युपु शुद्धेषु पदार्थेषु भवो दिव्यः” शोभनानि पर्णानि पालनानि पूर्णानि कर्माणि वा यस्य म:” “यो गुर्वात्मा स गरुत्मान्” “यो|

मातरिश्वा” (दिव्य) जो प्रकृत्यादि दिव्य पदार्थों में व्याप्त ( सुपर्ण ) जिसके सत्तम पालन और पूर्ण कर्म है (गरुरमान् ) जिसका आारमा अर्थात् स्वरूप महान है ( मातरिश्वा ) जो वायु के समान अनन्त बलवान है इसलिये परमात्मा

के दिव्य, सुपण, गरुरमान् और मातरिश्वा ये नाम है, शेष नामों का अर्थ भाग लिखेंगे ॥८॥ (भूमिरमिक) “भवन्ति भूतानि यस्यां सा भूमि.” जिपमें सब मत प्राणी होते इसलिये ईश्वर का नाम “भूमि” है। शेष नामों का अर्थ भागे लिखेंगे ॥

भेरा इस ग्रन्थ के बनाने का मुख्य प्रयोजन सत्य २ अर्थ का प्रकाश करना है अथोत्‌ जो सत्य है उसको सत्य ओर जो मिथ्या है उसको मिथ्या ही करना सत्य अथ का प्रकाश समझा है।

वह सत्य नहीं कहाता जो सत्य के स्थान मे असत्य आर असत्य के स्थान में सत्य का प्रकाश किया जाय किन्तु जो पदाये जसा है उसको बेसा ही कहना लिखना और मानना सत्य कहाता है।

जो मनुष्य पक्तगती होता है बह अपने असत्य को भी सत्य ओर दूसरे विरोधी मतवाले के सत्य को भी असत्य सिद्ध करने में प्रदत्त होता है इसलिये वह सत्य मत को प्राप्त नही हो सकता इसीलिये विद्वान्‌ आप्तों का यही मुख्य काम है कि उपदेश वा लखद्वारा सब मनुष्यों के सामने सत्यासत्य का स्वरूप समर्पित करदें, पश्चात्‌ वे स्वयं अपना हिताहित समझ कर सत्याथे का ग्रहण और मिथ्यार्थ का परित्याग करके सदा आनन्द में रहें |

मनुष्य का आत्मा सत्यासत्य का जाननेवाला है तथापि अपने प्रयोजन की सिद्धि, हठ, दुराग्रह ओर अविद्यादि दोषों से सत्य को छोड असत्य में कुक जाता है परन्तु इस ग्रन्थ में ऐसी बात नहीं रखी ह ओर न किसी का मन दुखाना वा किसी की हानि पर तात्पये है ।

किन्तु जिससे मनुष्यजाति की उन्नति ओर उपकार हो, सत्यासत्य को मनुष्य लोग जानकर सत्य का ग्रहण ओर असत्य का परित्याग करें क्योंकि सत्योपदेश के बिना अन्य कोई भी मनुष्यजाति की उन्नति का कारण नहीं है ॥

इस ग्रन्थ में जो कहीं २ भूल चूक से अथवा शोधने तथा छापने में भूल चूक रह जाय उसको जानने ज॒नाने पर जैसा वह सत्य होगा वैसा ही कर दिया जायगा ओर जो कोई पतक्तपात से अन्यथा शंका वा खश्डन मएडन करेगा उस पर ध्यान न दिया जायगा ।

हां जो वह मदुष्यमात्र का हितेपी यद्यपि आजकल वहुत से विद्वान प्रत्येक मतों में झ् बे पत्तपात छोड़ सर्वेतन्त्र सिद्धान्त अर्थात्‌ जो २ बातें सब के अनुकूल सब में सत्य हैं उनका ग्रहरणा और नो एक दूसरे से विरुद्ध वात्तें हैं उनका त्याग कर परस्पर मीति से वर्च वत्तावें तो जग्रत्‌ का पूर्ण हित होने क्योंकि विद्वानों के विरोध से अविद्याना में विरोध वढ़कर अनेकविध दु/ःल की हद्धि और सुख की हानि होती हे ।

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लेखक दयानंद सरस्वती – Dayanand Saraswati
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 448
Pdf की साइज़ 12.3 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

सत्यार्थ प्रकाश – Satyarth Prakash Book/Pustak Free PDF Download

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