राष्ट्रभाषा – National Language India Pdf Free Download
राष्ट्र-भाषा का स्वरूप
स्वतन्त्रता के स्वर्ण-विहान में देश की अन्य आवश्यक समस्याओं की भॉति ‘राष्ट्र-भाषा’ और ‘राष्ट्र-लिपि’ की समस्या भी हमारे सामने प्रमुख रूप से उपस्थित है।
इस सम्बन्ध में अभी तक अनेक नेताओं, साहित्यिकों एवं भाषा-शास्त्रियों ने सहस्रों. सद्प्रयत्न किये और देश की शिक्षित जनता के समक्ष अपने अपने विचार-सुझाव उपस्थित किये।
उनमें से ‘राष्ट्र-भाषा’ के सम्वन्ध में व्यक्त किये गए भावों का संकलन इसमें किया गया है । ‘राष्ट्र-लिपि’ के सम्बन्ध मे प्रकट हुए विचारों का मन्थन हम अपनी शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली दूसरी पुस्तक ‘राष्ट्र-लिपि देवनागरी’ में देगे ।
( डाक्टर राजेन्द्रप्रसाद )
देश में इन दिनों राष्ट्र-भाषा के सम्बन्ध में हिन्दी, उर्दू और हिन्दुस्तानी का जो विवाद उठ खड़ा हुआ है, उसके सम्बन्ध में भी मैं अपने विचार रखता हूँ ।
साहित्यिक जो भाषा लिखेंगे, वही भाषा श्रागे चल सकेगी । जो चीज़ जटिल हिन्दी अथवा जटिल उर्दू में लिखी जायगी, वह आगे चलकर मर जायगी ।
भाषा में जीव है, जीवन-दान करने की शक्ति है । जिस साहित्य में सत्य श्रौर सुन्दरता, है, वह अवश्य जीवित रहेगा । ग्रच्छी-से-अच्छी भाषा में भी असुन्दर और असत्य चीजें चिरस्थायी नहीं हो सकतीं । T
मै इस विवाद को बढाना नहीं चाहता । जो साहित्यिक हैं और अच्छी-से-अच्छी हिन्दी या उर्दू में अपने भावों को रख सकते हैं, वे उसी तरह रखें। भाव पर ही भाषा का जीवन निर्भर है।
‘भारत’ इस नाम का सम्बन्ध कुछ लोग यात्रा के पुत्र ‘भरत’ से जोड़ते है, कुछ लोग महाराज ‘जड़ मरत’ से तथा कुछ लोग राम के भाई ‘मरत’ से, से ही नागरी नाम का सम्बन्ध कुछ लोग गुजरात के ‘नागर ब्राह्मणों में,
कुछ लोग तान्त्रिक मंत्रों के ‘देवनागर’ चिह्नों से, कुछ लोग ‘नान लिपि’ से, कुछ लोग वास्तु, शिल्प, चित्र कला आदि की ‘नागर शैली से तथा कुछ लोग उत्तर भारत को ‘नगर नामक (यह पाटिलपुत्र, अहिक्षेत्र, कान्यकुब्ज आदि में से कोई एक थी) प्रसिद्ध राजधानी से जोड़ते हैं।
कुछ भी हो, मोनियर विलियम्स देवनागरी को ‘संसार की सर्वाधिक सुसंगत एवं पूर्ण वर्णमाला मानते थे । यह एक मुज्ञात तथ्य है कि कुछ वर्ष पहले एक जर्मन विज्ञान ने इस दृष्टि से देवनागरी अक्षरों की परीक्षा की बी।
उन्होंने अक्षरों के मिट्टी के पोले प्रतिरूप तैयार करके उनमें फूंक मारी थी मोर प.६, उ, तथा ए, इन चार अक्षरों को डीक उनकी ध्वनि के धनुरूद पाया था नेत्र-विज्ञान नेताओं की मान्यता है कि ‘शिरोरेखा देवनागरी की एक असाधारण वैज्ञानिक उपलब्धि है।
क्योंकि इसके कारण दृष्टि-शिराएँ व्यतिरेक-जन्य आाषात से मुक्त रहती हैं धोर इसके फलस्वरूप रष्टि-दुर्वजता को सम्भावना पैदा नहीं होती। इसकी मंशानिकता इसे संसार भर की लिपियों में सर्वोच्च स्थान दिलाती है ।
भारतीय भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि को उपयुक्तता न केवल उसको वैज्ञानिकता के कारण है: बल्लि उन भाषामों की लिपियों के साथ उसके अत्यन्त निकट सम्बन्धों के भी कारण है।
सन् १६३० में मद्रास में प्रायोजित ‘भारतीय साहित्य परिषद्’यह एक मुज्ञात तथ्य है कि कुछ वर्ष पहले एक जर्मन विज्ञान ने इस दृष्टि से देवनागरी अक्षरों की परीक्षा की बी।
लेखक | निगमानंद परमहंस-Nigamananda Paramahansa |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 225 |
Pdf साइज़ | 14.1 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
राष्ट्रभाषा का शुद्ध रूप – Rashtra Bhasha Ka Shuddh Roop Book Pdf Free Download
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