रसखान ग्रन्थावली | Raskhan Granthavali PDF

रसखान ग्रन्थावली सटीक – Raskhan Granthavali Book Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

हिन्दी-साहित्य का यह रीतिकाल सभी दृष्टियो से ऊँचा और आदर्श माना जाता है । इस युग में कविता करने की एक ऐसी प्रणाली बन गई, जिसका अवलम्ब सभी परवर्ती कवियो ने लिया ।

सच पूछा जाए तो भाषा, शैली पोर विषय तीनो दृष्टियों से यह काल एक ऐसा राजमार्ग बना जिस पर चलकर तत्कालीन कवियो को कविता करने में विशेष सुविधाएं मिली ।

उस युग मे कविता-पद्धति के हम दो विभिन्न रूप देखते हैं। एक रीतियुक्त पौर दूसरा रीतिमुक्त । रीति युक्त कवियो ने काय के लक्षण-ग्रन्यो के आधार पर कविताएं लिखी पर रीतिमुक्त

कवियों ने स्व- तन्त्र रूप से अपनी रचनाएँ उपस्थित की। इन कवियो मे से प्रमुख कवि पतानन्द थे । सच पूछा जाए तो इन कवियो की स्थिति रीतिकाल मे उसी प्रकार की थी जिस प्रकार कमल की स्थिति जल मे होती है।

सूक्ष्म रूप से হन काव्य का अध्यापन करने से इस बात की प्रापाणि हता स्परष्ट हो जाती है । रीतिकालीन कविता का राजमार्ग आद्योपान्त गार रस से प्रभु सिंचित है, इसमे संभवत तो किसीको भी सन्देह नही,

पर रीतिमुक्त कवियो ने इस पथ पर जहा तक सबरण किया भक्ति के, मगर, भूप, चन्दन से उसे पवित्र कर दिया । इनकी कविता केवल श्रृंगार की दशी-थनि हो नही,

श्रवितु भक्ति की हजटी भी मुखरित सुनाई पड़ती है। उन्होंने श्र गार के साथ भक्ति का मिश्रण करके बिहारी मे ‘याम हरित दुति होय से कुछ कम कामाल नहीं किया ।

दो शब्दो में यदि हम रीतिमुक्त कवियों को रीति पर रादी कवियो मे भवत कबि मान ले तो मथिक मूर्वितसंगत होगा। इस परम्परा के अन्तर्गत घनानन्द, बोबा, प्रातम, निवाज, ठाकुर यदि प्रमुख है।

लेखकदेशराज सिंह भाटी-Deshraj Singh Bhati
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ368
Pdf साइज़13.7 MB
Categoryसाहित्य(Literature)

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