अपराध और दंड – Aparadh Aur Dand Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
जुलाई को एक गरम संध्या को एक युवा पुरुष पचमंजिये मकान से अपने छोटे-रहने के स्थान से- निकला, और बिना कुछ सोचे हुए नदी के पुल की बोर चला। वह खुश था कि सीढ़ियों पर मकान मालकिन से उसकी मेंट नहीं हुई, जो नीचे के हिस्से में रहती थी,
और जिसकी रसोई काहार सदा खुला रहता था। जब कभी यह युवा बाहर जाता, तो सवसे पहले अपने इसी शत्रु का सामना पड़ता था, इससे यह घबराता था और उसकी भौंहों में बल पद जाते थे ।
उसको मालकिन के कुछ रुपए देने थे, इसलिये बह उसका सामना करने से धरता था।
उसको इधर कोई भारी नुकसान तो नहीं हुआ था; परंतु कुछ दिनों से उसका दिमाग पागलों का सा हो रहा था । उसने समाज में बैठना छोड़ दिया , और अब वह मकान की मालकिन ही से नहीं,
प्रत्येक मनुष्य से घृणा करने लगा था दरिद्रता से कभी यह चितित रहा करता था; परंतु अब उसको उसका भी ध्यान न था । उसने अपने नित्य-कर्म छोड दिए थे, और अपने मन में मालकिन के ऊपर हंसा करता था ।
पर तु किर भो सोडियों पर मुठभेद हो जाने से जो गालियाँ और धमकियाँ उसको सुननी पहती थीं, जो बहाने उसको करने पकते थे, उनकी अपेक्षा चोरी से निकल जाना ही वह अड़ा समझता था। सार जथ यह सवक पर निकल पाया,
तो उसको यदा आश्रयं हुआ कि मैं इस बी से इतना क्या धवराता है। उसने सोचा, इन ड्ोटी-डोटी बातों-ये मुझे पमराना नही चाहिए, जब कि मैं इतना भारी काम करने के लिये तैयार हो रहा है वह हैंसने और धीरे-धीरे बदबढ़ाने लगा
लेखक | कविराज विद्याधर-Kaviraj Vidyadhar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 467 |
Pdf साइज़ | 31 MB |
Category | Novel |
अपराध और दंड – Aparadh Aur Dand Book/Pustak Pdf Free Download