रस रत्नाकर – Ras Ratnakar Book/Pustak PDF Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
सैकड़ा मन्त्रों में अलंकारों का प्रयोग किया गया है, और सारे वेद में रसों की सुरम्य सरिता बहाई गई है। ऋषि-मुनियों की अधिकांश रचनाएँ काव्यमयी है।
वे हमारे लिए उन अलोकिक काव्य-ग्रन्थों को छोड़ गए है, जिन की समता संसार का कोई अन्य नहीं कर सकता ।
उन महापुरुषों ने तो धर्म, समाज, ज्योतिष, गणित, वैद्यक, शिल्प आदि विषयों तक को अपने अद्भुत काव्य-प्रभाव से अलौकिक और अमर बना दिया है।
हमारे जगत्प्रसिद्ध महाकाव्यों के कारण भारत-भारती की गुण-गरिमा का जो प्रसार और विस्तार हुआ है, वह किसमें छिपा है ।
बाल्मीकि, व्यास, कालिदास आदि महा कवि आज संसार में नहीं है परन्तु उनकी अनरा-धमा कोनि दिगदिगन्त भ्यापिनी हो रही है कवि-कुल-गुठ गोस्वामी तुलसीदाम ने गयनरित – मानस द्वारा परम पावन भगवान राम के उच्च प्रदेश के घर-घर की वस्तु बना दिया ।
दुलसीदास जी ने अपनी कविता-कला के से जाति की जगाया, श्रीर कोटि- कोटि जनता प्रभाव का चरित-सुधार किया ।
इसी प्रकार सूर, केशव, विद्यारी, देव, पद्माकर मतिराम, भूषण आदि महाकवियों ने भी अपनी-अपनी काव्य साधना द्वारा सरस्वती की भाराधना की
जिस काव्य की इतनी महिमा है, वास्तव में यह क्या है। इस विषय पर यहा विचार करना कुछ अनुचित न होगा।
संसार में शन्द के कर में जो कुछ सुनाई पता है. वह दो भागों में विभक्त किया जा सकता है अर्यात् स्वनि और बा । अध्यक्त शब्द को बान और व्यक्त को ब संश दी गई ।
कुत्ता, बिल्ली, तोता, मैना. कौमा, कभूतर आदि जो कुछ बोलते हैं, वह स्वनि है। मुरली, बीणा, सितार, भूदग आदि से जो मनो मोदक शब्द निकलता है. बद भी ध्वनि । परन्तु मनुष्य के मुंद से ओ सार्थक शब्द निकलते हैं, उन्हें वर्ण माना गया है।
लेखक | हरिशंकर शर्मा-Harishankar Sharma, Nagarjuna |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 731 |
Pdf साइज़ | 46.4 MB |
Category | उपन्यास(Novel) |
रस रत्नाकर श्री नागार्जुन रचित देवनागरी लिपि
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