रंग भूमि – Rangbhoomi Book Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
सूरदास साठी टेकता हुआ चीरे-धीरे पर चला । रास्ते में चलते चलते सोचने लगा है बड़े आदमियों की स्वाधधरता !
वाले कैसे सेक्सी दिखाते हैं, मुझे कुले से भी जीचा सन्मालेकिन ज्यों ही मादम हुआ कि जमीन मेरी है, कैशी रो-बर्णी करने लगे। इन्हें में अपनी जमीन दिवे देता है।
५) दिग्लाते में, मानो मैंने रूपये देसे ही नहीं । पाँच तो क्या, पाँच सौ भी दें. तो भी जमीन न दूंगा । सु्लेवाी को कौन गैँह दिखाऊँगा।
इनके कारखाने के लिए बेचारी गडएँ मारी-मारी पिर ! ईसाइयों को तनिक भी बचा-धर्म का विचार नहीं होता । यस.सको रंगाई ही बनाते फिरते हैं।
कुछ नहीं देना था, तो पहले दी दुत्कार देते । मी-भर दौडाकर कह दिया, चल हट। इन सदों में मालूम होता है, उसी हदकी का स्पभाप अध्यछ है उी में दया-धर्म है बुदिया तो पूरी करता है सीधे मैंद वारा ही नहीं करती ।
इतना पर्मड । जैसे वही दिसटोरिया है। राम राम, यक गया।
अभी तक दम कल रहा है। ऐसा मान तक कमी न दुआ था कि इतना दीयाकर किसी ने कोरा जवाब दे दिया हो । भगवान् की यही इच्छा होगी ।
मन, इतने दुसशी न दी । माँगना सुमारा काम है, देना दूसरों का काम है। अपना भन है, कोई नहीं देता, तो तुम्हें घुग क्यों रखता है।
टोगों से कहा कि साहर उमीन मांगते में नहीं, सम पचय मागे । मैने अपाय तो दे ही दिया, अप दूसारों से कहने का परोजन ही क्या यह सोचता हुआ वह अपने द्वार पर आया ।
बद्ध रा ही सामान्य झोपड़ी थी। बार पर एक नीम का क्ष या। किसानों की जगह बॉस की टहनियों की पक रही लगी दुई यो।
लेखक | प्रेमचंद-Premchand |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 573 |
Pdf साइज़ | 53.8 MB |
Category | उपन्यास(Novel) |
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