गांधीजी का आर्थिक दर्शन – Gandhiji Economic Principle Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
पर बारा चित्र कौन्त ने प्रस्तुत किया। पैसे विनियोग दो ऐली आय दौ, इसका उचित वितरण हो, बाकि सबको कप-याति प्राप्त दी के विनियोग द्वारा वया कप द्वारा स्वको पूर्ण रोजगार मिले, ताकि सारन और पाक्षिक वृद्धि के साथ मनुष्य उपभोग और उसका सुख निरन्तर अग्रसर हौवा रहे।
विसना ही जरूरी बलवान के लिए विनियोग है उतना ही उपमोग भी । इससे स्वर हो जाता है कि कमल मौद्रिक आय ही नही यहिच् उपमोग की वस्तुएँ और सेवाएं, उनके प्रकार ग्रर मात्राएँ खमाज के लिए बहुत ही आवश्यक है।
रोजगारी की खमत्या को मूल में रखकर कीन्स ने अर्थ शास्त्र को ऐसा मोस थिषा है कि यह निर्णिधार हो जाता है कि कीस एक महान् सामाजिक कल्याण अर्थशास्त्री हैं।वैज्ञानिक विचार धारा में विक्स्टेड, राबिन्स, राविन्छन कार, लिटिल, सैमुआलखन, बोल्डिग बे्रुक, हर्टर, तिस्टोबस्की पाॉँभूल आदि ने युग के अनुज्ञ वैश।
निकता की पृष्ठ भूमि में अर्थशास्त्र को देखने का प्रयास किया है। अर्थशास्त्र क चवन शास्त्र इसलिए मान लिया है कि श्राज के मानव की असीमित आकाक्षाएँ एक छोर हैं और उनको तृप्ति के सोमित साधन तथा पुरुषार्थ दूसरी तरफ. ऐसी जटिल स्थिति में कुछ को विवेक
पूर्ण इंग से प्राथमिकता और चयन की पद्ति अपना कर कल्याण की परसि करनी है । इसका तात्पर्य यह नहीं कि यहाँ अर्थशास्त्री निष्कृय एवं निरपेक्ष उदासीनता का परिचय दे रहा है । आज का अर्थशास्त्री उत्पादन, उपभोग,
विनिमय और वितरण के मान दर्ड की निर्धारित करके समाज की देता जा रहा है । वह अपने विचारों को मनुष्य पर थोर नहीं रहा है। लोकतांत्रिक पद्धति से उन सथ गुरास्मक रश्मियों को बिसेर रहा है, और साथ ही साथ मनुष्य को शि्षा-दोक्षा के विनियोग से विवेकश
लेखक | दुधनाथ चतुर्वेदी-Dudhnath Chaturvedi |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 433 |
Pdf साइज़ | 32.4 MB |
Category | Economy |
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